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कभी देखा है पीले रंग का तरबूज, कासगंज के इस किसान ने उगाई तरबूज की नई किस्म

यूपी के कासगंज में एक किसान ने पीले तरबूजों को अपने खेत में उगाया है. पीले तरबूज की मिठास और उसकी खेती करने के बारे में किसान राम प्रकाश ने ETV BHARAT को विस्तार से बताया.

कासगंज में पीले तरबूज की खेत.
कासगंज में पीले तरबूज की खेत.

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Published : May 20, 2022, 8:11 PM IST

कासगंजःगर्मियों के मौसम में आपने हरे रंग के तरबूज तो देखे होंगे. लेकिन क्या कभी कल्पना की है कि तरबूज पीला भी हो सकता है. जी हां, जिले में एक किसान ने पीले तरबूजों को अपने खेत में उगाया है. गंजडुंडवारा के किसान रामप्रकाश के समय खेतों में इस समय पीला तरबूज बड़ी संख्या में लगा हुआ है. इसके ऊपर का आवरण एकदम पीला है लेकिन अंदर काटने पर यह लाल निकलता है. आसपास के जिलों में पीले रंग के तरबूज की खेती करने वाले रामप्रकाश एकमात्र किसान हैं. ETV BHARAT से बातचीत करते हुए किसान रामप्रकाश कहते हैं कि अन्य तरबूजों की अपेक्षा इसका स्वाद कई गुना मीठा होता है. पीला रंग होने की वजह से इस तरबूज को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.

कासगंज में पीले तरबूज की खेत.
किसान रामप्रकाश बताते हैं इस तरबूज के बीज की बुवाई फरवरी में की जाती है और यह 55 दिनों में तैयार हो जाता है. जिसके बाद उसको तोड़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. पीले रंग की तरबूज की इस किस्म को सरस्वती कहते हैं. तरबूज की बुवाई की प्रक्रिया के बारे में राम प्रकाश बताते हैं कि पहले खेत को रोटावेटर से जुताई करते हैं. उसके बाद देसी खाद डालकर इसकी क्यारियां बनाते हैं. प्रत्येक क्यारी के ऊपर पूरे खेत में पन्नी लगाते हैं. उसके बाद पॉलिथीन में 1 फुट की दूरी पर छेद किए जाते हैं. उन्ही छेदों में बीज को डाला जाता है. उन्होंने बताया कि पॉलिथीन लगाने से खाद और पौधा भी सुरक्षित रहता है. पौधा पॉलिथीन के ऊपर रहता है, जिससे फल भी खराब नहीं होता.

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राम प्रकाश ने बताया कि थोक में पीला तरबूज 25 रुपये प्रति किलो बिकता है. लेकिन स्टॉक कम होने के समय 50 रुपये किलो तक बिकता है. उन्होंने बताया कि पीले तरबूज की खेती करने में लागत प्रति बीघा 10 हजार रुपये तक आती है. अगर फसल अच्छी हो जाए तो 20 से 25 हज़ार रुपये प्रति बीघा तक तरबूज बिकता है. गौरतलब है कि पीले तरबूज को खरीदने वालों की होड़ लगी हुई है. जिसके चलते किसान राम प्रकाश इस तरबूज को मंडी में भी नहीं ले जा पा रहे हैं. उनका कहना है कि थोक के व्यापारियों को तो तब दें जब फुटकर के व्यापारियों की पूर्ति हो. तरबूज खरीदने वालों की खेत पर ही भीड़ लगी रहती है.

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