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जाने ऐसे कोरोना वॉरियर्स की कहानी, जिन्होंने बचाई लाखों जिंदगियां

कोरोना वायरस ने एक तरफ पूरी दुनिया को लॉक कर दिया. लोग अपने घरों में बैठने को मजबूर हो गये. फिर क्या रेल, क्या फैक्ट्रियां सब कुछ लॉक. इस महामारी के दौर में जहां लोगों को अपनी और अपने परिवार की जान की चिंता सता रही थी, तो इस कठिन परिस्थिति में कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचाई.

coroan warriors
कोरोना वॉरियर्स ने दी मौत को भी मात

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Published : Dec 17, 2020, 5:08 PM IST

कानपुरःकोरोना वायरस ने एक तरफ पूरी दुनिया को लॉक कर दिया. लोग अपने घरों में बैठने को मजबूर हो गये. फिर क्या रेल, क्या फैक्ट्रियां सब कुछ लॉक. इस महामारी के दौर में जहां लोगों को अपनी और अपने परिवार की जान की चिंता सता रही थी, तो इस कठिन परिस्थिति में कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचाई. कई ऐसे वॉरियर्स वायरस की चपेट में भी आ गये, जिसमें से कई वॉरियर्स ने वायरस को मात दिया और फिर से काम पर लौटे. कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ गई.

कोरोना वॉरियर्स ने बचाई लाखों जिंदगियां

ईटीवी भारत पर कोरोना वॉरियर्स

कोरोना के डर से जहां कई लोग नौकरी छोड़कर अपने घर चले गए. वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो कोरोना पॉजिटिव होने के बावजूद ठीक होकर फिर से काम पर लौट आए और लोगों को बचाने के लिए खुद की जान की बाजी लगा दी. ईटीवी भारत की टीम ने ऐसे लोगों से बात की और उनके सफर के बारे में जाना, कि कैसे वह बिना डरे लोगों की सेवा करते रहे. हम बात कर रहे हैं कानपुर शहर के मेडिकल कॉलेज के उन डॉक्टर्स की जिन्होंने खुद की चिंता छोड़ समाज के लिए खुद को समर्पित कर दिया.

ईटीवी भारत पर कोरोना वॉरियर्स


डॉ प्रग्रेश की कहानी, उन्हीं की जुबानी
डॉ प्रग्नेश कुमार ने बताया कि जब कोरोना के दौरान शुरुआत में ड्यूटी लगी तो मरीजों की संख्या ज्यादा थी. काम का भी दवाब था. उस दौरान जब ड्यूटी में हम होते थे, तो एन-75 से लेकर पीपीई किट तक काम नहीं आती. दरअसल, मरीजों के इलाज के दौरान जो एरोसोल बनते हैं, उन पर इसका कोई प्रभाव नहीं है. जिसके चलते मेडिकल स्टॉफ पीपीई किट और एन-75 के वाबजूद भी पॉजिटिव हो जाते हैं.

सवालः घर में जब बताया कि कोरोना पॉजिटिव आये तो क्या थी स्थिति?
14 दिन की ड्यूटी के दौरान मैंने 13 दिन अपनी जांच करवाई, तो मैं पॉजिटिव आ गया. यह मुझसे ज्यादा मेरे परिवार को डराने वाली थी. क्योंकि उस दौरान कोरोना से मौत की संख्या बहुत ज्यादा थी. जिसके बाद 6 दिन एडमिट रहा, फिर रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद मैं घर न जाकर गेस्ट हाउस में 5 दिन रुका.

सवालःजब कई डॉक्टर्स इस्तीफा दे रहे थे तब कोरोना पॉजिटिव होने के बाद भी वापस क्यों आए?
इस्तीफा देना सिर्फ समस्या से भागना है. अगर सब भाग जाएंगे तो फिर मरीजों का इलाज कौन करेगा. मैंने कभी भी इस्तीफा देने के बारे में नहीं सोचा. अगर हम सावधानी से काम करें, तो संक्रमित होने की संभावना बहुत कम हो जाती है.


डॉ आनंद कुमार की कहानी, उनकी जुबानी
डॉ आनंद कुमार ने बताया कि जब कोरोना की शुरुआत हुई थी, तो ज्यादा डर था. क्योंकि तब वायरस के बारे में जानकारी नहीं थी. इसके अलावा मैनेजमेंट स्तर से कोई भी प्रोटोकॉल नहीं था. जिस वजह से भी कई दिक्कत हुई.


सवालः जब घर में बताया कि पॉजिटिव हैं, तो क्या था रिएक्शन?
ड्यूटी के बाद क्वारंटाइन के दौरान मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई. जिसमें मुझे तो कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन घरवालों को डर था. जिसके चलते कुछ दिक्कत हुई थी. वहीं जब मैं पॉजिटिव हुआ था. तब तक काफी समय बीत चुका था. इस वजह से भी काफी दिक्कत नहीं हुई.

सवालः जब कई डॉक्टर्स इस्तीफा दे रहे थे, तब कोरोना पॉजिटिव होने के बाद भी वापस क्यों आए?
कठिन समय है, तो छोड़ कर क्यों जाना. जब समाज को मेरी जरूरत है, तब छोड़कर जाना ठीक नहीं है. सबसे बड़ी बात जब पॉजिटिव होने के बाद ठीक हो गए हैं, इसका मतलब ईश्वर ने मुझे दोबारा काम करने का मौका दिया है.

सवालः इस काल में क्या सीख मिली?
इस कठिन परिस्थिति ने कई लोगों को सीख दी है और जीवन का मतलब भी समझाया है. इससे मुझे यह सीखने को मिला कि डॉक्टरी एक पेशा नहीं है, बल्कि सेवा करने का मौका है. इसी के साथ यह भी समझ में आया कि आइसोलेशन का वक्त सबसे कठिन होता है. ऐसे में बुजुर्गों को खास परेशानी का सामना करना पड़ता है.

डॉ यशवंत राव की कहानी, उनकी जुबानी
डॉ यशवंत राव ने बताया कि जब कोरोना आया तो इसको मैंने आपदा नहीं अवसर माना. क्योंकि हमेशा कहा जाता था, डॉक्टर्स भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं. यह सुन कान पक गए थे. इस मुश्किल घड़ी में डॉक्टर्स की सेवाभाव को देख सभी ने वॉरियर्स की संज्ञा दी. जिससे हमारा भी जज्बा बढ़ा और हमने आगे बढ़ कर काम किया.

सवालः पॉजिटिव होने की बात जब घर में बताई तो क्या था रिएक्शन?

इस मुश्किल घड़ी में सबसे ज्यादा अगर किसी ने साथ दिया तो वह परिवार वाले हैं. क्योंकि परिवार वालों ने ही मुझे काम करने के लिए प्रेरित किया और कहा कि जो होगा सबके साथ ही होगा.

सवालः इस्तीफा देने के बारे में सोच रहे थे?
जब पॉजिटिव आया तो मुझे हॉस्पिटल लाया गया. वहां भी मैंने मरीजों का इलाज करना शुरू कर दिया. इस दौरान मैं आईसीयू केयर में काम करने लगा. जिससे खुद भी संतुष्टि मिलने लगी और मरीजों का उपचार भी हो रहा था. इस दौरान कभी भी इस्तीफा देने का ख्याल मेरे दीमाक में नहीं आया.

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