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लखीमपुर खीरीः गेहूं खरीद का झोल, कहीं बैनर तो कहीं सब गोल - गेहूं खरीद उत्तर प्रदेश

यूपी के लखीमपुर खीरी जिले में सरकारी क्रय केंद्रो पर गेहूं की खरीद न होने पर किसान मायूस हैं. दूर-दूर से किसान लखीमपुर मंडी समिति पर पहुंच रहे हैं, लेकिन खरीद न होने के कारण आढ़तियों को गेहूं बेचने को मजबूर हैं.

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सरकारी क्रय केंद्रो पर गेहूं की खरीद.

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Published : Apr 15, 2020, 8:59 PM IST

लखीमपुर खीरीः जिले में गेहूं खरीद का पहला दिन कांटे, बाट, बैनर, सोशल डिस्टेंसिंग की तैयारियों में ही बीत गया. हालांकि इक्का-दुक्का क्रय केंद्रों पर खरीद का शगुन जरूर किया गया. अभी केंद्रों पर पूरी व्यवस्थाएं नहीं थी तो किसानों ने भी आढ़तियों का रुख ज्यादा किया. भले ही किसानों को हर क्विंटल पर सौ से डेढ़ सौ रुपये का घाटा उठाना पड़ा पर उन्हें नगद पेमेंट जरूर मिल गया. गन्ने की पेमेंट ठीक से नहीं होने कारण किसानों का कहना है कि उन्हें नकदी की बहुत जरूरत है और लॉकडाउन और कोरोना का खौफ अलग से है. हालांकि अफसर कह रहे हैं कि बृहस्पतिवार से गेहूं खरीद रफ्तार पकड़ लेगी.

सरकारी क्रय केंद्रो पर गेहूं की खरीद न होने से किसान मायूस.

लॉकडाउन के दौरान 60 किलोमीटर दूर निघासन इलाके से चलकर लखीमपुर मंडी समिति पहुंचे किसान तरसेम सिंह के हाथ निराशा हाथ लगी. तरसेम सिंह जब सरकारी केंद्र पहुंचे तो प्रभारी सीट पर नहीं मिले. उन्हें बताया कि प्रभारी अभी खाना खाने गए हैं. तरसेम कहते हैं कि उनके इलाके में सरकारी क्रय केंद्र न होने के कारण उन्हें इतनी दूर आना पड़ा. अब यहां भी कह रहे हैं कि यहां जाइए, वहां जाइए.

किसान अमरजीत सिंह भी इंडो-नेपाल बॉर्डर के तिकोनिया के खैरटिया इलाके से 80 किलोमीटर दूर से मंडी में गेहूं बेचने पहुंचे. सरकारी केंद्र चलते नहीं मिले तो आढ़ती को गेहूं तौला दिया. उन्होंने बताया कि अट्ठारह सौ रुपये का रेट मिला है पर खुशी इस बात कि है कि नगद पेमेंट मिल जाएगा. वहीं सरकारी खरीद के नखरे भी नहीं झेलने पड़ेंगे. अमरजीत सिंह ने बताया कि 125 रुपये क्विंटल का घाटा हो रहा है, पर पैसे की इस वक्त जरूरत बहुत है. लेबर को पेमेंट करना है और साथ ही घर के खर्चे भी हैं.

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यूपी सरकार ने 15 अप्रैल से सरकारी गेहूं खरीद शुरू करने के आदेश दिए हैं. 1925 रुपये प्रति क्विंटल का समर्थन मूल्य घोषित किया है. लॉकडाउन की वजह से खरीद देरी से शुरू हुई है. सरकारी क्रय केंद्रों पर बैनर लग गए हैं. सोशल डिस्टेंसिंग के लिए गोले भी बन गए हैं. हाथ धोने को साबुन भी है, सैनिटाइजर भी है और इलाके को भी सैनिटाइज किया गया है. इन सबके बावजूद क्रय केंद्र पर किसानों के हाथ मायूसी लग रही है.

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