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विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस: भारत की 10 फीसदी आबादी मानसिक विकार से ग्रसित - विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2020

हर साल विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस, 10 अक्टूबर को आता है. COVID-19 महामारी के परिणाम स्वरूप हमारे दैनिक जीवन में काफी बदलाव आया है. पिछले महीनों में कई चुनौतियां आई. WHO के मुताबिक भारत में 13.80 करोड़ लोग मानसिक विकार से जूझ रहे हैं.

IPS के असिस्टेंट जनरल सेक्रेटरी से बातचीत.
IPS के असिस्टेंट जनरल सेक्रेटरी से बातचीत.

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Published : Oct 10, 2020, 8:42 AM IST

कानपुर: 10 अक्टूबर को पूरे विश्व में मेंटल हेल्थ डे के रूप में मनाया जाता है. मानसिक स्वास्थ्य के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए इस दिन की शुरुआत की गई. बीते सालों की बात करें तो मानसिक विकार से जुड़े कई मामले सामने आए और ऐसे रोगियों में खासा इजाफा देखा गया है. वहीं कोरोना काल ने लोगों में मानसिक स्ट्रेस को दोगुना करने का काम किया है.

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में मनोरोग विभाग में डॉक्टर और इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी (IPS) में असिस्टेंट जनरल सेक्रेटरी डॉ. गणेश शंकर ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उनका कहना है कि कोरोना काल के बाद लोगों में मेंटल हेल्थ पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है. इस वजह से लोगों में गुस्सा, आत्महत्या के विचार और लड़ाई झगड़े जैसे मामलों में बढ़ोतरी हुई है. वहीं 70 फीसदी लोग तो कोरोना के डर की वजह से तनाव झेल रहे हैं. यदि नियमित दिनचर्या और स्वास्थ्य जीवन शैली का पालन किया जाए तो इसको बहुत कम किया जा सकता है.

IPS के असिस्टेंट जनरल सेक्रेटरी से बातचीत.

कोरोना की वजह से दोगुनी हुई तनाव की रफ्तार
डॉ. गणेश शंकर ने बताया कि कोरोना काल के बाद अभी हाल ही में सोसाइटी के 800 डॉक्टर्स ने एक शोध किया. शोध में यह पाया गया कि कोरोना काल में लोगों में मानसिक तनाव दोगुना हुआ है. डॉ. गणेश शंकर के मुताबिक, नियमित दिनचर्या वाले लोगों में पाया गया कि तनाव बहुत कम है. इसी के साथ स्वास्थ्य और व्यवस्थित जीवन शैली आपको और आपकी मेंटल हेल्थ हो सही रख सकती है. पूरे दिन में कुछ समय योग को दें, ताकि तनाव कम हो सके. इसके अलावा अपने विचार को लोगों से बोलने और कहने की आदत डालें, ताकि तनाव पैदा ही न हो.

हर मानसिक बीमारी नहीं होती है पागलपन
डॉ. गणेश शंकर ने बताया कि भारत में इस समय भी मानसिक रोगों को लेकर जागरूकता नहीं है. हर मानसिक बीमारी को पागलपन समझा जाता है, जो बेहद दुखःद की बात है. मानसिक रोगों से जुड़ी करीब 400 बीमरियां है, जिसमें मानसिक विक्षिप्त या पागलपन एक बीमारी मात्र है. इस समय टीनएज में कनवर्जेंस रिएक्शन बीमारी बढ़ रही है, इससे बच्चे हल्की सी तेज आवाज में बेहोश हो जाते हैं. वहीं कई बच्चे अपनी मानसिक परेशानी घर में शब्दों में नहीं बोल पाते हैं, इसीलिए माता-पिता को अपने बच्चे में नेचर चेंज आए तो उनसे बात करनी चाहिए. इससे वे मानसिक रूप से किसी बीमारी से ग्रसित होने से बच सकेंगे.

सरकार के सर्वे में आए चौंकाने वाले आंकड़े
डॉ. गणेश शंकर के अनुसार, सेंट्रल फैमिली वेलफेयर मिनिस्ट्री और बैंगलोर स्थित निमहेंस हॉस्पिटल ने मेंटल हेल्थ को लेकर एक सर्वे किया गया. इस सर्वे में बताया गया कि भारत में आबादी का 10 फीसदी वर्ग मानसिक समस्या से जूझ रहा है और उसमें भी 0.8 फीसदी यानी 1 करोड़ वो संख्या है, जो सीरियस लेवल पर हैं. इसी के साथ अल्कोहल की लत वालों की संख्या 16 करोड़ है, जिसमें 3 करोड़ लोग गंभीर रूप से नशे की लत में हैं. इसका असर सिर्फ 3 करोड़ लोग ही नहीं बल्कि, 3 करोड़ परिवार झेल रहा है. वहीं आंकड़ों से पता चला है कि भारत में करीब 13.80 करोड़ लोग मानसिक रोग से ग्रसित हैं.

हर चार मिनट में होती है आत्महत्या
डॉ. गणेश शंकर ने बताया कि सर्वे में यह तथ्य सबसे चौंकने वाला था कि भारत में 17 से लेकर 29 साल के आयु वर्ग में मौत का सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है. इसमें यह सबसे महत्वपूर्ण है कि सर्वे के दौरान भारत में 1 करोड़ 38 लाख लोगों ने आत्महत्या की, जिसके अनुसार करीब हर 4 मिनट में एक आत्महत्या हो रही है.

2020 के बाद तक 20 फीसदी आबादी होगी ग्रसित
WHO ने मानसिक रोगों को लेकर एक रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट के मुताबिक, तकरीबन 7.5 फीसदी भारतीय किसी न किसी मानसिक रोग से ग्रसित हैं. 2020 के बाद तक भारत की 20 फीसदी आबादी मानसिक रोग से ग्रसित होगी. इन सबके बावजूद भारत में मानसिक समस्याओं को एक रोग के रूप में पहचान नहीं मिल पाई है.

यह कानून देता है मानसिक रोगियों को अपने अधिकार
वर्ष 2017 में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 लागू किया गया. यह अधिनियम मानसिक रोगियों को मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा और सेवाएं देता है. साथ ही यह कानून रोगियों को गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार को भी सुनिश्चित करता है.

यह मिले अधिकार

  • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का अधिकार.
  • गरीबी रेखा से नीचे इलाज मुफ्त.
  • गरिमा के साथ जीवन जीने और रोगी के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होगा.
  • गोपनीयता का अधिकार.
  • मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति के सहमति के बिना उसकी तस्वीर या अन्य जानकारी सार्वजनिक न की जाए.

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