लखीमपुर खीरी :मितौली के सैकड़ों लोगों ने भी राम मंदिर आंदोलन में हिस्सा लिया था. कस्बे के अशोक कुमार मिश्रा भी इनमें से एक हैं. वह विवादित ढांचा विध्वंस के गवाह रहे हैं. घटना के दौरान वह ढांचे की एक ईंट व प्लास्टर के कुछ टुकड़े उठा लाए थे. इसे आज भी उन्होंने संभाल कर रखा है. जिस दिन कार सेवकोंं पर गोलियां चलाई गईं थीं, उस दिन वह रामनगरी में ही मौजूद थे.
चार दिसंबर को अयोध्या पहुंची थी रामभक्तों की टोली :राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले कस्बे के अशोक कुमार मिश्रा उस समय वह विश्व हिन्दू परिषद के खंड प्रमुख व दैनिक सांस्कृतिक क्रांति पत्र के संपादक थे. वह बताते हैं कि श्याम नरेश सिंह संडिल्वा, बाबूराम भिखनापुर सहित हम 17 लोग 4 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कारसेवक पुरम पहुंच गए थे. वहां कहा गया कि कारसेवा सरयू की बालू से की जाएगी. सब थोड़ी-थोड़ी पन्नियों में बालू लेकर सभा स्थल पर पहुंचे. लक्ष्मण टीला पर सभास्थल में बने मंच पर लालकृष्ण आडवाणी, उमाभारती, साध्वी ऋतंभरा सहित कई लोग मौजूद थे.
आज भी संभाल कर रखी है ढांचे की निशानी. 'एक धक्का और दो' कहते ही आगे बढ़ने लगे कारसेवक :ईटीवी भारत से बातचीत में कस्ता निवासी अशोक कुमार मिश्रा ने बताया कि साध्वी ऋतंभरा के मंच से 'एक धक्का और दो' कहते ही कि कारसेवक विवादित ढांचे की तरफ दौड़ पड़े. जिसे जो मिला औजार बनाने लायक उठा लिया. हम लोगों के पास कोई औजार नहीं थे. पुलिस के बैरिकेड तोड़कर बेलचा आदि बनाया गया. दिन के 11 बजे से विवादित ढांचे के गिराने का काम शुरू हो गया. शाम पांच बजे विवादित ढांचा गिरा दिया गया. रात दो बजे तक टेंट वाला मंदिर बनाकर रामलला को विराजमान कर पूजा भी शुरू कर दी गई थी. घर वापसी में विवादित ढांचे के मलबे से एक ईंट व प्लास्टर के कुछ टुकड़े उठा ले आए थे. इसे उन्होंने संभाल कर रखा है.
कारसेवा करने वाले कई लोगों के पास हैं निशानियां :गौरी शंकर मंदिर परिसर में हुई अशोक सिंघल की सभा ने क्षेत्र के आमजन में जुनून भर दिया. क्षेत्र से सैकड़ों की तादाद में कारसेवक अयोध्या के लिए निकले थे, लेकिन उन्हें रास्ते में ही रोककर अस्थाई जेलों में बंद कर दिया गया. कस्ता के ही रमाशंकर त्रिपाठी व उनके पुत्र प्रेम प्रकाश त्रिपाठी जो शिव सैनिक थे, कारसेवा में कई बार जेल भी गए. राम मंदिर आंदोलन में राम औतार मिश्रा, चन्द्र भाल वर्मा, द्वारिका प्रसाद वर्मा, सुरेंद्र बहादुर सिंह कस्ता, ओमप्रकाश नि. डहर, दिनेश शुक्ल, श्री केशन गौतम, फूलचंद गौतम नि. गरगटिया, फत्तेलाल, सोहन लाल शुक्ला, शिव बालक दिक्षित, राजेन्द्र सिंह तोमर निवासी परसेहरा आदि जेल भेजे गए. इनमें से कुछ लोग अब नहीं रहे. जो लोग हैं अपनी अपनी स्मृतियां साझा कर रहे हैं. कस्ता के रामऔतार मिश्रा बताते हैं कि आन्दोलन के दौरान साध्वी ऋतंभरा कस्ता आई थीं. जेल जाने के डर से कस्ता के हम पांच लोग ही साध्वी से मिलने पंहुचे थे.
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