कौशांबी:सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने एक माटी के लाल को उसकी जड़ों तक पहुंचा दिया. यूरोपीय महाद्वीप के छोटे से देश माल्टा में जन्मे भारतीय मूल के हेंड्रिक कालका कौशांबी में अपने पैतृक गांव पहुंचे. इस दौरान उन्होंने गांव के लोगों से मुलाकात की और अपने परिवार के बारे में जानकारी हासिल की. हेंड्रिक गांव के लोगों से मिलने के बाद तहसील प्रशासन के पास भी पहुंचे, जहां उन्होंने अपने परिवार के बारे में सरकारी दस्तावेज खोजने की कवायद शुरू की. हेड्रिक अपने गांव में अपने पुरखों की याद में रोजगार, शिक्षा में निवेश कर ग्रामीणों की जिंदगी में नया सबेरा लाना चाहते हैं.
सिराथू तहसील के कनवार गांव से 1895 में अंग्रेज बड़ी संख्या में गिरमिटिया मजदूरों को अपने साथ सूरीनाम में ले गए. इसमें सीताराम लोध भी शामिल थे. तमाम यातनाएं झेलते हुए सीताराम ने अपने बच्चों और परिवार का भरण पोषण किया. सीताराम ही हेंड्रिक कालका के दादा थे. हैंड्रिक ने बताया कि जब वह 12 वर्ष के थे, तब उनके दादा का निधन हो गया था. बचपन में हैंड्रिक अपने दादा से पैतृक देश भारत और कौशांबी के कनवार गांव के बारे में सुनते आए थे. मेरे मन में हमेशा से अपने पुरखों की मिट्टी देखने , अपने लोगों से मिलने, जुड़ने की इच्छा थी.