कानपुर:पूरे देश में होली का त्यौहार भले ही बीत गया हो लेकिन कानपुर में रंगों की खुमारी अभी भी लोगों के सिर चढ़ी हुई है. यहां होली के बाद भी रंग खेले जा रहे हैं. क्रान्तिकारियों के इस शहर में एक सप्ताह तक होली मनाने की परम्परा स्वाधीनता संग्राम की एक घटना से जुड़ी हुई है. दरअसल कानपुर में होली मेला अंग्रेजी हुकूमत की हार का प्रतीक है.
7 दिनों तक खेली जाती है होली यह भी पढ़ें:मशहूर है कानपुर का गुलाल, नेपाल तक बिखेरता है अपना रंगअंग्रेजों पर जीत का प्रतीक है गंगा मेला रंग बरसे और बरसता ही रहे तो क्या रंगों की बाढ़ नहीं आ जाएगी. लेकिन क्या करें, कानपुरवासियों को तो इस बाढ़ में डूबना और उतराना ही पसन्द है. जी हां, कानपुर में होली का हुड़दंग अभी भी जारी है. यह उत्सव गंगा किनारे होली मेला के आयोजन के साथ समाप्त होगा.
जब अंग्रेजों ने रंग खेलने पर लगाया था प्रतिबंध
साल 1942 में सात दिनों तक होली मनाने की परम्परा शुरू हुई थी. ब्रिटिश शासन काल में तत्कालीन कलेक्टर ने होली खेलने पर प्रतिबंध लगाया था. उसके बाद भी हटिया के कुछ देशभक्त नौजवानों की एक टोली ने हटिया इलाके से निकल रहे अंग्रेज पुलिस अधिकारियों पर रंग डालकर ’टोडी बच्चा हाय हाय‘ के नारे लगाए थे. इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत ने उनको पकड़कर सलाखों के पीछे भेज दिया था.
अनुराधा नक्षत्र में मनाया जाता है गंगा मेला
युवकों को जेल से रिहा करने की मांग को लेकर पूरे शहर की जनता ने तय किया था कि वो तब तक होली खेलेंगे जब तक अंग्रेजी हुकूमत उन नौजवानों को जेल से छोड़ नहीं देती. तब जनता के बढ़ते दबाव के बाद सात दिनों बाद सभी गिरफ्तार युवकों को रिहा कर दिया गया. अपनी इस जीत का जश्न मनाने और अंग्रेजी हुकूमत को ठेंगा दिखाने के लिये पूरे शहर में होली मेला आयोजित किया गया. तब से आज तक कानपुर में सात दिनों तक होली मनाना और ब्रिटिशकालीन कोतवाली के सामने से रंगों का ठेला निकालने का बदस्तूर चला आ रहा है.