कानपुर:जिले के सीवेज वाटर को अब इटली, बेल्जियम और आइआइटी कानपुर के विशेषज्ञ संयुक्त रूप से शोधित करेंगे. इस प्रोसेस के लिए पायलट प्लांट तकनीक का प्रयोग किया जाएगा. नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (National mission for clean ganga) के महानिदेशक ने जाजमऊ में स्थित 20 एमएलडी के निर्माणाधीन सीईटीपी (Common Effluent Treatment) प्लांट का निरीक्षण किया. महानिदेशक ने कई अधिकारियों से सीवेज वाटर को ट्रीट (treat sewage water) करने पर चर्चा की.
जिले के सीवेट वाटर को इटली, बेल्जियम और आइआइटी कानपुर की तकनीक से ट्रीट करेंगे. शहर का यह सीवेज वाटर पवित्र गंगा में जाता है. इससे गंगा नदी को प्रदूषित होने से बचाया जा सकेगा. जाजमऊ स्थित एसटीपी में एक सी-गंगा इनोवेशन पार्क (Si-ganga innovation park) की स्थापना की गई. इसमें इन तीनों तकनीक का ट्रायल किया जाएगा. यह पायलय प्रोजेक्ट के तहत किया जाएगा. वहीं, सफल परीक्षण के बाद वृहद स्तर पर प्लांट लगाया जाएगा. ट्रायल पार्क का शुभारंभ सोमवार (6 जून) को नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (National mission for clean ganga) के महानिदेशक अशोक कुमार, जिलाधिकारी नेहा शर्मा, सी-गंगा के हेड और आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ (IIT Kanpur Specialist) प्रो. विनोद तारे ने किया.
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आईआईटी के प्रो. विनोद तारे पिछले कई वर्षों से गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने की दिशा में शोध कर रहे हैं. विनोद तारे सी-गंगा के तहत टेक्नोलॉजी पर मंथन कर रहे हैं. इसके साथ ही भारत सरकार और एनएमसीजी के साथ मिलकर योजनाएं भी तैयार करा रहे हैं. उन्होंने बताया कि इंडो-ईयू समझौते के तहत गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट जरूरी है. इसके लिए कानपुर में पायलट प्रोजेक्ट के तहत एक साथ तीन तकनीक का ट्रायल शुरू हुआ है. प्रत्येक तकनीक में 80 लीटर सीवेज रोजाना ट्रीट किया जाएगा. इसके बाद एनालिसिस रिपोर्ट के आधार पर इस तकनीक का असर देखा जाएगा. उन्होंन आगे कहा कि जल निगम ने ही तीनों टेक्नोलॉजी के ट्रायल के लिए बने सी-गंगा इनोवेशन पार्क की जगह दी है. यह पार्क जाजमऊ में स्थित एसटीपी परिसर में बना है.
नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (National mission for clean ganga) के महानिदेशक अशोक कुमार ने कहा कि इन तकनीक की सफलता के बाद सीवेज ट्रीटमेंट की समस्या खत्म हो जाएगी. पार्क के शुभारंभ इस मौके पर जल निगम के महाप्रबंधक एसके शर्मा, यूरोपियन वैज्ञानिक पॉल कैम्पलिंग, वनेरमैन सोफी सहित कई अधिकारी मौजूद रहे.
आईआईटी कानपुर (हाइब्रिड सिस्टम) को पूरी तरह नेचुरल माध्यम से तैयार किया गया है. इसमें किसी तरह की मशीनें नहीं लगी है. यह तीन लेयर का नेचुरल सिस्टम है. इटली (एसएल फार्मिंग मेंब्रेन) यह एक अत्याधुनिक तकनीक है. इसमें कम प्रेशर पर भी वेस्ट को ट्रीट कर सकते है. वहीं, बेल्जियम (आईटीसी मेंब्रेन) इसमें वेस्ट को कंसंट्रेट किया जाता है. इससे वाटर ट्रीटमेंट करने के साथ एनर्जी भी विकसित करेंगे.
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