कौशांबी:मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना इसकी जीती जागती तस्वीरें कौशांबी की रामलीला में देखने को मिलती है. यहां मुस्लिम समाज के लोग उनके मोहल्लों में रामलीला के पहुंचते ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण का स्वागत करते हैं. इस बारे में व्यापार मण्डल और अंजुमन के युवा राजिश जैदी ने बताया कि स्वागत का सिलसीला हमारे पूर्वजों ने सालो पहले किया था. यह एख अच्छी परंपरा है. भगवान राम की सवारी आते ही सारे मुस्लिम युवा उनका स्वागत सत्कार करते हैं. मुहर्रम में भी हमारे हिंदू भाई सारी व्यवस्थाओं को देखते हैं. भले हम किसी धर्म मजहब को मानने वाले हों. लेकिन, आपसी भाईचारे से यदि रहा जाए तो पूरा भारत अमन और शांति के साथ चलेगा.
कौशांबी जिले का दारानगर कस्बा ऐतिहासिक कस्बा माना जाता है. क्योंकि, मुगल बादशाह दारा शिकोह यहां आए थे. उनके आने पर इस कस्बे को दारानगर कहा जाने लगा. यहां उसी समय की कई धरोहर आज भी मौजूद हैं. इनमें से दो मुख्य रूप से जानी जाती है, एक यहां का दशहरा पर्व और दूसरा मुहर्रम.
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आम जगह पर रामलीला मंच पर होती है, लेकिन दारानगर में होने वाली रामलीला 12 दिन तक गांव में घूम-घूम कर अलग-अलग स्थानों पर मनाई जाती है. पात्रों से रामायण के मुख्य अंश का चित्रण किया जाता है. वहीं, रामलीला के आठवें दिन सीता हरण का कार्यक्रम होता है. इस दौरान भगवान राम का रथ सैयद वाडा मोहल्ले से होकर गुजरता है तो यहां की पुरानी अंजुमन असदिया के युवा सदर असद सगीर के निर्देशन पर भगवान का स्वागत मुस्लिम समाज के लोग करते हैं.
इसमें उनके साथ शामिल पंडितों की टोली जो रामायण की पंक्तियां गाते हैं, उनके लिए मुस्लिम समाज के लोग फल और जलपान की व्यवस्था करते हैं. अंजुमन के युवाओं की तरफ से सबसे पहले भगवान को लौंग, इलायची, काजू, बादाम देकर स्वागत किया जाता है. हिन्दू मुस्लिम एकता की ऐसी तस्वीरें देखने को कम मिलती है. यहां मोहल्ले में खड़े होकर रामायण की पंक्तियों को अंजुमन असदिया के लोग सुनते हैं और अपने मोहल्ले में भगवान राम का स्वागत करते हैं, वह भी बिना किसी भेदभाव के साथ.
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