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पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कन्नौज महोत्सव में बांधा समां, लोक गीतों पर जमकर थिरके दर्शक - अवधी और भोजपुरी

कन्नौज महोत्सव में लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने अवधी और भोजपुरी गीतों से चार चांद लगा दिए. अवस्थी के गीतों का जादू भी दर्शकों के सिर चढ़कर बोला.

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लोक गायिका मालिनी अवस्थी

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Published : Dec 1, 2022, 10:05 AM IST

कन्नौज: शहर के बोर्डिंग ग्राउंड में कन्नौज महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. महोत्सव के चौथे दिन पद्मश्री लोक गायिका मालिनी अवस्थी के अवधी और भोजपुरी गीतों पर लोग जमकर थिरके. मालिनी अवस्थी के गीतों का जादू दर्शकों के सिर चढ़कर बोला. उन्होंने दर्शक दीर्घा में आकर बच्चों के साथ भी नाचा. उन्होंने ने कार्यक्रम की शुरूआत राम भजनों से की. इस दौरान जिला प्रशासन के अलावा बड़ी संख्या में दर्शक मौजूद रहे.

जानकारी देते हुए लोक गायिका मालिनी अवस्थी

बोर्डिंग मैदान में चल रहे कन्नौज महोत्सव के चौथे दिन मशहूर लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने लोक गीत गाकर महोत्सव में आए लोगों का मन मोह लिया. उन्होंने कार्यक्रम की शुरूआत राम भजनों से की. इसके बाद उन्होंने देवी कैसे मनाऊ, अम्मा मेरे बाबा को भेजो री, हमारा गुलाबी दुप्पटा, हमे लग जाए नजरिया गाकर श्रेताओं को थिरकने पर मजबूर कर दिया. इस दौरान उन्होंने दर्शक दीर्घा में आकर लोगों के जमकर नाचा. कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कन्नौज में बीता उनका बचपन व भारत की पहली नौटंकी क्वीन गुलाब बाई को याद किया. मालिनी अवस्थी ने लोक गीतों के माध्यम से संस्कृति सभ्यता का एहसास कराया. लोक गीत कार्यक्रम में प्रदेश सरकार के समाज कल्याण राज्य मंत्री असीम अरुण भी शामिल हुए.

लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने कहा कि कन्नौज उनकी मातृ भूमि है. कन्नौज महोत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रम करने का सौभाग्य मिला है. मुझे बताया गया कि 17 साल बाद यहां कन्नौज महोत्सव आयोजित किया जा रहा है, क्योंकि कन्नौज अपने आप में भारतीय इतिहास भारतीय शौर्य, भारतीय संस्कृति और भारतीय कला का पर्याय रहा है. यहां व्यापार की दृष्टि से सामरिक दृष्टि से देख ले बड़े बड़े राजा जैसे राजा हर्षवर्धन से लेकर पृथ्वीराज चौहान तक आल्हा उदल की गाथा. यहा का इत्र दुनिया भर में खुशबू बिखेरता है.

कहा कि गंगा मैया का आशीर्वाद है कि ऐसी जगह महोत्सव होना बहुत बधाई की बात है. कहा कि सांस्कृतिक कार्यक्रम में युवाओं की भीड़ आना इस बात का अहसास कराता है कि युवा आज भी अपनी जड़ों को पसंद करता है. विरासत से बच्चे जुड़ रहे है अच्छी बात है. आज के जमाने पर सोशल मीडिया पर है ओटीटी प्लेटफार्म पर है. लोग टीवी नहीं छोड़ना चाह रहे है. ऐसे में युवा पारम्परिक लोक गीत सुनने आ रहे है उनका प्रोत्साहन करना चाहिए. मुझे लगता है युवा चाहते है गड़बड़ी सारी बीच की पीढ़ी की है.

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