कौशांबी:भगवान भोलेनाथ का महीना सावन (sawan 2021) चल रहा है. भक्त अपने आराध्य को मनाने के लिए शिव मंदिरों में पहुंच रहे हैं. भारतवर्ष में कई ऐतिहासिक(historical) और पौराणिक मंदिर (mythical) स्थापित हैं जो अपनी खास शैली के लिए विख्यात हैं. ऐसा ही एक मंदिर कौशांबी (Kaushambi) जिले में है, जहां शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग अपने आप में खास है. ये 'खंडित शिवलिंग' भक्तों की आस्था का प्रतीक बना हुआ है. इस मंदिर का जितना पौराणिक महत्व है उतना ही ऐतिहासिक भी है. शिव भक्तों की माने तो यहां जो भी भक्त अंतर्मन से पूजा-अर्चना करता है, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
वैसे तो हिंदू धर्म (Hindu Religion) में खंडित मूर्तियों की पूजा करना वर्जित है, लेकिन कौशांबी स्थित कड़ा धाम के नजदीक गंगा (Ganga River) किनारे कालेश्वर महादेव (Kaleshwar Mahadev Temple) का मंदिर स्थित है. इस मंदिर में स्थापित खंडित शिवलिंग की भक्त पूजा अर्चना करने पहुंचते हैं. इस शिवलिंग के खंडित होने से एक वृतांत जुड़ा है. कहते हैं कि महाभारत काल (Mahabharata period) में कड़ा धाम को कारकोटक वन (karkotak Van) के नाम से जाना जाता था. इसी करकोटक वन में पांडव पुत्रों ने अज्ञातवास का कुछ समय व्यतीत किया था. अज्ञातवास के दौरान जब धर्मराज युधिष्ठिर ( Dharmaraj Yudhishthira) संकट में फंसे तो उन्होंने शिव की आराधना करने के लिए यहीं पर शिवलिंग की स्थापना की. उन्होंने जलाभिषेक कर पूजा अर्चना की. आज ये स्थान कालेश्वर महादेव मंदिर से विख्यात है.
मंदिर के ऐतिहासिक पक्ष को देखे तो पता चलता है कि कालांतर में जब औरंगजेब (Mughal Emperor Aurangzeb) ने भारत के मंदिरों पर आक्रमण (Attack on temples) किया तो उसके सैनिकों ने कालेश्वर मंदिर पर भी धावा बोला. मंदिर के मंहत बताते हैं कि जब औरंगजेब की सेना ने आक्रमण किया तो तत्कालीन महंत उमराव गिरी उर्फ नागा बाबा ने मुगलिया सेना से मंदिर को बचाने के लिए पहले तो भगवान शिव की आराधना की, लेकिन सैनिकों को पास आता देख वो नाराज हो गए. और उन्होंने अपने फरसे से शिवलिंग पर प्रहार कर दिया. वो बताते हैं कि शिवलिंग से भारी संख्या में मधुमक्खियों का झुंड निकला और मुगल सैनिकों पर हमला कर दिया. माना जाता है कि तभी से ये शिवलिंग खंडित है. उसी दौर से यहां खंडित शिवलिंग की पूजा अर्चना अनवरत होती आ रही है. उमराव गिरी महाराज उर्फ नागा बाबा जिन्हें, आल्हा उदल का ग्रुप भी कहा जाता है. उनके बारे में कहा जाता है कि जब वे मंदिर के महंत बने तभी से शिव की आराधना में लीन रहने लगे थे.
इसे भी पढ़ें-सावन विशेष: जानिए, क्यों बरेली को कहते हैं नाथ नगरी