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बिकरू कांड के 1 सालः कभी आतंक का गवाह रहे इस गांव में अब है अमन और शांति

2 जुलाई की तारीख आज भी यूपी पुलिस के लिए एक काले इतिहास की तरह है. जो हमेशा रह-रहकर उनको सालती रहेगी. इसी दिन कानपुर के बिकरू में विकास दुबे ने अपने गुर्गों के साथ मिलकर 8 पुलिस कर्मियों की निर्मम हत्या कर दी थी.

पुलिस नरसंहार के एक साल
पुलिस नरसंहार के एक साल

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Published : Jul 2, 2021, 10:35 AM IST

Updated : Jul 2, 2021, 12:31 PM IST

कानपुरः आज की तारीख को एक ऐसे नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें आठ पुलिसकर्मियों की निर्मम हत्या कर दी गई थी. जी हां ये वारदात कानपुर के बिकरू गांव में अंजाम दी गई थी. जिसमें कुख्यात विकास दुबे ने अपने गुर्गों के साथ मिलकर दबिश देने गए पुलिस टीम पर अंधाधुंध फायरिंग कर डिप्टी एसपी समेत 8 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी. जिसके बाद प्रदेश ही नहीं देशभर में हड़कंप मच गया था. आज इस कांड को हुए एक साल पूरे हो गए.

खौफनाक मंजर का गवाह बिकरू गांव

बिकरू गांव की गलियां आज भी उस खौैफनाक मंजर को बयां करती है, जो 2 जुलाई को पुलिस के नरसंहार के रूप में अंजाम दी गई थीं. पुलिस विभाग के ऊपर इतना बड़ा हमला उत्तर प्रदेश में इससे पहले कभी नहीं हुआ. इस खौफनाक वारदात में 8 पुलिसकर्मियों की दर्दनाक मौत हो गई थी. यहां के लोगों को आज भी 2 जुलाई का वो मंजर याद है, जब सारी रात गोलियों की आवाजों से पूरा इलाका थर्रा उठा था. हालांकि पुलिस के इस नरसंहार के बाद योगी सरकार ने विकास दुबे समेत कई अपराधियों को इनकाउंटर में मार गिराया और कई लोग जेल की हवा खा रहे हैं.

बिकरू कांड के 1 साल

ये है पूरा मामला

2 जुलाई 2020 की रात को चौबेपुर के जादेपुरधस्सा गांव के रहने वाले राहुल तिवारी ने विकास दुबे और उसके साथियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कराया था. जिसके बाद उसी रात करीब साढ़े बारह बजे तत्कालीन सीओ बिल्हौर देवेंद्र कुमार मिश्रा के नेतृत्व में बिकरू गांव में दबिश दी गई. यहां पर पहले से ही विकास दुबे और उसके गुर्गे घात लगाए बैठे थे. उन्हें पुलिस के दबिश की पहले से ही जानकारी मिल गई थी. पुलिस से निपटने के लिए कुख्यात विकास ने पहले से ही घेराबंदी कर दी थी. पुलिस को रोकने के लिए उसने जेसीबी लगाई थी. जैसे ही पुलिस बिकरू गांव में विकास के घर के पास पहुंची. बदमाशों ने चारों ओर से उनपर गोलियां बरसानी शुरू कर दी. कुछ ही पलों में वे सीओ देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर फरार हो गये. एक-एक पुलिसकर्मियों को बेरहमी से कई गोलियां मारी गई थीं. इस कांड से योगी सरकार के कानून व्यवस्था पर सवाल उठने लगे थे. जिसके बाद पुलिस और एसटीएफ ने मिलकर आठ दिन के भीतर विकास दुबे समेत छह बदमाशों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया था. इस मामले में अभीतक 45 आरोपी जेल में बंद हैं और केस का ट्रायल जारी है.

कुख्यात विकास दुबे

पुलिस एनकाउंटर

प्रदेश के साथ-साथ देश में भी चर्चा का विषय बन चुका बिकरू कांड योगी सरकार के ऊपर एक बदनुमा धब्बे से कम न था. जिसे धोने के लिए पुलिस ने जल्द ही कार्ययोजना बनाई और उसपर अमल करते हुए 3 जुलाई की सुबह सबसे पहले कुख्यात विकास के रिश्तेदार प्रेम कुमार पांडेय और अतुल दुबे को एनकाउंटर में मार गिराया. यहीं से विकास दुबे का काउंटडाउन शुरू हो गया. इसके बाद हमारपुर में अमर दुबे को ढेर किया गया. इटावा में प्रवीण दुबे मारा गया. पुलिस कस्टडी से भागने पर पनकी में प्रभात मिश्रा उर्फ कार्तिकेय मिश्रा ढेर कर दिया गया.

विकास के एनकाउंटर पर उठे सवाल हैं बरकरार!

