लखनऊ:देश के 27 लाख बच्चों को शिक्षित कर चुके और राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित साइकिल गुरु के नाम से प्रसिद्ध आदित्य कुमार (Aditya Kumar aka Cycle Guru ) लखनऊ की सड़कों पर खड़े होकर हर आते-जाते लोगों से मदद मांग रहे हैं. शायद ही कोई हो जो उनकी ओर ध्यान भी दे रहा. इसके बावजूद घंटों राजधानी की सड़कों पर एक बैनर लिए हुए खड़े हैं. इसमें लिखा है, 'भारत दुनिया का ऐसा देश बने, जहां हर गरीब बच्चा शिक्षित हो यही मेरा प्रयास है'. आदित्य 27 सालों से अपनी संपत्ति बेचकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं. लेकिन, अब उनके पास खुद के खाने के लाले पड़ गए हैं. ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि शायद कोई व्यक्ति या सरकार उन्हें देखकर उनकी मदद करेगी.
यूपी के फर्रुखाबाद के रहने वाले आदित्य उर्फ साइकिल गुरु 1995 से गरीब बच्चों को पढ़ा रहे हैं. करीब 20 राज्यों में साइकिल से यात्रा कर बच्चों को स्कूल जाने के लिए जागरूक करना और खुद उनका स्कूल में एडमिशन करवाना आदित्य की जिंदगी का एकमात्र मिशन बन चुका है. लेकिन, अब आदित्य को 27 साल का अपना मिशन रुकता नजर आ रहा है. बीते दो सालों में लॉकडाउन और कोरोना ने उन्हें और उनके सपनों को तोड़ दिया है. अब उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वो किसी भी जिले में जाकर गरीब बच्चों की क्लास शुरू कर सकें और उनका स्कूल में दाखिला करा सकें. इसीलिए आदित्य लखनऊ की सड़कों पर अपने साइकिल स्कूल को लेकर घंटों खड़े रहते हैं और इंतजार करते हैं कि कोई उनकी मदद करें.
बैनर लेकर लोगों की ओर आशा से देख रहे आदित्य गुरु
ईटीवी भारत को आदित्य मुख्यमंत्री आवास से 100 मीटर की दूर पर लोहिया पथ पर नंगे पैर खड़े मिले. उनके हाथों में एक बैनर था, जिसे वो ऊपर की ओर तान कर खड़े थे. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान आदित्य ने बताया कि अब वो बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना सब कुछ बेच चुके हैं. ज्यादा खर्च न हो इसके लिए उन्होंने शादी भी नहीं की. खुद पर खर्चा न हो इसलिए घर नहीं बनाया. इसके बावजूद अब वो बच्चों को पढ़ाने में असमर्थ हैं.
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मीडिया में मिली पहचान, लेकिन अब जिंदगी बेहाल
आदित्य कहते हैं कि उन्होंने 1995 से लखनऊ में ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया था. आधा वक्त ट्यूशन और आधा वक्त गरीब बच्चों को पढ़ाते थे. उन्हीं की पढ़ाई हुई बच्ची 13 साल बाद जज बनी. उनके कई मित्र भी बने, जिन्होंने मदद की. आदित्य कहते हैं कि शुरुआत में मीडिया ने उनके विषय में खूब लिखा था. लोग उन्हें जानने लगे थे.
गरीब बच्चों को पढ़ाने का है आदित्य में नशा
आदित्य बताते हैं कि वो अब तक 27 लाख बच्चों को स्कूल भेज चुके हैं. जो अपने आप में रिकॉर्ड है. लेकिन, लॉकडाउन में सब टूट गया. उन्होंने बताया कि उनके पिता मजदूर थे. उनके पास कुछ भी नहीं था. वो कहते हैं कि समाजसेवा दो प्रकार के लोग करते हैं. एक वो जो धनाढ्य होते हैं और दूसरे हम जैसे लोग जो साधनविहीन होते हैं. उनमें एक नशा होता है कि देश के लिए कुछ करना है, मरना है, जीना है. आदित्य कहते हैं कि उनके पास पढ़ाने के लिए साधनों की कमी हो गई है.