कौशांबी: आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी सियासत और सियासी दल के नेता किसानों के विकास की बात करते तो हैं ! मगर क्या सच में उनका विकास हो रहा है. एक तरफ नदियों का पानी उफान पर है. लोग बाढ़ की वजह से काफी परेशान हैं. वही गंगा-यमुना दो नदियों के बीच बसा कौशांबी जिले का किसान अपने खेतो में बूंद-बूंद पानी पहुंचाने के लिए तरस रहा है.
नहरों में करीब दो दशक से पानी नही आ रहा. ऐसा नहीं है कि जिले में नहरों की कमी है. हर तरफ नहरों का जाल बिछा है, लेकिन फिर भी किसान की खेती पानी बिना सूख रही है. कौशांबी जिले में 7 बड़ी नहर और 20 छोटी नहरें हैं. नदियां उफान पर होने और जगह-जगह बाढ़ आने के दौर पर भी कौशांबी जिले की नहरें सूखी पड़ी हुई हैं. इस स्थिति में यह कहा जा सकता है कि नहरों में नेताओं के सियासी वायदों का ही पानी बह रहा है और किसानों की फसल सूख रही है.
जिले की सबसे प्रमुख नहर निचली रामगंगा और जोगापुर पंप कैनाल नहर में दो दशक से पानी नहीं आया. दोनों नहरें फतेहपुर जिले की सीमा से निकलती हैं. हैरत की बात तो यह कि नहर विभाग के कागजों मे हर साल सिल्ट सफाई के नाम पर लाखों रुपये निकाल लिया जाता है. जबकि हकीकत में जिले की दोनों प्रमुख नहरों मे बड़ी-बड़ी घास और खर पतवार सरकारी दावों की पोल खोलने के लिए काफी हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिले के किसानों की दुखती रग नहर मे पानी के समस्या को दूर करने का वादा कर वोट बटोर लिया था, लेकिन नरेंद्र मोदी दूसरी बार भी प्रधानमंत्री तो बन गए पर कौशाम्बी जिले की प्रमुख नहरों मे पानी नहीं आ पाया. वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी जिले की नहरों में पानी लाने का वादा कर किसानों से नहरों को पुनर्जीवित करने के लिए करोड़ों की परियोजनाओं का शिलान्यास तो कर दिया, लेकिन एक साल से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद भी नहरों में पानी नहीं आ सका.
कहने को तो देश के नेता व अधिकारी इसी बात का ढिंढोरा हर जगह पीटते है कि किसानों के कंधों पर ही देश की आर्थिक स्थिति का बड़ा हिस्सा टिका हुआ है, बावजूद इसके किसानों की समस्या का सही तरह से निराकरण नहीं किया जाता. अब इस बाढ़ के दौर पर सूखी पड़ी नहरों को देखकर यह कहा जा सकता है कि नेता नहरों पर सिर्फ सियासी वादों का पानी बहाते दिख रहे हैं.