कानपुर : वैसे तो हर फल का स्वाद आमलोगों को खूब भाता है, लेकिन बात खट्टे व रसभरे फलों की करें तो लोग उन्हें ज्यादा पसंद करते हैं. उन्हीं फलों में शामिल है, स्ट्राबेरी. सुर्ख लाल रंग वाली स्ट्राबेरी को अब लोग जमकर खाने लगे हैं. आमतौर पर पहाड़ों में उगाई जाने वाली स्ट्राबेरी को चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के बगीचे में पंचगव्य व जीवामृत समेत कई अन्य बायोइंहेंसर की मदद से तैयार कर दिया गया है.
स्ट्राबेरी की चांडलर प्रजाति का स्वाद स्ट्राबेरी की तमाम प्रजातियों से कहीं अधिक अच्छा है. इसमें विटामिन सी की मात्रा जबर्दस्त है. उद्यान महाविद्यालय के विभागाध्यक्ष डाॅ. वीके त्रिपाठी का कहना है कि अब यहां की स्ट्राबेरी का स्वाद सूबे के हर शहर में लोग ले सकेंगे. इसके लिए सीएसए की ओर से सभी कृषि विवि व शिक्षण संस्थानों को पत्र भेजा जाएगा. उन्होंने बताया कि वैसे तो सात-आठ साल से हम स्ट्राबेरी की फसल तैयार कर रहे थे, लेकिन चांडलर की प्रजाति पहली बार उगाई गई है. इसमें जो रनर (पेड़ की शाखाओं पर पड़ने वाली गांठों से निकलने वाले पौधे) हैं, उसकी भूमिका अहम है.
पुआल व सूखी पत्तियों से पौधों को बचाया गया : सीएसए की शोधार्धी छात्रा अनुश्री ने बताया कि स्ट्राबेरी की इस फसल के लिए कई तरह के बायोइंहेंसर की मदद ली गई. हालांकि डर था कि कहीं पौधों में रोग न लग जाए. इसके लिए फसल को पूरी तरह जैविक रूप से तैयार करने के लिए पौधों के नीचे पुआल व सूखी पत्तियों का प्रयोग किया. जिससे पौधों में किसी तरह का रोग न लगे. हमें सफलता भी मिली. इसी तरह शोधार्थी छात्र सत्यार्थ ने बताया कि स्ट्राबेरी की फसल तैयार करने में हमारा यह शोध पूरी तरह से नया है. इसमें अगर कोई पौधा खराब भी हो जाता है तो उसका उपयोग हम खाद के रूप में कर सकेंगे.