कानपुरः सिख दंगों की आग में कानपुर के 300 से ज्यादा सिखों के मारे जाने और सैकड़ों घर तबाह हो जाने की बात कही जाती है. हालांकि सिख दंगों की जांच करने वाले रिटायर्ड जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग ने दंगों में 127 मौतें होने की ही बात कही थी. आज भी दंगा पीड़ितों के दिलों-दिमाग में 84 की आग का मातम छाया हुआ है. 35 साल बीत जाने के बाद भी जब पीड़ितों के जेहन में अपनों के खोने की बात याद आती है तो दर्द झलक जाता है.
...1984 में हुए सिख दंगों की कहानी, पीड़ितों की जुबानी - 84 की आग का मातम
31 अक्टूबर 1984 को भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में फैले सिख दंगों का असर दिल्ली के बाद कानपुर में सबसे ज्यादा प्रभावी था. उत्तर प्रदेश में सिख दंगों के भयावह रूप के दंश को औद्योगिक नगरी के सिखों ने भी झेला. आप खुद सुनिए उस दंश की कहानी, पीड़ितों की जुबानी...
story of 1984 sikh riots
सिखों का कहना है कि एक नवंबर को कानपुर में सिखों को बुरी तरह से हिंसा की आग में मौत के घाट उतार दिया गया था. तो वहीं इस मामले में बहुत दिनों तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई. बाद में जब एफआईआर दर्ज की गई तो स्टेटस रिपोर्ट में कोई पुख्ता सबूत न होने की बात कहकर केस खत्म कर दिया गया था. सिखों ने आरोप लगाया था कि दंगे में सैकड़ों लोगों की मौत हुई थी, लेकिन महज 127 लोगों की हत्या की एफआईआर दर्ज की गई थी.
Last Updated : Nov 2, 2019, 8:26 AM IST