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गोला विधानसभा सीट: क्या इस बार बीजेपी बचा पाएगी गोला का किला? - उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में सत्ता हासिल करने के लिए नेताओं का एक-दूसरे के उपर आरोप-प्रत्यारोप लगाने का सिलसिला जारी है. वहीं, यदि हम लखीमपुर खीरी की गोला विधानसभा सीट की बात करें तो यहां पर चार बार भाजपा, चार बार सपा और चार टर्म कांग्रेस परचम लहरा चुकी है. 2017 में बीजेपी ने बरसों बाद गोला विधानसभा पर कब्जा किया था

गोला विधानसभा सीट
गोला विधानसभा सीट

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Published : Jan 20, 2022, 10:07 AM IST

लखीमपुर खीरी: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर राजनीति चरम पर है. पार्टियों में दल-बदल का सिलसिला जारी है. वहीं, एशिया की सबसे बड़ी चीनी मिल को अपनी आगोश में समेटे गोला विधानसभा सीट पर चार बार भाजपा, चार बार सपा और चार टर्म कांग्रेस परचम लहरा चुकी है. जंगलों और हरेभरे लहराते गन्ने के खेतों से सुसज्जित गोला सीट 15 विधानसभा चुनाव देख चुकी है. कभी हैदराबाद सीट के नाम से जानी जाने वाली गोला विधानसभा 2012 में नए परिसीमन में गोला सीट बनी. विधानसभा सीट का नाम बदला पर जनता के कमोबेश वही रही. 2017 में बीजेपी ने बरसों बाद गोला विधानसभा पर कब्जा किया था. इस बार बीजेपी क्या गोला का किला बचा पाएगी?

गोला विधानसभा यूं तो मठाधीशों का गढ़ रही. जो माननीय इस सीट से जीता कई-कई बार जीता. भाजपा और जनसंघ की जीत का इतिहास इस सीट पर रहा है. एक बार जनसंघ और चार बार भाजपा गोला सीट पर परचम लहरा चुकी है. कांग्रेस अकेले इस सीट पर पांच बार जीत कर विधानसभा पहुंची. वहीं, समाजवादी पार्टी भी चार बार इस सीट पर कब्जा कर चुकी.

कांग्रेस के जमाने में लगी बजाज की चीनी मिल यहां किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाती रही है. यही कारण रहा कि कांग्रेस पांच बार इस सीट से जीती. वहीं, समाजवादी पार्टी की सरकार में लगी दो और चीनी मिलों कुम्भी और गुलरिया ने गोला विधानसभा के किसानों और जनता को रोजगार से जोड़ा और विकास को पंख लगाए.

सबसे ज्यादा बार जीती कांग्रेस

गोला विधानसभा में सबसे ज्यादा बार जीतने का रेकॉर्ड कांग्रेस के नाम दर्ज हैं. वहीं, बसपा गोला सीट पर अभी खाता तक नहीं खोल पाई. वहीं भाजपा और जनसंघ को जोड़ दिया जाए तो चार बार भाजपा और एकबार जनसंघ ने जीत दर्ज की. समाजवादी पार्टी ने भी मंडल-कमंडल के बाद चार बार गोला सीट पर जीत दर्ज की है. एक बार जनता पार्टी भी गोला सीट पर जीती है.

गोला सीट ने दिया यूपी को मंत्री भी

गोला विधानसभा ने यूपी विधानसभा को एक मंत्री भी दिया. 1989 में रामकुमार वर्मा पहली बार भाजपा के टिकट पर जीते. 1991 में फिर भाजपा के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे तो कल्याण सिंह की सरकार में पीडब्ल्यूडी मिनिस्टर बने. रामकुमार वर्मा ने 1993 में फिर तीसरी बार जीत दर्ज की. गोला विधानसभा सीट छोड़ निघासन सीट का रुख किया था.

कब कौन बना विधायक

1962-रामभजन शर्मा कांग्रेस
1967-राजराजेश्वर शुक्ल-जनसंघ
1969-माखनलाल मिश्र-काँग्रेस
1974-माखनलाल मिश्र-काँग्रेस
1977-राघवराम मिश्र-जनता पार्टी
1980-रामभजन शर्मा-काँग्रेस
1985-रामभजन शर्मा-काँग्रेस
1989-रामकुमार वर्मा-भाजपा
1991-रामकुमार वर्मा-भाजपा
1993-रामकुमार वर्मा-भाजपा
1996-अरविंद गिरी-सपा
2002-अरविंद गिरी-सपा
2007-अरविंद गिरी-सपा
2012-विनय तिवारी-सपा
2017-अरविंद गिरी-भाजपा


139 गोला विधानसभा सीट

कुल मतदाता-395433
पुरुष-208181
महिला-187226
अन्य-26

ये है गोला का जातीय गणित

गोला विधानसभा क्षेत्र में वैसे तो कुर्मी वोटर डिसाइडिंग होता है, लेकिन ब्राह्मण, मुस्लिम, दलित और ओबीसी भी गोला सीट पर जीतने वाले को विधायक बनाकर लखनऊ भेजेगा. करीब चार लाख वोटरों वाला गोला विधानसभा क्षेत्र पिछले कई सालों से समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा. मौजूदा भाजपा विधायक अरविंद गिरी पहले तीन बार 1996, 2002, 2007 में समाजवादी पार्टी से गोला सीट से विधायक रह चुके हैं. इसके बाद कई साल तक सियासी वनवास के बाद 2017 में अरविंद गिरी मोदी लहर में बीजेपी का कमल थाम चौथी बार विधायक बन गए. दूसरे नम्बर पर समाजवादी पार्टी रही थी. इस बार फिर से अरविंद गिरी भाजपा से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे. पर बड़ा सवाल है कि क्या अरविंद गिरी और भाजपा इस बार गोला का सियासी किला फतेह कर पाएंगे?

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