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देश की आजादी के लिए 24 साल की उम्र में फांसी पर चढ़े थे राजनरायण

देश आजादी की 73वीं सालगिरह मना रहा है. ये आजादी उन सभी अमर शहीदों की देन है, जो अपने प्राणों की आहुति देकर देश को आजाद कराने का एक मजबूत नींव रखी. इसी में से एक हैं उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के आंदोलनकारी राजनारायण जो देश को आजाद कराने के लिए महज 24 साल की उम्र में फांसी के तख्ते पर झूल गए थे.

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Published : Aug 15, 2019, 8:19 AM IST

शहीद राजनरायण मिश्र.

लखीमपुर खीरी:देश बर में भारत छोड़ों आन्दोंलन आगे बढ़ रहा था. एक तरफ गांधीजी अहिंसावादी आंदोलन चला रहे थे तो दूसरी ओर खीरी जिले से 21 साल के राजनरायण भगत सिंह की राह पर आजादी की मशाल थामे आगे बढ़ रहे थे.

शहीद राजनरायण 24 साल में फांसी पर चढ़े.

विद्रोह के लिए हथियार इकट्ठे करने लगे
जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर भीखमपुर गांव 1940 से ही आजादी के आंदोलन में कूद पड़ा था. आजादी की इस विजययात्रा की अगुआई कर रहे थे राजनरायण. राजनरायण के बड़े भाई बाबूराम मिश्र भी अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के आंदोलन में कूद चुके थे. इस दौरान राजनरायण ने आसपास के युवाओं को भी आजादी के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया.

राजनरायण ने अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए सशस्त्र विद्रोह करने का प्लान बनाया,लेकिन इसके लिए हथियारों की जरूरत थी. तो राजनरायण ने हथियार इकट्ठा करना शुरू कर दिया.

जबतालुकेदार ने राजनरायण पर तान दी बंदूक
बड़े-बड़े तालुकेदारों और जमीदारों के घर जा कर यह बंदूकें मांगना शुरू कर दीं. कुछ लोग अपनी मर्जी से बंदूकें दे देते और जो नहीं देते उनसे राजनरायण जबरदस्ती बंदूके छींन लेते. इसी क्रम में एक दिन राजनरायण महमूदाबाद के तालुकेदार के यहां बंदूक लेने पहुंच गए. उन्होने बंदूक देने से इनकार कर दिया. उल्टे राजनरायण पर ही बंदूक तान दी.

ब्रिटिश पुलिस ने तलाश शुरू कर दी
राजनरायण के सीने में तो आजादी की आग धधक रही थी. राजनरायण ने उल्टे बंदूक छींन तालुकेदार की हत्या कर दी और वहां से फरार हो गए. अंग्रेजों को खबर लगी तो राजनरायण की तलाश शुरू कर दी. ब्रिटिश पुलिस भी राजनरायण की तलाश शुरू कर दी.

भेष बदल के घूमते रहे राजनरायण
राजनरायण यूपी और देश के कई हिस्सों में भेष बदल घूमते रहे. अंग्रेजी हुकूमत राजनरायण को सरगर्मी से तलाश कर रही थी. घर मे राजनरायण नहीं मिले तो अंग्रेज अफसर ने भीखमपुर गांव में राजनरायण के घरवालों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया.

गांधी जी के अनशन में हुए शामिल
राजनरायण अपना हुलिया बदले आजादी के दीवानों के सम्पर्क में रहे. आगा खां के महल में जब गांधी जी 21 दिन का ऐतिहासिक अनशन कर रहे थे तो राजनरायण मिश्र को हड़ताल कराने के आरोप में मुंबई में छह महीने की सजा दे दी गई.

24 साल की उम्र में हो गई फांसी
राजनरायण ने ये सजा अपना नाम बदल कर ही पूरा की. अक्टूबर 1943 में जेल से छूटने के बाद राजनरायण जब यूपी में लौटे, तो उन्हें मेरठ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. राजनरायण पर देशद्रोह का मुकदमा चला, 27 जून 1944 को लखनऊ की अदालत में राजनरायण को फांसी की सजा सुनाई गई.राजनारायण की उम्र उस वक्त महज 24 साल थी.

फांसी से पहले बढ़ गया था वजन
वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी परिवार के एन के मिश्रा बताते हैं कि लखनऊ जेल में फांसी के पहले जब उनकी पत्नी राजनरायण से मिलने गई तो उनकी गोद में छह महीने का बच्चा था. राजनरायण ने बच्चे के सर पर हाथ फेरते हुए कहा कि मैं चाहता हूं कि यह भी आजादी के आंदोलन में कूदे और हिंदुस्तान के लिए आजादी की लड़ाई लड़े. इसके बाद फांसी के फंदे पर दो बार वंदे मातरम का नारा लगाते हुए राजनरायण झूल गए.कहा जाता है कि जेल में रहते हुए फांसी की सजा होते हुए भी राजनरायन का वजन फांसी के पहले छह पौंड बढ़ गया था.

जिस स्वतंत्रता आंदोलन को मंगल पाण्डेय ने 1857 चिंगारी दी थी. उस चिंगारी ने देशभर में अंग्रेजों का तख्तोताज उखाड़ फेंका. राजनारायण मिश्र की फांसी आजादी के आंदोलन की आखिरी फांसी थी. खीरी जिले का 24 साल का नौजवान देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के तख्ते पर झूल गया.

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