लखीमपुर खीरी: उत्तर प्रदेश में अब जल्द ही अपना हाथी रिजर्व होगा. केंद्रीय वन मंत्रालय ने यूपी में हाथी रिजर्व बनाने को सैद्धान्तिक मंजूरी दे दी है. अब यूपी सरकार को इस पर प्रस्ताव देना है. उत्तर प्रदेश का तराई इलाका और दुधवा टाइगर रिजर्व समेत पीलीभीत टाइगर रिजर्व को मिलाकर यूपी का ये पहला तराई एलिफेंट रिजर्व (टीईआर) होगा. दुधवा के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक कहते हैं कि जल्द ही यूपी सरकार की तरफ से केंद्र को प्रस्ताव भेजा जाएगा.
यूपी में प्रस्तावित तराई एलिफेंट रिजर्व के अस्तित्व में आने के साथ दुधवा टाइगर रिजर्व (डीटीआर) यूपी का अकेला राष्ट्रीय उद्यान बन जाएगा. जो चार खास जंगली प्रजातियों बाघ (Tiger), एक सींग वाले गैंडे (One horned rhino), एशियाई हाथी (Asiatic elephant) और बारासिंघा (Swamp Dear) की रक्षा और संरक्षण करेगा. केंद्रीय वन मंत्रालय में प्रोजेक्ट एलिफेंट के हेड और आईजी फारेस्ट रमेश पाण्डेय बताते हैं कि नए हाथी अभयारण्य में पीलीभीत टाइगर रिजर्व (पीटीआर), दुधवा नेशन पार्क (डीएनपी), किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य (केडब्ल्यूएस), कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य (केजीडब्ल्यूएस), दुधवा बफर जोन और दक्षिण खीरी वन प्रभाग के कुछ हिस्से शामिल होंगे.
आईजी फारेस्ट रमेश पाण्डेय ने बताया कि केंद्रीय वन मंत्रालय ने तराई हाथी रिजर्व के लिए सैद्धांतिक सहमति दे दी है और इस संबंध में यूपी सरकार से औपचारिक प्रस्ताव का इंतजार किया जा रहा है. 30 मार्च को दिल्ली में प्रस्तावित तराई एलिफेंट रिजर्व के बारे में एक प्रेजेंटेशन देने वाले दुधवा के फील्ड डायरेक्टर संजय कुमार पाठक ने ईटीवी भारत को बताया कि प्रस्तावित तराई हाथी अभ्यारण्य के बारे में एक मसौदा प्रस्ताव आगे की कार्यवाही के लिए राज्य के अधिकारियों को भेज दिया गया है.
प्रोजेक्ट एलीफेंट हेड रमेश पाण्डेय ने कहा कि दुधवा क्षेत्र में एक हाथी रिजर्व की आवश्यकता महसूस की गई है. नेपाल से आने वाले जंगली हाथियों पर एक अध्ययन से कुछ नए तथ्य सामने आए हैं. उन्होंने बताया कि प्रवासी हाथी जो पहले नेपाल सहित पड़ोसी क्षेत्रों से दुधवा, कतर्नियाघाट, पीलीभीत और अन्य तराई क्षेत्रों का दौरा करते थे और वापस नेपाल के अपने इलाकों में लौट जाते थे. वो अब दुधवा टाइगर रिजर्व में पिछले कई सालों से स्थायी रूप से रहने लगे हैं.
केंद्रीय वन मंत्रालय में प्रोजेक्ट एलिफेंट हेड रमेश पाण्डेय ने कहा कि तराई में हाथियों का ट्रांस बॉर्डर माइग्रेशन सदियों से होता आया है. नेपाल और भारत का गलियारा हाथियों का पसंदीदा गलियारा रहा है. अब इनमें कुछ भौगोलिक और मानवीय वजहों से परिवर्तन होना एक वजह हो सकता है. तथ्य यह है कि दुधवा टाइगर रिजर्व (डीटीआर) में जंगली हाथियों की संख्या 150 से अधिक हो गई है. उनकी स्थिति प्रवासी से निवासी में बदल गई है. इसके लिए इन हाथियों और उनके गलियारों के संरक्षण की तत्काल आवश्यकता है और यह तराई एलिफेंट रिजर्व बनाने से सुनिश्चित किया जा सकता है.
फील्ड डायरेक्टर डीटीआर संजय कुमार पाठक ने बताया कि दुधवा में हाथी रिजर्व की स्थापना से न केवल इको-टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि कैंप या कैप्टिव दुधवा हाथियों के प्रबंधन में भी मदद करेगा. साथ ही प्रोजेक्ट एलीफेंट के तहत हाथियों पर ही केंद्रित कार्ययोजना बनाई जा सकेगी. उन्होंने कहा कि यह मानव-हाथी संघर्षों को प्रभावी ढंग से संभालने में भी मदद करेगा. उन्होंने कहा कि हाथी परियोजना के अमल में आने के बाद इस तरह के संघर्षों को केंद्र और राज्य दोनों 60:40 शेयर के आधार पर नियंत्रित करेंगे. संजय कुमार पाठक ने कहा कि तराई हाथी रिजर्व की स्थापना के साथ अधिक से अधिक स्थानीय लोगों को हाथी संरक्षण और पर्यावरण-विकास से जोड़ने में भी मदद मिलेगी.
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दुधवा टाइगर रिजर्व दशकों से विभिन्न घरेलू और सीमा पार गलियारों के माध्यम से प्रवासी जंगली हाथियों के लिए हमेशा एक आदर्श गलियारा रहा है. प्रोजेक्ट एलिफेंट हेड रमेश पाण्डेय कहते हैं कि खाता-कतरनिया-बेलरायां-दुधवा कॉरिडोर, बसंतापुर-दुधवा कॉरिडोर, लालझड़ी (नेपाल) सथियाना कॉरिडोर, शुक्लाफांटा (नेपाल)-ढाका-पीलीभीत-दुधवा बफर जोन कॉरिडोर और कई अन्य ऐसे कॉरिडोर के माध्यम से अपने समृद्ध आवास की स्थिति के कारण हाथी हमेशा दुधवा का दौरा करते रहे हैं.
रमेश पाण्डेय ने कहा कि इनमें से 2003 में नेपाल के शुक्लाफांटा और दुधवा कॉरिडोर की खोज की गई थी. उन्होंने कहा कि वर्तमान में इनमें से कुछ गलियारे मानवीय हस्तक्षेप के कारण डिस्टर्ब होंगे. इसे बहाल करने की आवश्यकता है, ताकि मानव-पशु संघर्ष से बचा जा सके. उन्होंने कहा कि हाथी परियोजना के तहत तराई हाथी रिजर्व इन गलियारों को पुनर्जीवित करने या बहाल करने में मदद करेगा.
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