दस सिखों के एनकाउंटर केस में 43 पुलिसकर्मी दोषी करार, सभी को सात सात साल की सजा
19:41 December 15
लखनऊ :हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow Bench of the High Court) ने वर्ष 1991 में पीलीभीत के 10 सिखों को कथित एनकाउंटर में मार दिए जाने के मामले में 43 पुलिसकर्मियों को गैर इरादतन हत्या का दोषी करार दिया है. न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पुलिसकर्मियों को हत्या में दोषसिद्ध किए जाने व आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने वाले 4 अप्रैल 2016 के निर्णय को निरस्त करते हुए, उक्त पुलिसकर्मियों को सात-सात साल के कारावास की सजा सुनाई है.
यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव (Justice Ramesh Sinha and Justice Saroj Yadav) की खंडपीठ ने अभियुक्त पुलिसकर्मियों देवेंद्र पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल अपीलों को आंशिक तौर पर मंजूर करते हुए पारित किया. अपीलार्थियों की ओर से दलील दी गई थी कि कथित एनकाउंटर में मारे गए मृतकों में से कई का लंबा आपराधिक इतिहास था. कहा गया कि यही नहीं वे खालिस्तान लिब्रेशन फ्रंट नामक आतंकी संगठन के सदस्य भी थे. कहा गया कि मृतकों में बलजीत सिंह उर्फ पप्पू, जसवंत सिंह, हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटा, सुरजन सिंह उर्फ बिट्टू व लखविंदर सिंह के खिलाफ हत्या, लूट व टाडा आदि मामले दर्ज थे.
अदालत द्वारा दोषी करार दिए गए पुलिसकर्मी |
दोषी करार दिए गए पुलिसकर्मियों में रमेश चंद्र भारती, वीरपाल सिंह, नत्थु सिंह, सुगम चंद, कलेक्टर सिंह, कुंवर पाल सिंह, श्याम बाबू, बनवारी लाल, दिनेश सिंह, सुनील कुमार दीक्षित, अरविंद सिंह, राम नगीना, विजय कुमार सिंह, उदय पाल सिंह, मुन्ना खान, दुर्विजय सिंह पुत्र टोडी लाल, गयाराम, रजिस्टर सिंह, दुर्विजय सिंह पुत्र दिलाराम, हरपाल सिंह, रामचंद्र सिंह, राजेंद्र सिंह, ज्ञान गिरी, लखन सिंह, नाजिम खान, नारायन दास, कृष्णवीर, करन सिंह, राकेश सिंह, नेमचंद्र, शमशेर अहमद व शैलेन्द्र सिंह फिलहाल जेल में हैं. बाकी देवेन्द्र पांडेय, मोहम्मद अनीस, वीरेंद्र सिंह, एमपी विमल, आरके राघव, सुरजीत सिंह, राशिद हुसैन, सैयद आले रजा रिजवी, सत्यपाल सिंह, हरपाल सिंह व सुभाष चंद्र जमानत पर हैं. न्यायालय ने इन्हें हिरासत में लेने का आदेश दिया है. अपील के विचाराधीन रहते तीन अपीलार्थियों दुर्गापाल, महावीर सिंह व बदन सिंह की मृत्यु हो चुकी थी. |
हालांकि इस बिंदु पर न्यायालय ने अपने 179 पृष्ठों के निर्णय में कहा है कि मृतकों में से कुछ का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था. ऐसे में निर्दोषों को आतंकियों के साथ मार देना स्वीकार नहीं किया जा सकता. न्यायालय ने आगे कहा कि इस मामले में अपीलार्थियों और मृतकों के बीच कोई दुश्मनी नहीं थी. अपीलार्थी सरकारी सेवक थे और उनका उद्देश्य कानून व्यवस्था बनाए रखने का था. न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अपीलायर्थियों ने इस मामले में अपनी शक्तियों का आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल किया, लेकिन उन्होंने यह इस विश्वास के साथ किया कि वे अपने विधिपूर्ण और आवश्यक दायित्व का निर्वहन कर रहे थे. न्यायालय ने कहा कि इन परिस्थितियों में अपीलार्थियों को आईपीसी की धारा 302 में नहीं, बल्कि सिर्फ धारा 304 पार्ट 1 में दोषी करार दिया जा सकता है.
अभियोजन के अनुसार कुछ सिख तीर्थयात्री 12 जुलाई 1991 को पीलीभीत से एक बस से तीर्थयात्रा के लिए जा रहे थे. इस बस में बच्चे और महिलाएं भी थीं. इस बस को रोक कर 11 लोगों को उतार लिया गया. इनमें से 10 की पीलीभीत के न्योरिया, बिलसांदा और पूरनपुर थाना क्षेत्रों के क्रमशः धमेला कुंआ, फगुनिया घाट व पट्टाभोजी इलाके में एनकाउंटर दिखाकर हत्या कर दी गई. आरोप है कि 11वां शख्स एक बच्चा था जिसका अब तक कोई पता नहीं चला. अपीलार्थियों की ओर से दलील दी गई कि मारे गए 10 में से बलजीत सिंह उर्फ पप्पू, जसवंत सिंह उर्फ ब्लिजी, हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटा तथा सुरजान सिंह उर्फ बिट्टू खालिस्तान लिब्रेशन फ्रंट के आतंकी थे. इसके साथ ही उन पर हत्या, डकैती, अपहरण व पुलिस पर हमले जैसे जघन्य अपराध के मामले दर्ज थे.
यह भी पढ़ें : यूपी-बिहार पुलिस के मोस्टवांटेड फिरदौस ने लखनऊ में किया सरेंडर, हत्या समेत कई मुकदमों में था वांछित