लखनऊ :यूपी के महिला अस्पतालों में प्रतिदिन 10 में से 2 से 3 तीन बच्चे प्रीमेचयोर बच्चे (Premature Babies) पैदा होते हैं. आंकड़ों के मुताबिक, सरकारी अस्पताल में प्रतिदिन 15 से 20 प्रसव होते हैं. जिसमें से कुछ डिलीवरी सिजेरियन होती है जबकि अधिकतम नॉर्मल डिलीवरी होती है. लखनऊ के वीरांगना झलकारी बाई अस्पताल की सीएमएस डॉ. अंजना खरे ने बताया कि रोजाना 10 में से 2 या 3 बच्चों की प्रीमेच्योर डिलीवरी हो रही है. इन आंकड़े पर गौर करें, तो साल 2021 में लगभग 31% से अधिक प्रीमेच्योर बेबी की डिलीवरी हुई है.
डॉ. अंजना खरे बतातीं हैं कि प्रीमेचयोर बेबी की केयर करना थोड़ा मुश्किल होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चा 37 महीने से पहले ही गर्भ से बाहर आ जाता है. ऐसे केस में अधिक सावधानियां बरतनी होतीं हैं. प्रीमेच्योर बच्चों को ऐसे इंवॉल्वमेंट व तापमान में रखा जाता है, जिससे कि बच्चे को गर्भ जैसा ही एससास हो.
प्रीमेच्योर बेबी के केस में वीरांगना झलकारी बाई अस्पताल की वरिष्ठ बाल रोग डॉ. सुरभि सिंह ने बताया कि कुछ महिलाएं 9 महीने या प्रेग्नेंसी के 37 हफ्ते से पहले ही बच्चे को जन्म दे देतीं हैं. इसे प्रीर्टम लेबर कहा जाता है डिलीवरी रेट से 3 हफ्ते पहले प्रसव होने के केस को भी प्रीमेच्योर लेबर कहते हैं. जिन महिलाओं को प्रीमेच्योर लेबर खतरा रहता है, उनमें गर्भावस्था के दौरान कुछ संकेत देखे जा सकते हैं. इसके कुछ कारण भी है, हालांकि बच्चों के ऊपर इसका खास प्रभाव पड़ता है.
कई बार ऐसा होता है कि अगर बेबी को अच्छी तरह से पूरी ट्रीटमेंट मिल रही है, तो बच्चा जल्दी से रिकवर हो जाता है. कई बार बच्चे की मौत का कारण प्रीमेच्योर डिलीवरी होता है. डॉ. सुरभि ने बताया कि वीरांगना झलकारी बाई अस्पताल में औसतन 10 में से 2 या 3 प्रीमेच्योर डिलीवरी होती हैं.
ऐसे केस में डॉक्टर पूरी कोशिश करते हैं कि बच्चे को एक ऐसा तापमान वाला इंवॉल्वमेंट में रखा जाए, जहां उसे मां के गर्भ जैसा एहसास हो सके. प्रीमेच्योर बेबी शारीरिक और मानसिक तौर पर भी कभी-कभी विकलांग हो सकते हैं. लेकिन यह जरूरी नहीं है, कई बार ऐसा होता है कि बच्चे की सिर्फ लंबाई पर असर पड़ता है. कई बार बच्चे के मस्तिष्क पर भी असर होता है, लेकिन असर होता ही है.