कानपुर: मेहमानों का मुंह मीठा कराना हो या भगवान को प्रसाद चढ़ाना दोनों ही चीजों में लड्डू की कोई तुलना नहीं है. शादी-ब्याह हो या फिर कोई अन्य उत्सव बिना लड्डू के अधूरा सा लगता है. बात अगर कानपुर की हो तो ठग्गू के लड्डू और बदनाम कुल्फी का जिक्र न हो ऐसा कैसे हो सकता है. और तो और मंगलवार को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कानपुर में जनसभा को संबोधित करने पहुंचे तो उन्होंने अपने भाषण में ठग्गू के लड्डू का जिक्र किया. उन्होंने कहा उसकी दुकान पर लिखा रहता है 'ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं'. पीएम ने कहा कानपुर के लोगों का मिजाज, उनकी हाजिर जवाबी, उनके अंदाज की तुलना ही नहीं की जा सकती.
तो चलिए हम आपको बताते हैं कि इस दुकान का नाम ठग्गू के लड्डू कैसे पड़ा दुकान कितनी पुरानी है और इसके पीछे की कहानी क्या है...
ऐसे पड़ा दुकान का नाम
कानपुर को स्वाद की सौगात दी थी रामऔतार पांडेय ने. रामावतार पाण्डेय गांधी जी के आदर्शों पर चलने वाले शख्स थे. गांधी जी कहते थे शक्कर मीठा जहर है और लड्डू व कुल्फी में शक्कर का भरपूर उपयोग होता है. उन्होंने धंधे में इसे बेईमानी माना और अपने आप को 'ठग्गू' कहना शुरू कर दिया. तभी से दुकान का नाम ठग्गू के लड्डू पड़ा. हालांकि अब दुकान के मालिक रामऔतार पांडेय और उनके छोटे बेटे भी अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वह शहर को एक ऐसी मिठास देकर गए हैं, जिसकी शान में कसीदे पढ़े जाते हैं.
50 साल से ज्यादा पुरानी है दुकान
यह दुकान रामऔतार पांडेय ने करीब 50 साल पहले खोली थी. उन्होंने ही इस दुकान का नामकरण किया था. इस दुकान में मिलने वाले लड्डू पूरी तरह से देशी घी के बने होते हैं. इसमें देशी आइटम जैसे- सूजी, खोया, गोंद, चीनी, काजू , इलायची बादाम, पिस्ता से तैयार किया जाता है. ये दुकान इसलिए भी खास है क्योंकि यहां पर लड्डू बनाकर स्टोर नहीं किए जाते हैं. जितने भी लड्डू बनते हैं वह रोज के रोज बिक जाते हैं. लड्डू के अलावा यहां की खासियत है बदनाम कुल्फी. अब कुल्फी बदनाम क्यों है ये तो खाकर ही पता चलेगा.
इसे भी पढ़ें-प्रयागराज के लोगों को खूब भा रहे बहू रानी के लड्डू