लखनऊ :समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा रामचरितमानस पर दिया गया विवादित बयान अब पार्टी के भीतर ही मतभेद खड़े कर रहा है. स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस की कुछ चौपाइयों को दलित व महिला विरोधी बताते हुए उन्हें हटाने की मांग की थी. इसके बाद सपा को दो वरिष्ठ नेताओं और पूर्व मंत्रियों ने स्वामी प्रसाद मौर्य की आलोचना की और उनके बयान को गलत बताया था. इसके बाद यह सिलसिला बढ़ने लगा. ऐसे में अब यह सवाल उठने लगा है कि कहीं पार्टी के भीतर पनप रही विरोध की चिंगारी शोला न बन जाए.
माना जा रहा है कि पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामायण को लेकर बयान यूं ही नहीं दे दिया. यह उनकी एक सोची-समझी रणनीति थी. बाद में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी अपना मत स्पष्ट करने के बजाय चौपाई पर ही सवाल उठाया है. उन्होंने मुख्यमंत्री और भाजपा नेताओं से रामचरित मानस की उक्त चौपाइयों का मतलब स्पष्ट करने के लिए कहा. अखिलेश का यह बयान एक तरह से स्वामी के बयान पर मोहर लगाने जैसा था. यही कारण है कि स्वामी प्रसाद मौर्य अब भी अपने बयान पर कायम हैं. उन्हें लगता है कि उनके इन बयानों से वह दलितों को लुभाने में कामयाब हो जाएंगे. गौरतलब है कि स्वामी प्रसाद मौर्य 2022 में संपन्न विधानसभा चुनावों में अपनी सीट नहीं बचा पाए थे और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था. इसलिए वह दलित वोट बैंक जोड़कर अपना जनाधार बढ़ाने की फिराक में हैं.
प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा की कई ऐसी सीटें भी हैं, जो ब्राह्मण अथवा सवर्ण मतदाता बहुल हैं. यही नहीं हर सीट पर इस वर्ग ने मतदाताओं की इतनी संख्या तो है ही कि वह यदि किसी के खिलाफ मन बना लें, तो निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं. शायद यही कारण है कि सपा के कई नेता खुलकर स्वामी के बयान के खिलाफ आ गए हैं. पूर्व मंत्री व पार्टी के राष्ट्रीय सचिव ओम प्रकाश सिंह ने बिना देर किए स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान की आलोचना की, तो वहीं पूर्व मंत्री तेज नारायण पांडेय 'पवन' ने कहा कि 'मुझे यह कहने में गर्व महसूस होता है कि मैं ब्राह्मण हूं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने जो कहा वह उनकी अनुभवहीनता है. उन्हें देश के लिए ब्राह्मणों के योगदान को पढ़ना चाहिए. जब वह भाजपा में मंत्री पद पर रहकर मलाई काट रहे थे, उन्होंने तब इस विषय को क्यों नहीं उठाया था.' सपा नेता और पार्टी की पूर्व प्रवक्ता रोली तिवारी ने भी स्वामी के बयान की कड़ी आलोचना की थी. उन्होंने इसे स्वामी की अज्ञानता करार दिया था. अब सपा विधायक राकेश सिंह भी स्वामी मौर्य पर मुखर हो गए हैं. उन्होंने कहा 'राजनीति रहूं या न रहूं, विधायक रहूं या न रहूं, आगे टिकट रहे न रहे, जब हमारे धर्म पर अंगुली उठेगी, तो मैं चुप नहीं रहूंगा. मैं श्रीराम और श्रीकृष्ण पर टिप्पणी करने वालों का विरोध करूंगा.' दूसरी ओर भाजपा और हिंदू संगठनों ने भी स्वामी प्रसाद मौर्य का विरोध तेज कर दिया है. सोमवार को वाराणसी से सोनभद्र जा रहे स्वामी प्रसाद की गाड़ी पर स्याही फेंकी गई और युवाओं ने एकजुट होकर उनका विरोध किया. यह घटनाएं बताती हैं कि मामला यहीं ठहरने वाला नहीं है. स्वाभाविक है कि यदि बात ज्यादा बढ़ी तो सपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
इस विषय में राजनीतिक विश्लेषक डॉ आलोक राय कहते हैं 'लोकसभा चुनावों में अभी एक साल का समय है. तब तक कई मुद्दे आएंगे-जाएंगे. हां, यदि विषय लंबा खिंचा तो जरूर सपा के लिए स्थिति असहज करने वाली हो सकती है. केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों में वंचित वर्ग के लिए इतनी योजनाएं चला रखी हैं कि आसानी से दलितों और किसानों का रुख बदलना कठिन है. अगले साल राम मंदिर भी श्रद्धालुओं के लिए तैयार हो जाएगा. भाजपा उससे पहले मंदिर को लेकर बड़ा अभियान चला सकती है, जो बहुसंख्य हिंदुओं को लुभाने वाला विषय है. इसलिए सपा या फिर उसके नेता छिटपुट मुद्दे उठाकर भाजपा को घेरने में आसानी से कामयाब नहीं होंगे, उन्हें इसके लिए बड़े स्तर पर रणनीति बनाने की जरूरत है.'
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