लखनऊ: अयोध्या में बाबरी विध्वंस के 28 साल पुराने मसले पर बुधवार को सीबीआई की विशेष अदालत ने अपना फैसला सुनाया. इस फैसले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया. इस मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह जैसे नेताओं के अधिवक्ता रहे के.के मिश्रा फैसला आने के बाद काफी खुश नजर आए. उन्होंने कहा कि सत्य की जीत हुई है. हमें पूरा विश्वास था कि सभी लोग बाइज्जत बरी होंगे और न्यायालय ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया.
ईटीवी भारत से बात करते बचाव पक्ष के वकील के.के मिश्रा. लगभग 2,300 पेज का था फैसला
बचाव पक्ष के अधिवक्ता के.के मिश्रा ने बताया कि लगभग 2,300 पेज का फैसला आया है. जो साक्ष्य न्यायालय में आए तो वह साक्ष्य के रूप में ग्राह्य नहीं माने गए और इसी कारण सबको बाइज्जत बरी कर दिया गया. सभी तरह के साक्ष्यों का परीक्षण किया गया था. परीक्षण के बाद न्यायालय ने उस पर गंभीरता से विचार किया और तब यह पाया कि कोई भी ऐसा साक्ष्य न्यायालय में सीबीआई प्रस्तुत करने में असफल रही है, जिससे इस मुकदमे में न्यायालय ने सभी को बाइज्जत बरी कर दिया.
354 गवाह साक्ष्य के रूप में हुए पेश
अधिवक्ता के.के मिश्रा ने बताया कि यह मुकदमा 2010 से ट्रायल पर चल रहा था. इसमें 354 गवाह साक्ष्य के रूप में पेश हुए. इन साक्ष्यों का विधिवत परिशीलन किया गया और न्यायालय को लगभग एक महीने इसके जजमेंट को लिखने में समय लगा. हम सबकी भी दो महीने की तैयारी थी. सीआरपीसी 313 की प्रक्रिया जिसमें गवाहों से जिरह करने की बात होती है, उसमें समय लगा. उससे पहले से हम लोग लिखित बहस तैयार की थी तो काफी समय इस पूरे घटनाक्रम और सुनवाई के दौरान लगा. न्यायालय ने यह पाया कि जो भी एविडेंस प्रॉसीक्यूशन यानी सीबीआई की तरफ से न्यायालय के समक्ष साक्ष्य के रूप में दिया है वह साक्ष्य के रूप में साबित नहीं हो सके.
आपराधिक षड्यंत्र के सवाल पर अधिवक्ता के.के मिश्र कहते हैं कि षड्यंत्र करने को 120बी कहा जाता है. इसके लिए हम सबको समझना पड़ेगा कि आपराधिक षड्यंत्र कहीं रचा गया हो और उसके बाद उसका इंप्लीमेंट अयोध्या में हुआ हो, ऐसा साक्ष्य प्रॉसीक्यूशन को देना होता, लेकिन प्रॉसीक्यूशन के विवेचक ने स्पष्ट कहा कि हमने पूरे देश में घूम-घूम कर साक्ष्यों को एकत्रित किया, लेकिन मुझे कोई ऐसा साक्ष्य नहीं प्राप्त हुआ, जिससे कि यह प्रमाणित हो कि इस मुकदमे में इस घटना में किसी प्रकार का आपराधिक षड्यंत्र हुआ है, जो दूसरा विषय है.
कारसेवक खा रहे थे पत्थर
अधिवक्ता के.के मिश्रा ने कहा कि न्यायालय ने इस केस को किस रूप में लिया और फैसला सुनाया तो मैं यही कहूंगा कि न्यायालय ने दूध का दूध और पानी का पानी किया है. के.के मिश्रा ने बताया कि इसमें दो बातें थीं कि एक तो वह वर्ग था, जो पत्थर फेंक रहे थे. वहीं कुछ कारसेवक पत्थर खा रहे थे. जो कारसेवक पत्थर फेंक रहे थे, वह निश्चित रूप से कारसेवक नहीं हो सकते थे और जो कारसेवक पत्थर खा रहे थे, वही कारसेवक थे और उन्होंने यह घटना नहीं कारित की थी.
असामाजिक तत्वों ने किया था प्रवेश
बचाव पक्ष के वकील के.के मिश्रा ने कहा कि एलआईयू की रिपोर्ट में भी स्पष्ट आ चुका था कि कारसेवकों के भेष में कुछ असामाजिक तत्व काफी संख्या में अयोध्या में प्रवेश कर चुके थे, लेकिन उन्हें चिह्नित किया जाना कठिन था. प्रशासन उस काम में भी असफल रहा, वह किसी को चिह्नित कर पाए. लेकिन विवेचक का काम था कि विवेचना इस दिशा में जरूर करनी चाहिए थी. ऐसे किसी आपराधिक षड्यंत्र की जानकारी साक्ष्य के रूप में नहीं मिल पाई. कोर्ट को इसलिए आपराधिक षड्यंत्र का कोई साक्ष्य नहीं मिला और वहां पर जो घटना घटित हुई, असामाजिक तत्व के द्वारा कारित की गई थी. जिन्होंने घटना कारित की थी वह मुलजिम नहीं थे, जिन्होंने कोई घटना नहीं कारित की थी वह मुलजिम थे.