कानपुर आईआईटी को मिली बड़ी कामयाबी, फूलों से बनाई कृत्रिम त्वचा
यूपी के कानपुर में स्थित आईआईटी को बड़ी कामयाबी मिली है. आईआईटी ने फूलों से कृत्रिम त्वचा बनाने में सफलता हासिल की है. बता दें कि यह कृत्रिम त्वचा आईआईटी कानपुर के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग ने बोगनवेलिया के फूलों से बनाई है. इतना ही नहीं अब आईआईटी इस तकनीकी से निजी कंपनी के साथ मिलकर कृत्रिम त्वचा का निर्माण कर बाजार में उतारने की तैयारी में है.
कानपुर आईआईटी को मिली बड़ी कामयाबी.
कानपुर: आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों ने बोगनवेलिया फूल से कृत्रिम त्वचा विकसित करने में कामयाबी हासिल की है. जो मेडिकल साइंस में मील का पत्थर साबित होगी. दुर्घटनाओं या हादसों में घायल हुए लोगों के घाव भरने में अब ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. क्योंकि आईआईटी के वैज्ञानिकों ने शोध करके कृत्रिम त्वचा तैयार कर ली है. इससे ना सिर्फ घावों को जल्द भरने में मदद मिलेगी, बल्कि खराब हो चुकी त्वचा को भी रिप्लेस किया जा सकेगा.
आईआईटी कानपुर के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग में शोधार्थी डॉ प्रेरणा सिंह ने बताया कि उन्होंने सैकड़ों से ज्यादा फूलों और पत्तियों पर रिसर्च की, लेकिन संतोष जनक परिणाम नहीं मिला. इसके बाद जब बोगनवेलिया पर शोध किया तब जाकर कृत्रिम त्वचा बनाने में कामयाबी मिली. बता दें किबोगनवेलिया कोपेपर फ्लावर के नाम से भी जाना जाता है. इतना ही नहीं बोगेनवेलिया के फूलों की संरचना इंसानों की त्वचा से बहुत ही मेल खाती है.
15 दिनों में तैयार हो गई फूलों से त्वचा
प्रेरणा सिंह बताती है कि बोगनवेलिया के फूलों को लैब में इंसानी त्वचा से कल्चर करने के बाद 15 दिनों में सेल्स तैयार हो गई. उन्होंने बताया कि इस त्वचा को गहरे घावों में भर कर बाहर से टांके लगाने पर बहुत ही कम समय में घाव ठीक हो जाएंगे. इतना ही नहीं फूलों से बनी त्वचा का प्लास्टिक सर्जरी में भी बहुत उपयोग किया जा सकता है.
अन्य फाइबर स्किन से किफायती है फूलों से बनी कृत्रिम त्वचा
डॉ. प्रेरणा ने बताया कि अब तक मेडिकल साइंस में इस्तेमाल की जाने वाली नैनो फाइबर से तैयार कृत्रिम त्वचा बहुत ही महंगी होती है. जिसकी वजह से आम लोग अपना इलाज कराने से बचते हैं, लेकिन बोगनवेलिया के फूलों से बनी त्वचा कम कीमत के साथ बहुत ही उपयोगी है.
ड्रग और कॉस्मेटिक के परीक्षण में है उपयोगी
फूलों से बनी इस त्वचा का इलाज के साथ एक और फायदा होगा कि मनुष्य की त्वचा से मेल खाने की वजह से अब दवाइयों और कॉस्मेटिक आइटम का परीक्षण जानवरों पर ना करके इस कृत्रिम त्वचा पर किया जा सकता है. जो अभी तक चूहों,खरगोश बंदर समेत अन्य जानवरों पर किया जाता रहा है.
शोध का हुआ पेटेंट
आईआईटी कानपुर ने फूलों से कृत्रिम त्वचा बनाने को पेटेंट करा लिया है. अब आईआईटी इस तकनीकी से निजी कंपनी के साथ मिलकर कृत्रिम त्वचा का निर्माण कर बाजार में उतारने की तैयारी में है.