कुशीनगर : जिले के विकासखंड दुधई क्षेत्र के ग्राम पंचायत जंगल नौगावां के प्रधान और सेक्रेटरी द्वारा शौचालय के नाम पर 52 लाख 62 हजार रुपये का गबन किया गया. लेकिन मुकदमा दर्ज होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गई. विभागीय जांच में आरोपियों के दोषी पाये जाने के बाद एडीओ पंचायत की तहरीर पर गंभीर धाराओं के बावजूद पुलिस अभी ग्राम प्रधान और सचिव पर मेहरबान है. 430 शौचालयों का निर्माण कराने और 17 अपूर्ण शौचालय को बनवाने के लिए कुल 52 लाख 62 हजार रुपये प्रधान व सेक्रेटरी को दिए गए थे. लेकिन उन लोगों ने पैसे लेने के बाद भी कोई निर्माण नहीं करवाया. ग्राम प्रधान राधिका देवी व सेक्रेटरी उमेश चंद्र राय के खिलाफ आईपीसी की धारा 406 व 409 के तहत मुकदमा पंजीकृत किया गया है. लेकिन कार्रवाई नहीं हुई है.
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'भ्रष्टाचार होने से बचाने वाले विभाग बेदाग कैसे'
केंद्र और प्रदेश की सरकार की ड्रीम प्रोजेक्ट में शुमार स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकार की गावों में घर-घर शौचालय बनवाने की योजना है. भ्रष्टाचार के दीमकों ने सरकार के पैसे को कागजी आकड़ों में पानी की तरह बहाया है. लेकिन जरूरतमंद अभी भी इस योजनाओं से महरूम हैं. ग्रामसभा नौगावा में कुल 642 शौचालयों का निर्माण होना था. लेकिन गांव में लाभार्थियों को शौचालय का लाभ नहीं मिला. इसके अलावा ठेकेदारी प्रथा से गांव में जो शौचालय बने उसमें मानक और गुणवत्ता को ताक पर रखकर घटिया निर्माण कराया गया.
642 शौचालय में 430 धरातल पर ही नहीं
ग्रामीणों के लगातार शिकायत के बाद जिला स्तरीय अधिकारियों की टीम ने जांच की तो पता चला कि ग्राम प्रधान ने सचिव के साथ मिलकर शौचालय की 52 लाख 62 हजार रुपये डकार लिए हैं. अधिकारियों की रिपोर्ट पर शासन ने धनराशि भी आवंटित कर दी है. शिकायत के बाद गांव में जांच करने के लिए टीम पहुंची. गांव में 642 शौचालय के सापेक्ष 195 शौचालय पूर्ण किए गए थे जबकि 430 शौचालय धरातल पर बनाए ही नहीं गए थे. इसके अलावा 17 शौचालय अपूर्ण पाए गए थे. जांच के दौरान ग्राम प्रधान राधिका देवी व सचिव उमेश चंद्र राय द्वारा कुल धनराशि 52 लाख 62 हजार रुपये के गबन का मामला पुष्ट हुआ है. लेकिन मामले में विभाग ने सचिव पर निलंबन की कार्रवाई करते हुए ग्राम प्रधान राधिका देवी व सेक्रेटरी उमेश चंद्र राय पर मुकदमा दर्ज कराया है. एक माह गुजर जाने के बाद भी विशुनपुरा पुलिस इन दोनों गबनकारियों को गिरफ्तार नहीं कर रही है. जबकि आईपीसी की धारा 406 व 409 संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है.
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जानिए क्या है धारा 406 और 409
कानून के जानकारों के अनुसार आईपीसी की धारा 406 विश्वास के आपराधिक हनन से संबंधित है. यह एक गैर-जमानती संज्ञेय अपराध है. प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है. इसी तरह लोक सेवक या बैंक कर्मचारी, व्यापारी या अभिकर्ता द्वारा विश्वास का आपराधिक हनन करने पर उक्त व्यक्तियों को आइपीसी की धारा 409 में निरुद्ध किया जाता है. यह भी गैर-जमानती संज्ञेय अपराध है. प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है. यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है. इसमें 10 साल का कारावास और आर्थिक दण्ड का प्राविधान है.