कानपुर: यूपीसीडा के प्रधान महाप्रबंधक अरुण कुमार मिश्र ने पाली से प्रयागराज हाईवे के बीच करीब दो किमी की सड़क का निर्माण सिर्फ कागजों पर ही करवा कर भुगतान भी करवा लिया था. इसी मामले में पुलिस ने मंगलवार को अरुण को गिरफ्तार कर जेल भेजा था. गिरफ्तारी के बाद पता चला कि अरुण कुमार मिश्र ही फर्जीवाड़े का मास्टरमाइंड था. सरकार में अच्छी पैठ होने के चलते न ही इनके खिलाफ कोई नामजद रिपोर्ट दर्ज की गई थी, न तो पुलिस ने जांच में इसका नाम शामिल किया था. पुलिस दो दिन में चार्जशीट कोर्ट में दाखिल करेगी.
जानिए कैसे हुआ घोटाला
उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक प्राधिकरण के प्रधान महाप्रबंधक अरुण कुमार मिश्र ने पाली से प्रयागराज हाईवे के बीच करीब दो किमी सड़क का निर्माण सिर्फ कागजों पर ही करवाया और यूपीसीडा की ओर से बनी सड़क दिखा कर भुगतान भी करा दिया. इस मामले में पुलिस ने मंगलवार को अरुण को गिरफ्तार कर जेल भेजा दिया था. जांच अधिकारी सीओ कैंट सत्यजीत गुप्ता ने बताया कि तफ्तीश के दौरान विभाग से सभी दस्तावेज लिए गए थे. इसमें इस सड़क के एवज में चार भुगतान के साक्ष्य मिले हैं. चारों बिल 2 करोड़ 11 लाख के थे. बिलो और टेंडर दोनों पर ही अरुण के हस्ताक्षर हैं.
9 साल में भी पूरी नहीं हो पाई जांच
सड़क निर्माण के नाम पर 2.11 करोड़ रुपये के घोटाले में यूपीसीडा के प्रधान महाप्रबंधक अरुण मिश्र के खिलाफ चल रही जांच 9 साल में भी पूरी नहीं हो पाई. 2011 में कागज पर सड़क निर्माण दिखाकर भुगतान की विभागीय जांच शुरू हुई थी. मामले का खुलासा होने पर तत्कालीन एमडी इफ्तिखारद्दीन ने तहरीर दी थी. इस पर विभागीय जांच के आदेश हुए थे. सबसे पहले इंजीनियरिंग विभाग के अधिकारी को जांच के लिए नियुक्त किया गया. इसके बाद तीन और अधिकारियों ने जांच की. दो साल पहले जांच अभियंत्रण महाप्रबंधक संदीप चंद्रा को दी गई, लेकिन जांच ठंडे बस्ते में है. वहीं अरुण के खिलाफ चार्जशीट लगाने की 2014 से ही तैयारी थी, लेकिन अपने प्रभाव से उसने कार्रवाई रुकवा रखी थी. 9 साल बाद गिरफ्तार हो सके अरुण मिश्रा.
यूपीसीडा से विदा हो सकते है अरुण मिश्र
जनरल फाइनेंशियल नियम के तहत ऐसा प्रावधान है कि यदि कोई 50 साल से अधिक होता है और वह भ्रष्टाचार के आरोप में लिप्त पाया जाता है, तो नियोक्ता उसे रिटायरमेंट दे सकता है. चूंकि अरुण मिश्र नौकरी ज्वॉइन करने के 2 साल बाद ही भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित हुए थे. इसके बाद एक-एक कर कई भ्रष्टाचार के मामले सामने आए. 2014 को तो हाईकोर्ट ने बर्खास्त करने के आदेश भी दे दिए थे. हालांकि, वह सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले आया था. इसके बाद उसे विभाग से संबंध कर दिया गया था. दो साल पहले शासन के आदेश पर सारे वित्तीय अधिकार भी सीज किए जा चुके हैं. ऐसे में संभावना है कि यूपीसीडा उन्हें रिटायरमेंट देकर अलविदा कर सकता है.