लखीमपुर खीरीः नेपाली घुमंतू हाथी (Nepali nomadic elephants) इन दिनों लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) के जंगल में उत्पात मचा रहे हैं. वह नेपाल नहीं लौट रहे हैं. ये हाथी नेपाल से दुधवा टाइगर रिजर्व से होते हुए दक्षिण खीरी वन प्रभाग के मोहम्मदी रेंज के जंगल तक पहुंच गए हैं. वह पिछले पांच महीनों से किसानों के गन्ने के खेतों को तहस-नहस कर रहे हैं. नेपाली हाथियों की वजह से वन विभाग और किसान खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं.
दरअसल, दुधवा टाइगर रिजर्व बफर जोन और दक्षिण खीरी वन प्रभाग के जंगल से निकलकर किसानों के गन्ने के खेतों को तबाह करने वाले जंगली हाथियों को गन्ने की दो खास प्रजातियों का स्वाद ऐसा मुंह लगा है कि वह इलाका छोड़ने को तैयार नहीं हैं. दरअसल, करनाल गन्ना शोध संस्थान की ओर से विकसित सीओ 15023 गन्ना प्रजाति हाल के दो सालों से तराई के खीरी और आसपास के जिलों में किसानों ने बोनी शुरू की है. करनाल से ही विकसित सीओ 0238 वैरायटी में रेड रॉट नामक बीमारी लग जाने से बहुतायत क्षेत्रफल में अब इसे कम बोया जा रहा है. इसके विकल्प के तौर पर शाहजहांपुर गन्ना शोध संस्थान से विकसित Cos13235 वैराइटी बोई जा रही है. इस प्रजाति के गन्ने का स्वाद नेपाली हाथियों को बहुत पसंद आ रहा है.
दक्षिण खीरी वन प्रभाग के प्रभागीय वन अधिकारी संजय बिस्वाल कहते हैं कि नेपाली हाथी आम तौर पर एक महीने या 20-25 दिन रहकर वापस चले जाते थे. इस बार हाथी वापस जाने का नाम नहीं ले रहे हैं. हाथियों को इस इलाके की गन्ने की नई प्रजातियां काफी भा गईं हैं. उन्होंने बताया कि नेपाल से सटे तराई इलाके में बसे यूपी के लखीमपुर खीरी जिले में नेपाल के वर्दिया और शुक्लाफांटा नेशनल पार्क से हर साल घुमंतू हाथियों का समूह आता है. घुमंतू दल अब किशनपुर सेंचुरी को पार कर दक्षिण खीरी वन प्रभाग के मोहम्मदी रेंज के जंगल तक पहुंच रहा है. मोहम्मदी रेंज के जंगल आबादी से सटे जंगल है. यहां जंगल के किनारे कई गांव बसे हुए हैं. हाथियों के आने से हर साल यहां गन्ने की फसल बड़े पैमाने पर बर्बाद हो रही है. बीते चार माह से हाथियों का घुमंतू दल यहां से जाने का नाम नहीं ले रहा है.