9 जुलाई की सुबह उज्जैन में कुख्यात विकास का नाटकीय ढंग से सरेंडर हुआ था. एसटीएफ की टीम जब उसको कानपुर लेकर आ रही थी, तो सचेंडी थाना इलाके में हुए एनकाउंटर में उसे मार गिराया गया. एसटीएफ ने दावा किया था कि गाड़ी पलटने की वजह से विकास पिस्टल लूटकर भाग रहा था. इस दौरान उसने पुलिस पर भी फायरिंग की, जिसके बाद जवाबी कार्रवाई में उसे ढेर कर दिया गया. हालांकि टोल पर मीडिया को रोकना, गाड़ी का एकाएक पलट जाना. पहले वो सफारी में लाया जा रहा था. एकाएक गाड़ी का बदल जाना ऐसे कई सवाल आज भी मौजूद हैं. हालांकि पुलिस और मजिस्ट्रेटी जांच में सभी एनकाउंटर सही ठहराए गए.


जेल में बंद हैं 45 आरोपी, 3 पर NSA

बिकरू कांड के बाद पुलिस ने नाबालिग खुशी दुबे समेत कुल 45 आरोपियों को जेल भेजा. इसमें खुशी समेत चार महिलाएं भी शामिल हैं. इसके अलावा 9 आरोपी विकास के मददगार और हथियार खरीदने वाले हैं. जिसमें से एक एसपी नेता का रिश्तेदार है. जिसको एसटीएफ ने दबोचा था. अबतक तीन आरोपियों जिसमें शिवम दुबे उर्फ दलाल, राजेंद्र और बबलू मुसलमान पर एनएसए लगाया जा चुका है.

शहीज जांबाज रहेंगे हमेशा याद

शहीद सीओ देवेंद्र कुमार मिश्रा मूलरूप से बांदा के रहने वाले थे. वारदात 2 जुलाई 2020 को हुई. इसके ठीक आठ महीने बाद यानी मार्च 2021 में सीओ को रिटायर्ड होना था. उनका पूरा परिवार स्वरूपनगर स्थित एक अपार्टमेंट में रहता है. बड़ी बेटी स्नातक पास कर चुकी है और छोटी बेटी 12वीं की पढ़ाई कर रही है.

इस तारीख की रात जो शहीद हुए उनमें...

डीसीपी देवेंद्र कुमार मिश्रा

एसओ महेश कुमार यादव

दारोगा नेबूलाल

दारोगा अनूप कुमार सिंह

सिपाही बबलू कुमार

सिपाही राहुल कुमार

सिपाही सुलतान सिंह

सिपाही जितेंद्र पाल शामिल हैं.

शहीदों के परिजनों को नहीं मिला सहारा

इस मामले में शहीद पुलिसकर्मियों के परिजनों को सरकार की ओर से कुछ नहीं मिला है. उन्होंने जो वादे किए थे, वे अभीतक पूरे नहीं किये गये हैं. शहीद सीओ की बेटी समेत अन्य तीन पुलिसकर्मियो की पत्नियों ने नौकरी के लिए आवेदन दिया था. लेकिन इनके मामले में अभी तक केवल प्रक्रिया ही चल रही है. वहीं शहीद सीओ देवेंद्र कुमार मिश्रा की बड़ी बेटी वैष्णवी ने राजपत्रित अधिकारी के पद पर आवेदन किया है. परिजनों ने बताया कि छह महीने पहले दस्तावेज जमा कर दिए गए थे. लेकिन अभीतक कुछ नहीं हुआ. शहीद सिपाही राहुल कुमार की पत्नी दिव्या भारती, सिपाही सुलतान की पत्नी उर्मिला और दारोगा अनूप कुमार सिंह की पत्नी नीतू सिंह ने दारोगा के पद पर आवेदन किया है. जिसमें दिव्या दौड़ में टॉपर थीं. अब लिखित परीक्षा इनकी बाकी है. अन्य दोनों अभी फिजिकल की तैयारी कर रही हैं.

खंडहर बन चुका है विकास के आतंक का किला

कभी गांव का सबसे आलीशान मकान कुख्यात विकास दुबे का ही था. लेकिन आज वो खंडहर में तब्दील हो चुका है. अब यहां कोई नहीं आता-जाता है. क्यों कि ये जगह पूरे गांव के लिए एक श्राप है. जहां इतनी हत्याएं हुई हैं. पुलिस ने जबसे इस मकान को तहस-नहस किया है, तब से लेकर अबतक पत्थर भी इधर-उधर नहीं हुआ है. महंगी-महंगी गाड़ियां वैसे ही चकनाचूर पड़ी हैं. एक समय था जब कुख्यात विकास दुबे के ही मकान में आतंक की पटकथा लिखी जाती थी. सारे फैसले वो यहीं से लेता था. एक तरह से उसका ये घर अय्याशी का अड्डा बना हुआ था. उसके जान पहचान के क्षेत्रीय नेता और लोग यहां आयोजित होने वाली पार्टियों में शिरकत करने पहुंचते थे. रातभर चलने वाली पार्टियों में दूर-दूर से लोग आते थे. विकास दुबे का घर गांव में जरूर था, लेकिन सारे ऐश अय्याशी के इंतजाम उस घर में थे. बाथरूम में बाथटब से लेकर वेस्टर्न चीजें घर में मौजूद थे. लेकिन आज 1 एक साल बीत जाने के बाद घर का मंजर कुछ और है. आज इनका इस्तेमाल करने वाला कोई नहीं. एक तरह से देखा जाए तो कुख्यात विकास की मौत के साथ ही गांव में फैली उसकी दहशत अब खत्म हो चुकी है. अब यहां भी अमन और शांति है.

Last Updated : Jul 2, 2021, 12:31 PM IST

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