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यूपी में प्रतिवर्ष लगभग 31 फीसद पैदा होते हैं प्रीमेच्योर बच्चे...

प्रीमेच्योर बच्चों की डिलीवरी होना आम बात है, ये बच्चे मानसिक व शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं. प्रीमेच्योर डिलीवरी के केस में नवजात के लिए विशेष इंवॉल्वमेंट तैयार किया जाता है. ईटीवी भारत की टीम ने प्रीमेच्योर के बढ़ते मामलों के विषय में कई एक्सपर्ट से बातचीत की, रिपोर्ट पढ़िए...

यूपी में प्रतिवर्ष लगभग 31 फीसद पैदा होते हैं प्रीमेच्योर बच्चे
यूपी में प्रतिवर्ष लगभग 31 फीसद पैदा होते हैं प्रीमेच्योर बच्चे

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Published : Jan 4, 2022, 10:22 PM IST

लखनऊ :यूपी के महिला अस्पतालों में प्रतिदिन 10 में से 2 से 3 तीन बच्चे प्रीमेचयोर बच्चे (Premature Babies) पैदा होते हैं. आंकड़ों के मुताबिक, सरकारी अस्पताल में प्रतिदिन 15 से 20 प्रसव होते हैं. जिसमें से कुछ डिलीवरी सिजेरियन होती है जबकि अधिकतम नॉर्मल डिलीवरी होती है. लखनऊ के वीरांगना झलकारी बाई अस्पताल की सीएमएस डॉ. अंजना खरे ने बताया कि रोजाना 10 में से 2 या 3 बच्चों की प्रीमेच्योर डिलीवरी हो रही है. इन आंकड़े पर गौर करें, तो साल 2021 में लगभग 31% से अधिक प्रीमेच्योर बेबी की डिलीवरी हुई है.

डॉ. अंजना खरे बतातीं हैं कि प्रीमेचयोर बेबी की केयर करना थोड़ा मुश्किल होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चा 37 महीने से पहले ही गर्भ से बाहर आ जाता है. ऐसे केस में अधिक सावधानियां बरतनी होतीं हैं. प्रीमेच्योर बच्चों को ऐसे इंवॉल्वमेंट व तापमान में रखा जाता है, जिससे कि बच्चे को गर्भ जैसा ही एससास हो.

यूपी में प्रतिवर्ष लगभग 31 फीसद पैदा होते हैं प्रीमेच्योर बच्चे

प्रीमेच्योर बेबी के केस में वीरांगना झलकारी बाई अस्पताल की वरिष्ठ बाल रोग डॉ. सुरभि सिंह ने बताया कि कुछ महिलाएं 9 महीने या प्रेग्नेंसी के 37 हफ्ते से पहले ही बच्चे को जन्म दे देतीं हैं. इसे प्रीर्टम लेबर कहा जाता है डिलीवरी रेट से 3 हफ्ते पहले प्रसव होने के केस को भी प्रीमेच्योर लेबर कहते हैं. जिन महिलाओं को प्रीमेच्योर लेबर खतरा रहता है, उनमें गर्भावस्था के दौरान कुछ संकेत देखे जा सकते हैं. इसके कुछ कारण भी है, हालांकि बच्चों के ऊपर इसका खास प्रभाव पड़ता है.

कई बार ऐसा होता है कि अगर बेबी को अच्छी तरह से पूरी ट्रीटमेंट मिल रही है, तो बच्चा जल्दी से रिकवर हो जाता है. कई बार बच्चे की मौत का कारण प्रीमेच्योर डिलीवरी होता है. डॉ. सुरभि ने बताया कि वीरांगना झलकारी बाई अस्पताल में औसतन 10 में से 2 या 3 प्रीमेच्योर डिलीवरी होती हैं.

ऐसे केस में डॉक्टर पूरी कोशिश करते हैं कि बच्चे को एक ऐसा तापमान वाला इंवॉल्वमेंट में रखा जाए, जहां उसे मां के गर्भ जैसा एहसास हो सके. प्रीमेच्योर बेबी शारीरिक और मानसिक तौर पर भी कभी-कभी विकलांग हो सकते हैं. लेकिन यह जरूरी नहीं है, कई बार ऐसा होता है कि बच्चे की सिर्फ लंबाई पर असर पड़ता है. कई बार बच्चे के मस्तिष्क पर भी असर होता है, लेकिन असर होता ही है.


क्वीन मैरी अस्पताल की वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. रेखा सचान बताती हैं कि प्रीमेच्योर बेबी होना आम बात है. यदि कम उम्र में लड़की की शादी हो जाती है और वह गर्भधारण करती है. इस स्थिति में भी प्रीमेच्योर का केस हो सकता है.

लोगों को समझना चाहिए कि सरकार भी लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल कर दी है, ताकि लड़कियां शारीरिक व मानसिक तौर पर मजबूत हो सके. हम समझते हैं कि लड़की शारीरिक व मानसिक तौर से शादी के लिए तैयार है, लेकिन लड़कियों के शरीर में समय के साथ परिवर्तन हमेशा होता रहता है. शादी की सही उम्र 21 वर्ष की है उस समय तक लड़की मेच्योर हो जाती है.

डॉ. सचान बतातीं हैं कि क्वीन मैरी अस्पताल अस्पताल में प्रतिदिन 20 से 30 गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी होती है. इसमें औसतन 5 डिलीवरी प्रीमेच्योर बच्चों की होती है. ऐसे बच्चों को विशेष ट्रीटमेंट दिया जाता है. बच्चों के लिए बेहतर इंवॉल्वमेंट क्रिएट किया जाता है. नौ माह पूरे करने के बाद बच्चा गर्भ से बाहर आता है, तो वह पूरी तरह से मेच्योर होता है. नौ माह बाद डिलीवरी होने वाले बच्चे शारीरिक व मानसिक दोनों तरह से मजबूत रहते हैं.

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प्रीमेच्योर लेबर का संकेत

  • लेबर पेन से पहले ब्लीडिंग या खूनी म्यूकस का निकलना.
  • 37 महीने के पहले ही अचानक से पानी की थैली फट जाना, लेबर पेन का साफ संकेत होता है.
  • समय से पहले वजाइना में भारीपन महसूस होना यानी शिशु का सिर नीचे की ओर आ चुका है.

    प्रीमेच्योर केस में शिशु का खतरा
  • प्रीमेच्योर बेबी का बच पाना मुश्किल होता है, लेकिन यदि वह बच जाता है तो उसे प्रॉपर ट्रीटमेंट का मिलना जरूरी होता है.
  • शारिरीक, मानसिक और बौद्धिक विसंगतियों का शिकार हो जाना.
  • एनिमिया के शिकार होना

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