कानपुर: देश और दुनिया में कानपुर की पहचान औद्योगिक नगरी के रूप में तो है ही, इसे श्रमिकों का शहर भी कहा जाता है. यह बात बहुत कम लोग जानते हैं. इसके पीछे कारण यह है, कि 1980-90 के दौर में कानपुर की 11 मिलों में शामिल जेके जूट मिल, म्योर मिल, एनटीसी, बीआइसी व लालइमली समेत अन्य में जो कपड़ा व उत्पाद श्रमिक अपनी मेहनत से तैयार करते थे, वह अमेरिका, इंग्लैंड और कई अन्य देशों के लोग पहनते थे.
अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस पर कानपुर के लोग इस दिन को उसी तरह याद करते हैं, जब सैकड़ों की संख्या में श्रमिक इन मिलों में एकजुट होकर काम करते थे. दरअसल, श्रमिक नेता बताते हैं कि 1991 में जब नई आर्थिक नीति का देश में क्रियान्वयन किया गया तो उसके बाद मानों कानपुर की सभी 11 मिलों को किसी की नजर लग गई. फिर एक-एक करके सभी मिलों का अस्तित्व संकट में पड़ गया और मिलें बंद हो गईं. इससे उस दौर के श्रमिकों को बहुत अधिक धक्का लगा. उन्होंने पूरे परिवार के साथ दो वक्त की रोटी के लिए बहुत बुरा समय देखा.
भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य सुखदेव प्रसाद मिश्रा बताते हैं, कि लाल इमली में तैयार होने वाली 80 नंबर की लोई की मांग विदेश में आज भी है. वह कहते हैं कि अगर सरकार इन मिलों को पुर्नजीवित कर दे तो वह दिन दूर नहीं, जब विदेशों से अच्छा खासा आर्डर यहां फिर मिलने लगेगा.