उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

IIT Kanpur: देश में तैयार हो रहा आर्टिफिशियल हार्ट, दिल के मरीजों को मिलेगी बड़ी राहत... - artificial heart iit kanpur

दिल के मरीजों के लिए राहत भरी खबर है. देश में पहली बार आईआईटी कानपुर की टीम आर्टिफिशयल हार्ट बनाने में जुट गई है. इसे एक डिवाइस के रूप में विकसित किया जा रहा है. इसके तैयार होते ही देश में हृदय प्रत्यारोपण बेहद ही आसान हो जाएगा. चलिए जानते हैं इसके बारे में.

आईआईटी के प्रोफेसर अमिताभ बंधोपाध्याय ने दी यह जानकारी.
आईआईटी के प्रोफेसर अमिताभ बंधोपाध्याय ने दी यह जानकारी.

By

Published : Jan 8, 2022, 7:01 PM IST

कानपुरः हृदय रोगियों को जल्द ही बड़ी राहत मिलने वाली है. हृदय प्रत्यारोपण के लिए अब न तो उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ेगा और न ही ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ेगा. इसके लिए पहल करने जा रहा है आईआईटी कानपुर. दरअसल, इस संस्थान ने आर्टिफिशयल हार्ट तैयार करने का बीड़ा उठाया है. इसके लिए एक टास्क फोर्स गठित की गई है.

इस टीम में आईआईटी के प्रोफेसरों के अलावा यूएसए के कई विशेषज्ञ, एम्स, अपोलो, फोर्टिस और मेदांता के सीनियर विशेषज्ञ शामिल हैं. यह टीम आर्टिफिशियल हार्ट को डिवाइस के रूप में विकसित करने में जुटी है. इस डिवाइस का नाम रखा गया है लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस (LVAD).

आईआईटी के प्रोफेसर अमिताभ बंधोपाध्याय ने दी यह जानकारी.

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर अमिताभ बंधोपाध्याय ने बताया कि हमने इसे एक चुनौती के रूप में लिया है. टास्क फोर्स लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस तैयार करने में जुटी हुई है.

ऐसे मिला आइडिया...

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर अमिताभ बंदोपाध्याय ने बताया कि आईआईटी कानपुर की मेडिकल उपलब्धियों को लेकर एक बैठक चल रही थी. कहा गया कि संस्थान ने कोरोना काल में कम कीमत के वेंटिलेटर और अच्छे कंसंट्रेटर तैयार कर दुनिया में अपनी धूम मचाई है. इस बीच किसी ने कहा कि हम आर्टिफिशियल हार्ट क्यों नहीं तैयार करते हैं. बस, संस्थान ने उसी वक्त इसे चुनौती के रूप में स्वीकार लिया. तुरंत ही इसे बनाने के लिए टास्क फोर्स गठित कर दी गई.

पांच साल लग सकते हैं बाजार में आने में

प्रोफेसर अमिताभ बंदोपाध्याय के मुताबिक जब भी कोई मेडिकल डिवाइस तैयार की जाती है तो उसका कई चरणों में ट्रायल किया जाता है. उन्होंने बताया कि यह डिवाइस तैयार होने में दो साल लगेंगे. इसके बाद इसका पशुओं पर ट्रायल किया जाएगा. फिर क्लीनिकल ट्रायल होगा. यह डिवाइस बाजार में आने में करीब पांच साल लग जाएंगे.

यह होता है आर्टिफिशियल हार्ट

आर्टिफिशियल हार्ट यानी लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस (LVAD) एक ऐसा पंप है, जिसका उपयोग उन हार्ट पेशेंट के लिए किया जाता है जिनका हार्ट पूरी तरह फेल हो चुका हो और वह मरीज लास्ट स्टेज पर हो. यह मैग्नेटिक आधार पर दिल की तरह काम करता है. इस डिवाइस में 8 रिचार्जेबल बैटरी होती हैं. इसकी बैटरी 12 घंटे तक चल सकती है. अभी देश में जो आर्टिफिशियल हार्ट प्रत्यारोपित किया जा रहा है वह विदेश से आता है और बेहद ही महंगा है. जब आईआईटी कानपुर इस डिवाइस को तैयार कर लेगी तो यह डिवाइस बेहद ही सस्ती हो जाएगी. आम आदमी तक इसकी पहुंच आसान हो जाएगी.

ये होता है हार्ट ट्रांसप्‍लांट

हार्ट ट्रांसप्‍लांट को हिंदी में हृदय प्रत्यारोपण भी कहा जाता है. यह एक शल्य प्रक्रिया (Surgical Procedure) है जिसमें एक रोगग्रस्त हृदय को सामान्य दाता (Donor) के हृदय द्वारा बदल दिया जाता है. डोनर के हार्ट का साइज और ब्‍लड ग्रुप 'प्राप्तकर्ता' शरीर के अनुकूल होना चाहिए.

ये भी पढ़ेंः up assembly election 2022: उत्तर प्रदेश में 7 चरणों में चुनाव होंगे, 10 मार्च को आएंगे नतीजे

हार्ट ट्रांसप्लांट कब कराया जाता है

हार्ट फेलियर (दिल की विफलता) हार्ट ट्रांसप्लांट का सबसे सामान्य कारण है. यह एक ऐसी स्थिति होती है जब दिल शरीर द्वारा आवश्यकतानुसार रक्त पंप करने में सक्षम नहीं होता है. शुरुआत में हृदय की विफलता को इटियोलॉजी, सॉल्‍ट रिस्ट्रिक्‍शन, फ्लुड रिस्ट्रिक्‍शन और दवाओं के माध्‍यम से उपचार किया जाता है. कुछ मामलों में विशेष पेस मेकर लगाए जाते हैं. अंतिम विकल्प हार्ट ट्रांसप्लांट ही माना जाता है.

ये भी हैं कारक

दवाओं के बावजूद Refractory Ventricular Arrhythmia की समस्‍या.

कुछ प्रकार के जन्मजात हृदय रोग.

कोरोनरी धमनी रोग खासकर जब चिकित्सा, एंजियोप्लास्टी और सर्जिकल विकल्प समाप्त हो जाते हैं या संभव नहीं होते हैं.

पहले से ही ट्रांसप्‍लांट हृदय का फेलियर.

भारत में हर साल 70 हजार हार्ट प्रत्यारोपण की जरूरत होते सिर्फ 70

विश्व में हर साल 5000 हृदय प्रत्यारोपण होते हैं. अमेरिका में जहां हर साल 2500 वहीं भारत में चार साल पहले तक करीब 70 प्रत्यारोपण ही हो रहे थे. एक अनुमान के मुताबिक देश में हर साल 60 से 70 हजार हृदयप्रत्यारोपण की जरूरत होती है.

ये आता है खर्च...

दिल्ली में एम्स में हार्ट ट्रांसप्लांट कराने पर एक लाख रुपए का खर्च आता है तो वहीं निजी अस्पतालों में यह खर्च 15 लाख रुपये से एक करोड़ रुपए तक आता है.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

ABOUT THE AUTHOR

...view details