लखनऊ: एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम एंबुलेंस बंदी के कगार पर - यूपी सरकार एंबुलेंस सेवा
प्रदेश में संचालित एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम एंबुलेंस बंदी के कगार पर है. दरअसल 'जीवीके' कंपनी ने एंबुलेंस संचालन का खर्च न निकलने को ढाल बनाकर सेवा बंद करने का स्वास्थ्य विभाग को नोटिस जारी कर दिया है. इस सेवा में लगे 1000 कर्मचारियों को सेवा से मुक्त करने का नोटिस भी जारी कर दिया गया है.
लखनऊ: एंबुलेंस सेवा संचालित कर रही कंपनी और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के अधिकारियों के बीच खींचतान में हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं. समय से लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस की सेवा मिलने से जीवन बचने की मरीजों की आस भी अक्टूबर `माह से टूटनी शुरू हो जाएगी. 'जीवीके' कंपनी ने एंबुलेंस संचालन का खर्च न निकलने को ढाल बनाकर सेवा बंद करने का स्वास्थ्य विभाग को नोटिस जारी कर दिया है. इस सेवा में लगे 1000 कर्मचारियों को सेवा से मुक्त करने का नोटिस भी जारी कर दिया गया है.
यूपी सरकार ने गंभीर रोगियों को गोल्डन ऑवर प्राथमिक उपचार देकर समय से अस्पताल पहुंचने के लिए एडवांस लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस शुरू की थी. इसके लिए 250 एंबुलेंस चलाई जा रही थीं. लखनऊ में 12 एंबुलेंस चल रही थीं. अन्य बड़े जिलों में चार से पांच और छोटे जिलों में 1 से 2 एंबुलेंस चल रही हैं, जिन्हें इंटीग्रेटेड तकनीक से लखनऊ से संचालित किया जाता था.
जीवीके के पास था संचालन का ठेका
एनएचएम ने एंबुलेंस को संचालित करने का ठेका 'जीवीके' कंपनी को दे रखा था. 16 अक्टूबर 2020 तक का अनुबंध था. एंबुलेंस स्वास्थ्य विभाग ने खरीद कर दी थी. कंपनी सिर्फ इसे संचालित करती थी. सरकार प्रति केस के हिसाब से कंपनी को भुगतान करती थी, जिसका औसत प्रति माह प्रति एंबुलेंस करीबन ढाई लाख रुपये आता था. कोरोना काल में मरीजों की संख्या कम हो गई. कंपनी को 80 से एक लाख तक भुगतान होने लगा. कंपनी के प्रतिनिधि सरकार पर यह दबाव बना रहे थे कि कोरोना काल को देखते हुए उनका भुगतान बढ़ाया जाए, जबकि एनएचएम अधिकारी इसके लिए तैयार नहीं थे.
कंपनी ने सेवा चलाने से इनकार किया
अब कंपनी ने अचानक इस सेवा को संचालित करने से इनकार कर दिया है. जीवीके के प्रबंधकों की ओर से स्वास्थ्य विभाग को भेजे गए नोटिस में कहा गया है कि वह इस सेवा के अनुबंध को आगे बढ़ाने में असमर्थ हैं. इसके साथ ही कंपनी ने सेवा में लगे 1000 कर्मचारी को पद मुक्त करने का नोटिस जारी कर दिया है. इससे जहां 1000 लोग बेरोजगार होंगे, वहीं गंभीर अवस्था में इस एंबुलेंस की सेवा मिलने से जीवन बचने की आस के भी टूटने का डर पैदा हो गया है.
एक एंबुलेंस पर कितना खर्च
कंपनी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस सेवा को चलाने में प्रति एंबुलेंस एक माह में एक लाख रुपये तक खर्च आता है. प्रत्येक एंबुलेंस में 4 कर्मचारी होते हैं. इनमें से एक मेडिकल स्टाफ व एक ड्राइवर 12 घंटे काम करते हैं. दूसरी शिफ्ट में भी एक मेडिकल स्टाफ व एक ड्राइवर रहते हैं. ऑक्सीजन और जीवन रक्षक दवाएं भी इस एंबुलेंस में होती हैं.
दोनों ओर से चुप्पी
एंबुलेंस सेवा चलाने और बंद करने को लेकर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और जीवीके कंपनी के प्रबंधक चुप्पी साधे हुए हैं. कंपनी के प्रवक्ता ऑफ द रिकॉर्ड तो स्वीकारते हैं कि सरकार के नियमानुसार सेवा बंद करने का 35 दिन का नोटिस स्वास्थ विभाग को दे दिया है. मगर इससे ज्यादा कुछ बोलने को तैयार नहीं होते हैं. दूसरी ओर सरकार के अधिकारी भी चुप्पी साधे हैं. अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद इतना जरूर कहते हैं कि प्रकरण संज्ञान में आया है समस्या का हल तलाशा जा रहा है.
सपा ने बोला हमला
सपा के पूर्व राष्ट्रीय सचिव राजेश दीक्षित कहते हैं कि सरकार और सेवा प्रदाता कंपनी एक-दूसरे से मिले हुए हैं. एंबुलेंस सेवा बंद करने का खौफ पैदा करके शुल्क की दरों में बढ़ोतरी करना चाहते हैं. कुछ दिन के अंदर ही इस पर सहमति बन जाएगी. वह कहते हैं कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मन में खोट नहीं है तो अब तक के भुगतान की विशेष समिति से जांच कराकर कंपनी के खिलाफ कार्रवाई करें और कोरोना काल में जीवन रक्षक सेवा बंद करने के लिए कंपनी पर महामारी एक्ट के तहत कार्रवाई करें.