कन्नौज :दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता की प्रेम कहानी इतिहास के पन्नों पर लिखी जरूर है, लेकिन उस समय की अगर हकीकत की कल्पना करेंगे तो आज के जमाने का प्यार फीका नजर आएगा. दोनों के प्यार की कहानी आज भी एक अमर प्रेम कथा के रूप में देखने को मिलती है. पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चंदबरदाई ने इस प्रेम कथा का वर्णन किया है.
जानिए पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी कन्नौज राज्य के आखिरी स्वतंत्र शासक राजा जयचंद थे. संयोगिता राजा जयचंद की पुत्री थी. राजा जयचंद और पृथ्वीराज की दुश्मनी की वजह भी इनकी प्रेम कहानी थी. इस प्रेम कहानी की जानकारी यहां के युवाओं को भली-भांति हो, इसके लिए यहां के पुरातत्व विभाग ने इसकी एक झांकी संयोगिता के स्वयंवर सजा रखी है. जब पृथ्वीराज चौहान दिल्ली की राजगद्दी पर बैठे थे, उस समय के मशहूर चित्रकार पन्ना राय ने पृथ्वीराज चौहान सहित कई बड़े राजा महाराजाओं के चित्र को लेकर कन्नौज पहुंचे थे. जहां उन्होंने सभी चित्रों की प्रदर्शनी लगाई थी.
पृथ्वीराज चौहान का चित्र इतना आकर्षण था कि सभी स्त्रियां उनके आकर्षण में बंध गई. युवतियां एक-दूसरे से उनकी सुंदरता का बखान करते नहीं थक रही थीं. पृथ्वीराज की तारीफ की यह बाते संयोगिता के कानों तक पहुंची. पृथ्वीराज चौहान की तारीफ सुनकर संयोगिता अपनी सहेलियों के साथ चित्र देखने पहुंची. तस्वीर को देखते ही संयोगिता ने पहली नजर में ही पृथ्वीराज को अपना दिल दे दिया. यहीं से संयोगिता ने पति के रूप में पृथ्वीराज को चाहना शुरू कर दिया. जिसके बाद पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी की शुरुआत हुई.
इस प्यार की कहानी का सूत्रधार बना चित्रकार पन्ना राय. जिसने पहले संयोगिता का एक सुंदर चित्र बनाया और फिर उसे ले जाकर पृथ्वीराज चौहान को दिखाया. चित्र में संयोगिता के यौवन को देखकर पृथ्वीराज चौहान भी मोहित हो गए और उन्होंने भी एक पल में संयोगिता को अपना दिल दे दिया. इसके बाद संयोगिता के विवाह की तैयारी की गई, जिसमें संयोगिता के पिता राजा जयचंद ने सभी राजाओं को स्वयंवर के लिए न्योता भेजा, लेकिन दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान को निमंत्रण नहीं दिया.
उनकी एक प्रतिमा को जयचंद ने राजमहल के बाहर बनवाकर खड़ा कर दिया. जब संयोगिता के हाथ में वरमाला दी गई और स्वयंवर के दौरान संयोगिता को अपने मनचाहे वर को चुनने की बात कही गई तो संयोगिता ने वरमाला लेकर पृथ्वीराज की मूर्ति को पहना दी. पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति पर वरमाला डालते ही संयोगिता ने पृथ्वीराज को अपना पति मान लिया. उसी पल पृथ्वीराज, संयोगिता को अपने साथ घोड़े पर बैठा कर दिल्ली ले आए और दोनों ही एक दूसरे के प्यार के बंधन में बंध गए.