कानपुर:शहर के अंदर पिछले 11 माह में तीन ऐसे बड़े मामले सामने आए, जिसमें स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के अधिकारियों ने लगभग 6 करोड़ रुपये की चरस के साथ कई अभियुक्तों को गिरफ्तार किया है. हर मामले में एक खास बात थी कि चरस नेपाल से लाई गई थी. कानपुर के अलावा नेपाल से चरस का कारोबार यूपी में लगातार फैलता जा रहा है. एसटीएफ नेपाल के नेटवर्क को ध्वस्त करने में लगी जरूर है, लेकिन नेपाल पुलिस से बेहतर मदद न मिलने के चलते सफलता मिलने में देर हो रही है.
पहाड़ों पर चढ़कर लाते हैं चरस-एसटीएफ के एक आला अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया कि गिरफ्तार अभियुक्तों से पूछताछ में पता चला है कि नेपाल में चरस लाने के लिए कई सौ फुट ऊंची पहाड़ियों पर जाना होता है. वहां छोटे-छोटे टेंटनुमा अड्डे बने होते हैं. वहां पुरुषों से अधिक महिलाएं इस कारोबार को संभालती हैं. नक्सलियों की तर्ज पर पूरा कारोबार होता है. हर स्टेप पर एक कोडवर्ड बोला जाता है. जो लोग यूपी से चरस खरीदने जाते हैं. उनकी पूरी जांच-पड़ताल की जाती है. वहां पर लोग रुपयों के अलावा कोई और सामान लेकर नहीं जा सकते हैं. वहां पर महिलाएं आकर चरस देती हैं. जहां नेपाल के रास्ते गोरखपुर, वाराणसी, लखनऊ, कानपुर, इटावा, औरैया, कन्नौज, फर्रुखाबाद, आगरा, गाजियाबाद, नोएडा, दिल्ली समेत कई अन्य शहरों तक कारोबारियों की पकड़ होती है.
कानपुर एसटीएफ प्रभारी शैलेंद्र सिंह ने बताया कि नेपाल से जो चरस आती है, उसे काला सोना कहा जाता है. इसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत गांजा से भी अधिक है. इसलिए चरस की सप्लाई में बहुत तेजी से युवा आगे आ रहे हैं. जो कि बेहद ही चिंतनीय है. एक अनुमान के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में चरस की प्रति किलोग्राम कीमत 5 लाख रुपये है. वहीं, नेपाल में इसकी प्रतिकिलोग्राम कीमत महज 20 हजार रुपये है.