लखीमपुर खीरी: तराई में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व राजा लोने सिंह ने किया था. मितौली के राजा लोने सिंह ने जंगें आजादी का इलाके में बिगुल बजाया था. मेरठ से शुरू हुई स्वतंत्रता संग्राम की आग खीरी जिले में निर्धारित तिथि से पहले ही भड़क उठी थी, जिसका नेतृत्व मितौली के राजा लोने सिंह ने किया था और जीवन भर अंग्रेजी सेना से लोहा लेते रहे.
यह उस दौर के क्रांतिकारियों की ही हिम्मत थी कि उन्होंने अपने शौर्य के बूते इस इलाके को फरवरी 1856 से आठ नवंबर 1858 तक यानी पूरे 33 महीने अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त रखा था.
स्वतन्त्रता आंदोलन के इतिहास की मानें तो वर्ष 1856 फरवरी में अवध की नवाबी खत्म कर उनका पूरा इलाका कंपनी सरकार में मिला लिया गया था. उस वक्त खीरी अवध की नवाबी के अधीन और मुख्यालय मोहम्मदी में था. यह वह दौर था कि जब तमाम रियासतों के राजा स्वतंत्र होने के लिए संघर्ष के लिए तैयार हो गए. तराई में इस प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अगुवाई मितौली के राजा लोने सिंह ने की.
31 मई 1856 में क्रांतिकारी सेनाओं ने शाहजहांपुर पर अधिकार कर लिया. धीरे-धीरे कंपनी सरकार ने खीरी की तरफ पेअर पसारे पर खीरी में कम्पनी सरकार से लोहा लेने राजा लोने सिंह खड़े हो गए. अंग्रेजों की जड़ें उखड़ गईं. शाहजहांपुर में क्रांति की ज्वाला भड़की तो वहां से बचे हुए अंग्रेज सैनिक कमांडर जैकिंग्स के साथ भागकर पुवायां के राजा के यहां छिप गए थे.
जब यह बात अंग्रेजों को पता चली तो मोहम्मदी के अंग्रेज अधिकारी काफी डर गए. क्रांतिकारियों से घबराकर उन्होंने अपनी पत्नी-बच्चों को एक सैनिक टुकड़ी के साथ मितौली में राजा लोने सिंह के यहां शरण लेने के लिए भेज दिया. राजा लोने सिंह यह देखकर असमंजस में पड़ गए कि जहां से स्वतंत्रता आंदोलन का संचालन हो रहा है, वहां किस तरह शत्रुओं को शरण दी जाए. लेकिन उन्होंने भारतीय परंपरा का निर्वहन करने का निर्णय लिया.
उन्होंने शरणागत महिलाओं बच्चों को सम्मान सहित अपने क्षेत्र के कचियानी कोठी मेें सुरक्षित रहने की व्यवस्था की. महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त होने के बाद अंग्रेजों ने राजकोष भी राजा लोने सिंह के यहां भेजना चाहा. जोश में भरे क्रांतिकारियों ने एक जून 1856 को रास्ते में ही अंग्रेजों का यह खजाना लूट लिया. इस समय कंपनी सरकार के खजाने में एक लाख दस हजार रुपये थे.