लखीमपुर खीरी: जिले में विकास भवन के पास सब्जी की यह दुकान उन जुझारू बेटियों की है, जिन्होंने हालात के आगे घुटने नहीं टेके. बल्कि हालातों से बराबर लोहा लिए हुए हैं. बहादुर नगर मोहल्ले की यह बहादुर बेटियां बरखा और अंशिका है, जो हालात से रोज जंग लड़ती हैं.
लखीमपुर खीरी में सब्जी की दुकानें बेटियां चलाती हैं. बहादुर बेटियों ने खुद संभाली जिंदगी की नाव
अंशिका और बरखा के पिता बीमार रहते हैं, तो बेटियां, मां-बाप का सहारा बन गईं. जिंदगी की जद्दोजहद में रोज जूझती हैं. अपने मां-बाप के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मजबूती से खड़ी रहती हैं. पिता बीमार हैं तो जिंदगी की मझधार में कहीं परिवार की नाव की डगमगा न जाए, इसलिए पतवार इन बहादुर नगर की बहादुर बेटियों ने खुद मजबूती से सम्भाल ली. पिता की ये सब्जी की दुकान खुद चलाती हैं और जिंदगी की नाव को बखूबी सम्भाले हुए हैं.
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हम बेटियां,बेटों से कम नहीं हैं
13 साल की बरखा और 10 साल की अंशिका मिलकर अपने पिता की सब्जी की दुकान चलाती हैं. आपने कपूर एंड संस गुलाटी की बात तो सुनी होगी, पर यह कश्यप एंड डॉटर्स की सब्जी की दुकान है. बरखा कहती हैं कि बेटियां बेटों से कहां कम हैं, हम पापा की भरपूर मदद करते हैं.
बेटियों के मां-बाप को अपनी बेटियों पर फख्र है
शहर के बहादुर नगर मोहल्ले में इन जुझारू बेटियों का छोटा सा घर है. परिवार 400 रुपये किराए के एक छोटे से कमरे में रहता है. बरखा और अंशिका के पिता राजकुमार कश्यप की चार बेटियां हैं. बरखा अंशिका के अलावा अंजली और मंशा दो छोटी बहनें और मां गोमती इनके साथ रहती हैं. कहा जाता है कि बेटियां शान हैं, बहार हैं, उजाला हैं, मान और सम्मान हैं, बेटियां गुलशन में महकती फिजा भी हैं. बरखा और अंशिका के मां बाप भी अपनी बेटियों पर फख्र करते हैं.
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ये बेटियां बड़े ही आत्मविश्वास के साथ सब्जी की दुकान चलाती हैं
बरखा कक्षा 7 में अबुल कलाम आजाद स्कूल में पढ़ती हैं, वहीं अंशिका कक्षा छह में पढ़ती हैं. यह दोनों लड़कियां रोज स्कूल जाती हैं. तब तक मां गोमती देवी सब्जी की दुकान संभालती हैं. स्कूल से आकर बरखा और अंशिका सब्जी की दुकान पर आ जाती हैं. अपने मां-बाप का सहारा बनती हैं और बड़े आत्मविश्वास से सब्जी की दुकान चलाती हैं. घर छोटा है, तो कहीं भी बैठ कर पढ़ लेती हैं. दुकान में किताबें भी लेकर आती हैं, जब ग्राहक नहीं होते हैं पढ़ती भी हैं.
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