उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

ETV Bharat / state

शेल्टर होम में बच्चों की सुरक्षा के नहीं हैं पुख्ता इंतजाम, जांच में खुलासा - protection of children in shelter homes

यूपी की राजधानी लखनऊ में बुधवार को ईटीवी भारत ने राजकीय बाल गृह की स्थिति की जांच-पड़ताल की. इस दौरान यहां हैरान करने वाली हकीकत सामने आई. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने आश्रय गृहों का ऑडिट करवाया. इसमें पाया गया कि 40% शेल्टर होम में बच्चों को शारीरिक और सेक्सुअल एब्यूज से बचाने के उपाय नहीं हैं.

राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग.
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग.

By

Published : Dec 2, 2020, 9:20 PM IST

Updated : Sep 24, 2022, 2:51 PM IST

लखनऊ:राजकीय बाल गृह हमेशा विवादों में रहा है. कभी बच्चों की मौत, कभी नाबालिगों के भागने की घटना तो कभी बालिकाओं के गर्भवती होने का मामला हो. लॉकडाउन के दौरान कई लड़कियां कोरोना पॉजिटिव भी हुईं. इन सब मामलों को देखते हुए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने आश्रय गृहों का ऑडिट करवाया. इसमें पाया गया कि 40% शेल्टर होम में बच्चों को शारीरिक और सेक्सुअल एब्यूज से बचाने के उपाय नहीं हैं.

बच्चों के लिए चलाए जा रहे 80% से ज्यादा शेल्टर होम ट्रस्ट और एनजीओ द्वारा संचालित होते हैं. ईटीवी भारत ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्यों से जब बात की तो पता चला कि वाकई स्थिति बहुत दयनीय है. मिली जानकारी के अनुसार 28 बाल गृह में से करीब तीन गृह सरकारी बाकी 25 या तो ट्रस्ट यह एनजीओ के हवाले हैं.

राजधानी में 28 बाल गृह
बता दें कि राजधानी में पहले 32 आश्रय गृह थे, जिसमें कुछ समय पहले चार गृहों की मान्यता समाप्त कर दी गई थी. मौजूदा वक्त में 28 आश्रय गृह हैं. इन गृहों में लगभग 1,250 बच्चे हैं, लेकिन इनमें रहने वाले बच्चों के लिए शौचालय, बेडरूम, रसोई, स्नान घर, शिक्षा व मेडिकल की समुचित व्यवस्था नहीं है. साथ ही इन गृहों में कैपेसिटी के हिसाब से ज्यादा बच्चे रहते हैं.

बाल गृह के यह नियम
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में बताया गया है कि अधिनियम के तहत पंजीकृत संस्थाओं को ही बाल गृह की अनुमति मिलती है, जिसमें बालकों के भोजन, आश्रम, वस्त्र और चिकित्सीय देख-रेख की जिम्मेदारी बाल गृह की होती है. विशेष आवश्यकता वाले बालकों के लिए उपकरण जैसे कि व्हीलचेयर, प्रोस्थेटिक डिवाइस, हियरिंग एड्स, बेरल किड्स व अन्य उपकरण होना जरूरी है. वहीं बालकों के लिए संपूरक शिक्षा, विशेष शिक्षा और समुचित शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए.

गृहों की स्थिति नहीं है ठीक
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि आयोग के द्वारा जो ऑडिट हुआ है, उसमें यह निकल कर आया है कि 40 परसेंट गृहों की स्थिति ठीक नहीं पाई गई है. यह भी कहा गया है कि शारीरिक दूरी न होने के कारण सेक्सुअल एब्यूज बढ़ रहा है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी ढाई साल में कई गृहों का निरीक्षण किया है, जिसमें यह पाया गया है कि हर जिले में इस तरीके के आश्रय गृह नहीं हैं. इसलिए इन गृहों पर बच्चों का बोझ बढ़ रहा है. क्षमता से अधिक बच्चे यहां रह रहे हैं.

कैपेसिटी के हिसाब से रहते हैं ज्यादा बच्चे
शुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि गृहों में अलग-अलग कैपेसिटी के हिसाब से बच्चे रहते हैं. कहीं 50, कहीं 130 तो कहीं इससे भी अधिक संख्या में बच्चे रहते हैं. गृहों के न होने से सबसे बड़ी समस्या यह है कि बच्चे जाएंगे कहां? जब जगह ही नहीं है. शेल्टर होम कम होने की वजह से बच्चों को कहीं और ले जाने की स्थिति भी नहीं बन पाती है. शेल्टर होम्स में स्पेस कम होने की वजह से बहुत कुछ तो बदलाव नहीं किया जा सकता, लेकिन स्थिति सुधारी जा सकती है. जैसे कि एक के ऊपर एक बेड लगा कर दूरी बनाई जा सकती है. इसके लिए राज्यपाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी शासन को कई बार लिखा है कि होम्स की संख्या बढ़ाई जाए. जैसा कि जेजे एक्ट में कहा गया है उसी अनुसार बच्चों को सुविधाएं मिलनी चाहिए.

Last Updated : Sep 24, 2022, 2:51 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details