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इत्रनगरी कन्नौज में शरद पूर्णिमा को होता है रावण दहन, ये है मान्यता - शरद पूर्णिमा को कन्नौज में रावण दहन

इत्रनगरी कहे जाने वाले कन्नौज में शरद पूर्णिमा के दिन रावण दहन किया जाता है. इसके पीछे कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की मान्यता है कि दशहरा को भगवान राम ने रावण को तीर मारकर धराशाई किया था, लेकिन रावण ने अपने प्राण शरद पूर्णिमा को त्यागे थे.

इत्रनगरी में रावण दहन.

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Published : Oct 12, 2019, 9:20 PM IST

कन्नौज: जहां देशभर में रामलीला के रावण का पुतला दहन दशहरे के दिन होता है, वहीं इत्र और इतिहास की नगरी कन्नौज में एक अनूठी धार्मिक परंपरा है. यहां रावण दहन दशहरे को नहीं बल्कि शरद पूर्णिमा को किया जाता है. इसके पीछे कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की मान्यता है कि दशहरा को भगवान राम ने रावण को तीर मारकर धराशाई किया था, लेकिन रावण ने अपने प्राण शरद पूर्णिमा को त्यागे थे. इस वजह से रावण का वध शरद पूर्णिमा को ही माना जाता है. यही कारण है कि आज भी इत्रनगरी में यह परम्परा शरद पूर्णिमा को रावण दहन कर निभाई जा रही है.

इत्रनगरी में रावण दहन.

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शरद पूर्णिमा को रावण ने त्यागे थे प्राण
आपको बताते चलें कि कन्नौज शहर में पारम्परिक तौर से दो स्थानों पर रामलीला का आयोजन किया जाता है. जिसमे ग्वाल मैदान में आदर्श रामलीला के बैनर तले रामलीला का शुभारम्भ सन् 1880 में हुआ था. इस रामलीला में भी शुरुआत से ही रावण वध शरद पूर्णिमा को किया जाता है. साथ ही शहर के एस.बी.एस. मैदान पर भी रामलीला का मंचन होता है. कन्नौज में ग्वाल मैदान और एस.बी.एस. कालेज मैदान में दोनों ही स्थानों पर शरद पूर्णिमा को ही रावण दहन होता है.

इतिहासकार बताते हैं कि रावण ने शरद पूर्णिमा के दिन ही प्राण त्यागे थे, इस बीच उन्होंने लक्ष्मण जी को ज्ञान दिया था. इसी वजह से पूर्णिमा पर रावण का पुतला कन्नौज में नहीं जलाया जाता है.

रावण की नाभि से हुई थी अमृत की वर्षा
कान्यकुब्ज ब्राह्मणों का मत है कि जब रावण के प्राण निकले, तो रावण की नाभि में भरा हुआ अमृत फैल गया और आसमान से अमृत की वर्षा होने लगी. वही अमृत पाने के लिए आज भी लोग शरद पूर्णिमा को खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखते हैं ताकि वह खीर अमृत के सामान बन जाए.

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