उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

बाबरी विध्वंस की 28वीं बरसी आज, 5 घंटे में गिरा दिया था विवादित ढांचा

आज से 28 साल पहले 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में लाखों कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया था. 5 दिसंबर 1992 की सुबह से ही अयोध्या में विवादित ढांचे के पास कारसेवक पहुंचने शुरू हो गए थे. उस समय सुप्रीम कोर्ट ने विवादित ढांचे के सामने सिर्फ भजन-कीर्तन करने की इजाजत दी थी. लेकिन अगली सुबह यानी 6 दिसंबर को भीड़ उग्र हो गई और बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिरा दिया. कहते हैं कि उस समय 1.5 लाख से ज्यादा कारसेवक वहां मौजूद थे और सिर्फ 5 घंटे में ही भीड़ ने बाबरी का ढांचा गिरा दिया था.

बाबरी विध्वंस
बाबरी विध्वंस

By

Published : Dec 6, 2020, 7:46 AM IST

Updated : Dec 6, 2020, 7:54 AM IST

लखनऊ: अयोध्या बाबरी विध्वंस मामले की आज 28वीं बरसी है. 6 दिसंबर यानि आज ही के दिन तमाम हिंदू संगठनों से जुड़े लोगों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी पर चढ़ाई शुरू कर दी. देखते ही देखते अयोध्या में बने बाबरी ढांचे को गिरा दिया गया. इसके बाद पूरे मामले पर जमकर राजनीति शुरू हुई. उसी दिन 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में दो मुकदमे भी दर्ज किए गए. इन मुकदमों पर तमाम सुनवाइयों के बाद 30 सितंबर 2019 को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया, जिसमें सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया.

6 दिसंबर 1992 को हुआ था बाबरी विध्वंस

6 दिसंबर 1992 को होने वाली कारसेवा के लिए उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया था कि देश के समस्त लोग इस कारसेवा में हिस्सा ले सकते हैं. कोर्ट की ओर से संख्या का निर्धारण नहीं किया गया था. कार सेवा के समय कुछ असामाजिक तत्व के कारण वहां का माहौल अस्त-व्यस्त हो गया और बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया गया.

उसके ठीक बाद मामले की पहली एफआईआर 6 बजकर 15 मिनट पर राम जन्मभूमि थाने में दर्ज हुई थी, जिसमें लाखों अज्ञात कारसेवकों को आरोपी बनाया गया था लेकिन कोई भी नामजद नहीं था.उसके ठीक 10 मिनट बाद 6 बजकर 25 मिनट पर दूसरी एफआईआर दर्ज कराई गई, जिसे गंगा प्रसाद तिवारी ने दर्ज कराया था. वह तत्कालीन राम जन्मभूमि चौकी इंचार्ज थे. उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी सहित अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी.

दूसरी दर्ज एफआईआर में राजनीति नजर आने लगी. दूसरी एफआईआर की विवेचना स्थानीय पुलिस को दी गई और इसके दूसरे दिन सीबीसीआईडी को केस ट्रांसफर कर दिया गया. उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया. प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था.

सीबीसीआईडी ने इसकी विवेचना की, जिसमें उन्होंने आरोप पत्र दाखिल किया. इसके बाद यह पूरा केस सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया. सीबीआई ने जब अपनी विवेचना शुरू की, तो 49 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल किया. इसके बाद यह मुकदमा दो हिस्सों में चला. एक रायबरेली और दूसरा लखनऊ में. जितने बड़े नेता थे, उनसे संबंधित मुकदमा रायबरेली में चल रहा था, जबकि लखनऊ में अन्य लोगों से संबंधित. बीच में सुप्रीम कोर्ट ने इस मुकदमे को रायबरेली से लखनऊ स्थानांतरित कर दिया और उसके बाद मुकदमे में गवाही-जिरह होते हुए सुनवाई पूरी हुई. अब 30 सितंबर को फैसला सुनाया जाएगा.

बाबरी प्रकरण पर एक नजर

  • 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी ढांचा विध्वंस के बाद फैजाबाद में उसी दिन दो मुकदमे दर्ज किए गए. एक में लाखों कारसेवक तो दूसरी एफआईआर में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, बाल ठाकरे, उमा भारती सहित 49 लोगों के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का मुकदमा दर्ज किया गया था.
  • साल 1993 में मामले की जांच सीबीआई को दी गई. भाजपा संघ से जुड़े 49 नेताओं के खिलाफ रायबरेली और कारसेवकों के खिलाफ लखनऊ अदालत में ट्रायल शुरू हुआ. इसके बाद अक्टूबर में सीबीआई ने दोनों रायबरेली व लखनऊ केस को मिलाकर आरोप पत्र दाखिल कर लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य सभी नेताओं को आपराधिक षड्यंत्र का आरोपी बताया.
  • साल 1996 में यूपी सरकार ने दोनों केस को एक साथ चलाए जाने को लेकर नोटिफिकेशन जारी किया. इसके बाद लखनऊ की सीबीआई कोर्ट ने दोनों मुकदमे में आपराधिक षड्यंत्र का मामला जोड़ा, जिसे आडवाणी सहित अन्य आरोपियों ने चुनौती दी.
  • 4 मई 2001 को सीबीआई की विशेष अदालत ने आडवाणी सहित अन्य के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का आरोप हटा दिया.
  • साल 2003 में सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की. रायबरेली अदालत ने कहा कि आडवाणी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं. हाईकोर्ट ने दखलअंदाजी की और आपराधिक षड्यंत्र के खिलाफ ही उनके सहित अन्य पर ट्रायल चलता रहा.
  • 23 मई 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र का चार्ज हटा लिया और सीबीआई 2012 में सुप्रीम कोर्ट गई. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक षड्यंत्र को एक बार फिर बहाल करके तेजी से ट्रायल करने का निर्देश दिया.
  • अप्रैल 2017 को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दो साल के अंदर पूरे केस की सुनवाई पूरी करने के निर्देश सीबीआई की विशेष अदालत को दिए. इस मुकदमे में सुनवाई लखनऊ और रायबरेली की दो अदालतों में चल रही थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2017 को अपने आदेश में लखनऊ में ही रायबरेली केस को शामिल करके एक साथ सुनवाई पूरी करने के निर्देश दिए.
  • 21 मई 2017 से प्रतिदिन इस केस की सुनवाई शुरू हुई. उसके बाद कोर्ट में सभी आरोपियों के बयान दर्ज हुए. कोरोना महामारी के कारण लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी सहित कई आरोपियों ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में अपने बयान दर्ज कराए.
  • 8 मई 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त तक सुनवाई पूरी करने के आदेश दिए लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसकी तारीख आगे बढ़ाई गई, जो 30 सितंबर तक है.

अयोध्या विवादित ढांचा विध्वंस केस में सीबीआई की विशेष अदालत के जज सुरेंद्र यादव ने सभी पक्षों की दलील, गवाही और जिरह सुनने के बाद 1 सितंबर 2020 को मामले की सुनवाई पूरी कर ली और दो सितंबर से केस का फैसला लिखना शुरू कर दिया. इसके बाद 16 सितंबर को जज सुरेंद्र यादव ने इस ऐतिहासिक केस में फैसले की तारीख 30 सितंबर घोषित कर दी. 30 सितंबर के दिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे प्रकरण से जुड़ा ऐतिहासिक फैसला सुनाया. कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए इसमें सभी आरोपियों को बरी कर दिया.

Last Updated : Dec 6, 2020, 7:54 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details