लखनऊ: सूबे की राजधानी के शहरी और ग्रामीण इलाकों में पुलिसकर्मियों के जर्जर बैरक और सरकारी आवास की हालत बद से बदतर है. समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी जिस विभाग को दी गई है, उसी विभाग के कर्मचारी हर समय खौफ के साए में रहने को मजबूर हैं. पूर्व के हादसों का संज्ञान लेकर एक बार फिर लखनऊ के पुलिसकर्मियों की सुरक्षा को लेकर पड़ताल की गई, जिसमें पाया गया कि जनता को सुरक्षा देने वालों की जान खुद खतरे में है. पुलिस लाइन और थानों में पुलिसकर्मी जर्जर सरकारी आवास और कंडम बैरकों में रहने को मजबूर हैं. बैरकों और आवासों की छतें टूटी हैं, जो कभी भी गिरने का इशारा कर रही हैं. जगह-जगह दीवारों में दरारें हैं. बैरकों के बाहर और अंदर गंदगी की भरमार है. पुलिस लाइन के जर्जर सरकारी आवास में रहने वाले फॉलोअर व पुलिसकर्मियों को भी हर समय खतरा सताता रहता है. पूर्व में यहां भी हादसा हो चुका है. कई आवास तो पांच साल पहले कंडम घोषित हो चुके हैं, फिर भी पुलिसकर्मी परिवार संग रहने को मजबूर हैं.
लखनऊ पुलिस लाइन में 844 आवास पुलिसकर्मियों के लिए बने हुए हैं. इनकी मरम्मत वर्षों से नहीं हुई है. इससे ये बदहाल होने लगे हैं. इन आवासों में से 32 कंडम हैं. एक इंजीनियर की रिपोर्ट के आधार पर यह आवास रहने लायक नहीं बचे हैं. इसके बाद भी पुलिस लाइन के इन कंडम आवासों में परिवार रहने के लिए मजबूर है. क्योंकि इनको अभी तक दूसरा आवास उपलब्ध नहीं कराया गया है. सरकारी नियम है कि पुलिसकर्मियों के एक आवास की मरम्मत के लिए 5 साल में एक बार 25000 रुपये मिलने चाहिए, लेकिन ये पैसे भी उन्हें नहीं मिल पाते. ऐसे में छोटी-छोटी टूट-फूट को पुलिसकर्मी अपने पैसे से ही ठीक कराते हैं.
नाम न बताने की शर्त पर पुलिस लाइन के एक कंडम आवास में रहने वाले पुलिसकर्मी ने बताया कि उसके आवास की हालत इतनी खराब है कि उसने अपने पास से 35,000 रुपये लगाकर मरम्मत कराई है. इसके बाद भी दीवारों से प्लास्टर गिर रहे हैं. पुलिस लाइन के खस्ता हाल आवास में रहने वाली सरिता ने बताया कि उनके आवास में पानी की सुविधा तक नहीं है.