लखनऊ : पॉली सिस्टिक ओवरी डिजीज (पीसीओडी ) महिलाओं में अंडाशय को प्रभावित करती है. यह एक हार्मोनल असंतुलन (hormonal imbalance) की ओर जाता है. महिला सरकारी अस्पतालों में पीसीओडी से पीड़ित मरीजों की संख्या काफी बढ़ रही है. महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. अनीता नेगी (Gynecologist Dr. Anita Negi) ने कहा कि इसको लेकर महिलाओं को जागरूक होने की जरूरत है. आजकल की युवा पीढ़ी इन सभी बीमारियों को लेकर काफी ज्यादा जागरूक रहते हैं. लेकिन कई बार होता है कि महिलाएं अपने ऊपर ध्यान नहीं देती हैं. इसी वजह से छोटी सी बीमारी बड़ा रोग बन जाता है. हालांकि पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज में ऐसा कुछ नहीं है. हार्मोनल इंबैलेंस की वजह से कई बार ऐसा हो जाता है.
डॉ. नेगी ने बताया कि यह कोई बीमारी नहीं है बल्कि यह एक सिंड्रोम है. इसका इलाज पूरी तरह से संभव है. अगर आपको लग रहा है कि आपको पीसीओडी है या आपका वजन बढ़ रह है. आपका बीपी बढ़ रहा है या फिर आपको शुगर हो रहा है और साथ में आपके शरीर में अनचाहे बाल उग रहे हैं. सिर के बाल झड़ रहे हैं तो ऐसे में संभल जाइए. क्योंकि यह पीसीओडी के लक्षण हैं. इन बातों से आप समझ सकते हैं कि आपको पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम है.
जानकारी देतीं संवाददाता अपर्णा शुक्ला. पीसीओडी (polycystic ovarian disease) की समस्या होने पर डायबिटीज से लेकर अंडेदानी के कैंसर तक का रिस्क रहता है. विशेषज्ञों की मानें तो पीसीओडी के दौरान पेन्क्रियाज ज्यादा इंसुलिन बनाता है और इससे अंडेदानी में सिस्ट बननी शुरू हो जाती है. ज्यादा इंसुलिन बनाते बनाते कई बार पेन्क्रियाज थक जाता है और काम करना बंद कर देता है. ऐसे में इंसुलिन की कमी होने से डायबिटीज की समस्या का रिस्क बढ़ता है. अंडेदानी में गांठें इंफर्टिलिटी (infertility) की समस्या का खतरा बढ़ाती हैं साथ ही इससे अंडेदानी के कैंसर का खतरा भी कुछ हद तक बढ़ता है.
लाइफस्टाइल में करें बदलाव :क्वीन मैरी अस्पताल की महिला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रेखा सचान (Rekha Sachan, Gynecologist, Queen Mary Hospital) के अनुसार अस्पताल में 30 फ़ीसदी महिलाएं इस सिंड्रोम से पीड़ित होकर आती हैं. कई बार उन्हें नहीं समझ में आता है कि उन्हें पीसीओडी है, लेकिन जब लक्षण बताती हैं तब हम उन्हें बताते हैं कि वह पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम से पीड़ित हैं. हालांकि इसका इलाज पूरी तरह संभव है. पीसीओडी हार्मोनल समस्या है. इसलिए इसका इलाज भी लंबा चलता है. इसके लिए विशेषज्ञ कम से कम 12 से 18 महीने का हार्मोनल ट्रीटमेंट देते हैं. थोड़े थोड़े अंतराल के बाद फिर से इलाज लेना पड़ सकता है क्योंकि ये लाइफस्टाइल डिजीज है. इसे सिर्फ लाइफस्टाइल बदलकर नियंत्रित किया जा सकता है. पूरी तरह से इसे ठीक कर पाना मुश्किल होता है. हार्मोनल ट्रीटमेंट के दौरान मरीज का वजन बढ़ना, गैस, एसिडिटी जैसी समस्या हो सकती है. इसके लिए हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई फैट और हाई कार्बोहाइड्रेट डाइट से परहेज करें. नियमित व्यायाम करें और समय से दवाएं लें. शराब और स्मोकिंग से दूर रहें. जितना ज्यादा आप शारीरिक एक्टिविटीज करेंगे और वजन को नियंत्रित रखेंगी, उतना ही आप इस समस्या को नियंत्रित कर पाएंगी.
डॉक्टर सचान ने कहा कि लक्षणों को देखकर उन्हें नजर अंदाज न करें और फौरन विशेषज्ञ से परामर्श करें. पीसीओडी का संदेह होने पर विशेषज्ञ आपको सोनोग्राफी की सलाह देंगे. जरूरत पड़ने पर ब्लड टैस्ट और कुछ हार्मोनल जांचें भी कराई जा सकती हैं. रिपोर्ट के आधार पर पीसीओडी की पुष्टि होती है और इलाज शुरू किया जाता है. वजन बढ़ना, माहवारी अनियमित होना, मुंहासे और डैंड्रफ, पेल्विक पेन होना, शरीर पर या चेहरे पर बाल आना आदि लक्षण दिखें तो अलर्ट हो जाएं.
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