लखीमपुर खीरी: यूपी के सबसे बड़े जिले लखीमपुर खीरी में राम बारात निकली तो कलीम भी राम बारात के स्वागत में आए और करतार भी. हजारों लोगों ने राम बारात का स्वागत किया. न कोई मजहब की दीवार थी और न जाति बिरादरी की. राम ही सबके थे.
हजारों लोगों ने राम बारात का स्वागत किया. कलीम मियां घण्टों से खड़े राम बारात का इंतजार कर रहे थे. उनके नाती, पोता, बेटी और बहू सब उनके साथ राम बारात देखने आए. कलीम कहते हैं कि हर साल वो परिवार समेत राम बारात देखने आते हैं. राम के नाम पर देश भर में सियासत हो रही है. भले ही हिन्दू-मुसलमान के नाम पर सियासतदां अपनी रोटियां सेंक रहे हों, लेकिन आज भी हिंदुस्तान में राम आम हिंदुस्तानी के दिल मे बसते हैं. खीरी में आज राम बारात निकलनी है तो पूरा शहर जगमग रोशनी से दुल्हन की तरह सजाया गया. कलीम भी परिवार समेत घण्टों से राम बारात की राह देख रहे.155 साल पुरानी हो गई खीरी की राम बारातलखीमपुर खीरी जिले की रामलीला को 155 साल पूरे हो गए हैं. खीरी जिले में सेठ गया प्रसाद ट्रस्ट रामलीला को डेढ़ सौ सालों से पूरी शिद्दत से कराता चला आ रहा है. ट्रस्ट के सर्वराहकार विपुल सेठ बताते हैं कि राम बारात और रामलीला मथुरा भवन से हर साल ही धूमधाम से होती है. पात्र खुद ब खुद चले आते हैं. कोई राम बनता है तो कोई रावण, कोई सीता माता और कोई जटायु.अंग्रेज कलेक्टर की पत्नी ने शुरू कराई थी रामलीलाबताया जाता है कि खीरी की रामलीला को एक अंग्रेज कलेक्टर की पत्नी ने 155 साल पहले शुरू कराया था. अंग्रेज कलेक्टर की पत्नी ने बनारस के रामनगर में रामलीला देखी थी और खीरी में बनारस के रामनगर की तर्ज पर रामलीला शुरू कराई. तभी से मथुरा भवन हर साल रामलीला का आयोजन कराता चला आ रहा. पूरे 155 सालों से बिना रुके लगातार.खत्री महासभा और वीमेंस क्लब पर है राम बारात के स्वागत का दारोमदारहर साल होने वाली रामलीला में राम बारात के स्वागत का जिम्मा खत्री महासभा पूरी तन्मयता और लगन से निभाता है. खत्री युवा संगठन हो या फिर खत्री वूमेंस क्लब हर कोई अपनी जिम्मेदारी बखूबी समझता है. राम बारात का जगह-जगह स्वागत होता है, प्रसाद बांटा जाता है, आरती उतारी जाती है और पूरे आदर और सत्कार के साथ उनके चरण वंदन भी किए जाते हैं. हर कोई राम के दर्शन को बेताब रहता है. जगह-जगह आतिशबाजी होती है. किन्नर भी इस राम बारात में शामिल होते हैं. पूरा शहर राम मय हो जाता है. न कोई छोटा रहता न बड़ा. जाति और मजहब की दीवारें भी टूट जाती हैं, क्योंकि मामला राम का जो है. हिन्दू और मुसलमान सब कंधे से कंधा लगाकर राम की एक झलक पाने को बेताब होते हैं.