कानपुर: 1984 में देश की पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के दंगे ने कई सिख परिवारों का जीवन तबाह कर दिया. इस दंगे का दर्द शायद ही शहर का कोई ऐसा सिख परिवार हो जो भूला होगा. कांग्रेस शासन काल में सिख दंगे की जांच की मांग तो खूब उठी लेकिन इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका. भाजपा शासन आते ही सिख दंगे की जांच तेज हो गई और आरोपियों की गिरफ्तारी शुरू हो गई. SIT की ओर से बीते एक हफ्ते में 11 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है. सवाल उठ रहा है कि यही कार्रवाई क्या पहले नहीं हो सकती थी? 38 साल बाद ही क्यों SIT ने सिख दंगे की जांच शुरू की?
एसआईटी डीआईजी बालेंदु भूषण सिंह ने बताया कि 1984 का सिख दंगा शहर के नजीराबाद, गुमटी या अन्य क्षेत्रों में नहीं हुआ, क्योंकि यहां सिख एकजुट होकर रह रहे थे. दंगाइयों ने निराला नगर, किदवई नगर, बर्रा, नौबस्ता में छोटे परिवारों पर हमला किया था. आगजनी व लूट के बाद इस दंगे में 127 सिखों की हत्या कर दी गई थी. इस पूरे मामले में कुल 1251 मुकदमे दर्ज हुए हैं, जिनमें आगजनी, लूट व अन्य मामले शामिल हैं. हालांकि 40 मुकदमे ऐसे हैं, जो नरसंहार के हैं. 1251 मुकदमों में 96 आरोपी बनाए गए. इनमें से 22 की मौत हो चुकी है.
एसआईटी के डीआईजी बालेंदु भूषण सिंह बताते हैं कि वर्ष 2014 में जब मोदी सरकार का गठन हुआ तो सिख संगठन के पदाधिकारियों ने इस मामले को लेकर भाजपा नेताओं से मुलाकात की. गृहमंत्री, यूपी के सीएम व समेत कई अन्य नेताओं से जांच की मांग की. जब मामले में तेजी नहीं दिखी तो साल 2018 में सिख संगठनों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पीआइएल दाखिल की गई.