ललितपुर: अफसरों और पर्यटन विभाग की अनदेखी से नाराहट क्षेत्र के विंध्याचल पर्वत की पहाड़ियों पर स्थित प्राचीन चंडी माता मंदिर और आल्हा उदल कचहरी रख-रखाव के अभाव में खंडहर होती जा रही है. पहाड़ी के किनारे कच्चे पथरीली रास्ते से होते हुए यहां तक जाना पड़ता है, लेकिन बारिश में इस स्थान पर जाने के लिए रास्ते भी बंद हो जाते हैं. यहां रुकने की भी व्यवस्था नहीं है.
ललितपुर जिले में पर्यटकों के लिए लुभाने हेतु पर्यटन स्थल है, लेकिन सुविधाओं के अभाव में प्रशासनिक उपेक्षा के चलते यह बदहाली का शिकार होते जा रहे हैं. विन्ध्याचल पर्वत पर स्थित चंडी प्राचीन मंदिर यहां तक पहुंचने के लिए पहाड़ी के किनारे कच्चे कंकरीले पथरीली रास्ते से होते हुए जाना पड़ता है. यहां सैकड़ों की संख्या में खंडहर मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं.
सड़क, पानी, बिजली की नहीं है व्यवस्था
विंध्याचल पर्वत की पर स्थित चंडी मंदिर तक पहुंचने के लिए कंकरीला पथरीला पगडंडी और गड्डे के रूप में बना हुआ है. अच्छा रास्ता न होने की वजह से पर्यटकों को यहां जाने के लिए अच्छी खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. लोगों के लिए यहां न तो पानी-बिजली की व्यवस्था है और न ही पर्यटकों की ठहरने की व्यवस्था. अगर बात करें तो यहां पर्यटन विकसित नहीं है. सैलानियों के लिए एक अच्छा रास्ता नहीं है. जबकि यह पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित हैं. यहां पर बारिश में बड़ी मुश्किल से सैलानी पहुंच पाते हैं. शासन-प्रशासन ने प्रचार-प्रसार के लिए सामाग्री तो लगाई है, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं है.
मूर्तियों व पुरासंपदा का नहीं किया रहा संरक्षण
प्राचीन क्षेत्र की प्रगति पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण रुकी हुई है. यह मंदिर जिले के प्रसिद्ध मंदिर है. यहां पर अनेकानेक प्राचीन मूर्तियां टुकड़ों में सैकड़ों की संख्या बिखरी पड़ी है. जिनका संरक्षण पुरातत्व विभाग द्वारा नहीं किया जा रहा है. जिसके कारण यहां की मूर्तियां धीरे-धीरे करके गायब होती जा रही है. चंडी मंदिर कस्बा नाराहट से महज 2 किलोमीटर दूर दौलतपुर गांव के पास एवं मध्य प्रदेश के अटा गांव से होते हुए विंध्याचल पर्वत की तलहटी में स्थित करीब 100 फीट ऊंचाई पर चंडी माता मंदिर स्थापित है.
मंदिर सुंदर प्राकृतिक घने जंगलों के परिवेश और पहाड़ियों की पृष्ठभूमि के बीच स्थित है. प्राचीन मान्यता के अनुसार मां चंडी अपने मढ़ का छत तोड़कर चंदेरी मध्य प्रदेश के पर्वत की तलहटी में पहुंच गई थी. जहां उन्हें जागेश्वरी माता के नाम से जाना जाता है. चंडी मंदिर नाराहट में चंडी माता के धड़ एवं पैरों की पूजा होती है. जबकि जागेश्वरी चंदेरी में सिर की पूजा होती है. मढ़ तोड़ने के साक्ष्य यहां मौजूद हैं, किंतु वर्तमान में स्थानीय लोगों ने मंदिर पर सीमेंट की छत का निर्माण करा दिया है. मंदिर के आसपास जंगलों में पत्थर की मूर्तियां बिखरी पड़ी है जो कि बहुत ही प्राचीन है.
नवरात्रों के त्योहार के दौरान दर्जनों गांव के सैकड़ों श्रद्धालु चंडी माता मंदिर में आते हैं. मंदिर का रास्ता भले ही दुर्गम हो किंतु श्रद्धालुओं के मन की आस्था प्राकृतिक वातावरण में खींच ले जाती है. इस मंदिर परिसर में प्राकृतिक झरना बहता है. जिस कारण से बारिश के 3 महीने सैलानियों का पिकनिक स्पॉट बन जाता है!
मंदिर से महज 200 मीटर की दूरी पर स्थित आल्हा उदल की कचहरी के नाम से प्रसिद्ध पत्थर का किला है. स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां पर आल्हा ऊदल प्राचीन समय में जनसुनवाई करते थे एवं लोगों की समस्याओं का निस्तारण करते थे. वर्तमान में यह किला पर्यटन विभाग की उपेक्षा के कारण खंडहर बन चुका है. किले के पास ही एक जलकुंड है. जहां वर्ष भर पानी भरा रहता है. इस कुंड में जंगल के पशु-पक्षी पानी पीने आते हैं. साथ ही यहां पर आनेवाले पर्यटक भी इसी कुंड के पानी का उपयोग करते है.
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