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अब वर्चुअल डिसेक्शन टेबल से छात्र सीखेंगे शरीर की संरचना, प्रदेश का पहला कॉलेज जहां होगी ऐसी सुविधा - जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में वर्चुअल डिसेक्शन टेबल

कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज (Kanpur GSVM College) के छात्र वर्चुअल डिसेक्शन (Virtual Dissection in GSVM College) टेबल से पढ़ाई करेंगे. कॉलेज प्राचार्य का दावा है कि यह प्रदेश का पहला मेडिकल कॉलेज है, जहां डिजिटल फार्म में छात्र पढ़ेंगे.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 30, 2023, 5:12 PM IST

कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य से बातचीत

कानपुर: भले ही अभी तक जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के छात्र शरीर की संरचना जानने और समझने के लिए दफन शवों से पढ़ाई करते रहे हों. लेकिन, अब डिजिटल दुनिया के दौर में छात्र जल्द ही वर्चुअल डिसेक्शन टेबल से पढ़ाई कर सकेंगे. जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज प्रदेश का पहला ऐसा मेडिकल कालेज हैं, जहां यह सुविधा छात्रों को मुहैया कराई जाएगी. कॉलेज प्राचार्य डॉ. संजय काला का कहना है कि इन टेबल को लेने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने होंगे. इसके लिए शासन ने ग्रीन सिग्नल दे दिया है. आने वाले छह माह के अंदर मेडिकल कॉलेज के छात्र नए प्रारूप में पढ़ाई करते नजर आएंगे.

वीडियो फार्म में रहेगा कंटेंट, लेयर टू लेयर मिलेगी हर जानकारी: जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद कुमार ने बताया कि छात्र जब वर्चुअल डिसेक्शन टेबल से पढ़ेंगे तो उन्हें हर जानकारी वीडियो फार्म में मिल सकेगी. अगर वह बोन की पढ़ाई करना चाह रहे हैं तो उससे जुड़ा सारा कंटेट सामने होगा. इसी तरह हार्ट की पढ़ाई करना चाह रहे हैं तो हार्ट से संबंधित सारी जानकारी एक क्लिक पर मिल जाएगी. वहीं, छात्र लेयर टू लेयर जान सकेंगे कि कैसे डिसेक्शन करना है. यह एक बेहद कठिन प्रक्रिया मानी जाती है. हालांकि, अब आधुनिक तकनीकों की मदद से छात्रों की पढ़ाई काफी हद तक आसान हो जाएगी.

फेमस है मेडिकल कॉलेज का बरियल ग्राउंड, सालों से दफन किए जाते हैं शव: जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कैम्पस में एक बरियल ग्राउंड बना है. जहां सालों से उन शवों को दफनाया जाता है, जो देहदान के रूप में मेडिकल कॉलेज पहुंचते हैं. इन शवों को औसतन डेढ़ से दो साल तक दफन रखा जाता है. इसके बाद नियमानुसर जो स्केलटन (हड्डियों वाला ढांचा) बाहर आता है उसे छात्रों को डिसेक्शन के लिए मुहैया कराया जाता है. मेडिकल कालेज प्राचार्य डॉ. संजय काला ने कहा कि औसतन एक साल में हमें तीन से चार शव मिल जाते हैं. इस प्रक्रिया को चिकित्सा क्षेत्र में कैडवर कहा जाता है. अब, जब वर्चुअल डिसेक्शन टेबल आ जाएंगी तो हमें शवों का इंतजार नहीं करना होगा. छात्र समय से अपनी पढ़ाई कर सकेंगे.

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