कानपुर: जनपद में गंगा के समीप बने महादेव का खेरेश्वर मंदिर न सिर्फ अनोखा है, बल्कि महाभारत कालीन इस शिवालय में आज भी पहली पूजा के अनसुलझे रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया है. इस मंदिर में प्रतिदिन सुबह पट खुलने पर शिवलिंग पर जंगली फूल चढ़े मिलते हैं. करीब 700 साल पहले खुदाई में मिले शिवलिंग की स्थापना करके मंदिर का निर्माण कराया गया था तब से यह मंदिर खेरेश्वर बाबा के नाम से सुप्रसिद्ध है.
गंगा के किनारे स्थापित है महादेव का प्राचीनतम मंदिर
कानपुर जनपद मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर गंगा नदी के किनारे स्थापित महाभारत कालीन खेरेश्वर मंदिर गौरवशाली इतिहास को समेटे हुए है. शिवालय के पुजारी कमलेश कुमार गोस्वामी ने ईटीवी भारत से एक्सक्लूसिव बातचीत में बताया कि महाभारत काल में कौरव-पाण्डव के गुरु द्रोणाचार्य ने स्वयं खेरेश्वर महादेव की तपस्या की थी. खेरेश्वर धाम की मान्यता है कि द्वापर युग में यह क्षेत्र गुरु द्रोणाचार्य का आरण्य वन हुआ करता था. इसी स्थान पर द्रोण ने पांडवों और कौरवों को शास्त्र विद्या का ज्ञान दिया था. पुजारी यह भी बताते हैं कि महाभारत के युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने पांडवों के पुत्रों की छल से हत्या कर दी थी, तब भीम ने अश्वत्थामा के माथे में लगी मणि निकालकर उसे अशक्त बना दिया था. जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया था कि वह पृथ्वी लोक में तब तक पीड़ा झेलते हुए जीवित रहेंगे जब तक स्वयं देवों के देव महादेव उसे पापों से मुक्त न कर दें.