कानपुर: आईआईटी कानपुर और यूके आर आई साइंस एंड टेक्नोलॉजी फैसिलिटी काउंसिल एसटीएफसी द्वारा गंगा के बेसिन में पर्यावरण आकलन और खेती में पानी के सही निर्णय लेने के लिए थर्मल इंफ्रारेड तकनीक नामक 'इंडो यूके' परियोजना की शुरुआत हुई है. आईआईटी कानपुर और लीसेस्टर विश्वविद्यालय यूके के बीच इस सहयोगी परियोजना का उद्देश्य उपग्रह डेटा का उपयोग करके यह जांचना है कि पानी की उपलब्धता और कृषि पद्धतियों में बदलाव से फसल की उपज और उत्पादन की क्षमता को कैसे खतरा है.
कानपुर: IIT और UK के वैज्ञानिक थर्मल इमेजिंग मॉनिटरिंग सेट से जानेंगे फसलों की प्यास - आईआईटी कानपुर ताजा खबर
आईआईटी कानपुर और यूके आर आई साइंस एंड टेक्नोलॉजी फैसिलिटी काउंसिल एसटीएफसी ने मिलकर इंडो यूके परियोजना की शुरुआत की है. इसके तहत फसल की उपज और उत्पादन की क्षमता को कैसे खतरा है, इसको जानना है.
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आईआईटी और यूके की लीसेस्टर यूनिवर्सिटी फसलों के हर दिन के विकास का गवाह बनेगी. इसमें उनका फल देना या फिर सूख जाना शामिल है. यह योजना भविष्य में पानी की उपलब्धता को देखते हुए की जा रही है. आईआईटी और यूके की यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ, पानी की अधिकता और कमी के फसलों पर पड़ने वाले असर को देखेंगे.
इसके लिए वन क्षेत्रों और वनसिटी गांव में थर्मल इमेजिंग मॉनिटरिंग सेंसर लगाए गए हैं. यह सेंसर देखेंगे कि पौधों को पानी की कितनी आवश्यकता है. आईआईटी व लीसेस्टर यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ और छात्रों ने दोनों गांवों का निरीक्षण कर फसलों और सेंसर को देखा. यह प्रोजेक्ट 2 साल तक चलेगा, जिससे आने वाले नतीजों के आधार पर एडवाइजरी तैयार की जाएगी. प्रोफेसर राजीव सिन्हा के मुताबिक पानी और फसलों को लेकर आने वाली समस्याओं के आधार पर एडवाइजरी जारी होगी.
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