लखनऊ: मीडिया का हर नया अपडेट अब डरा रहा है. रह-रहकर घरवालों की चिंता हो रही है. उनकी मदद के लिए हम वहां जा भी नहीं सकते. हमारा देश बिखर रहा है. अब न तो भविष्य दिख रहा है और न ही वर्तमान. डरे, सहमे और घबराहट से भरी यह बातें अफगानिस्तान के उन छात्रों की है, जो लखनऊ विश्वविद्यालय में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं. तालिबान के कब्जे के बाद संकट का सामना कर रहे अफगानिस्तान में रह रहे इन छात्रों के परिजनों का क्या हाल है, इनको जानकारी भी नहीं मिल पा रही है. हालात ऐसे हैं कि ये अभी वहां जा भी नहीं सकते.
बता दें कि भारत से मैत्री संबंध रखने वाले अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक व्यवस्था की चूलें हिल गईं हैं. राष्ट्रपति से लेकर अधिकतम मंत्री और जनप्रतिनिधि देश छोड़कर पलायन कर चुके हैं. अफगानिस्तान में लोकतंत्र की बलि चढ़ाकर इस्लामी कट्टरपंथी संगठन तालिबान ने लाखों लोगों का भविष्य अंधकारमय कर दिया है. बड़ी संख्या में अफगानी लोग देश की सीमा को पार करने के जद्दोजहद कर रहे हैं. विदेशी व्यापारियों में खलबली मची हुई है. इस बीच लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्ययन करने आये अफगानी छात्रों को अब अपने परिवार और भविष्य की चिंता सता रही है. करीब 60 से ज्यादा इन अफगानी विद्यार्थियों का ठिकाना यहां का नरेंद्र देव छात्रावास है.
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एक अन्य पीएचडी स्कॉलर नेमतुल्लाह बताते हैं कि वह अफगानिस्तान के गजनी प्रांत से हैं. फिलहाल उनकी पत्नी और बेटी उनके साथ लखनऊ में ही रहती है, लेकिन उनकी मां और भाई इस समय अफगानिस्तान में हैं. वह काबुल प्रांत में हैं. नेमतुल्लाह कहते हैं कि अभी स्थिति फिर भी ठीक है, लेकिन आगे क्या हो जाएगा इसका कोई भरोसा नहीं है.
काबुल के रहने वाले एक अन्य पीएचडी स्कॉलर अपने परिवार को लेकर बेहद आशंकित है. नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने बताया कि उनकी मां-बेटी और पत्नी वहां हैं. अभी क्या होगा होगा? यह सोच कर भी दिल दहल जाता है.