कन्नौजःसपा शासन में बना 140 करोड़ का काऊ मिल्क प्लांट (Cow Milk Plant ) एक बार फिर चर्चा में हैं. दो साल से बंद पड़े इस प्लांट में करोड़ों की मशीनें खराब हो रही हैं. इस प्लांट में दूध की आपूर्ति करने वाले 15 जिलों के 60 हजार किसानों के फायदे पर राजनीति हो रही है. जिस प्लांट को किसानों की आय दोगुनी करने के लिए चलाया गया था, वह अब किसानों के लिए परेशानी का सबब बन गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या किसानों के हित में सरकार इस प्लांट को लेकर कोई कदम उठाएगी या फिर इसकी मशीनें ऐसे ही धूल खाती रहेंगी.
बता दें कि किसानों की आय को बढ़ाने और बेसहारा गोवंशों को सहारा देने की सोच के साथ सपा की पूर्ववर्ती सरकार में करीब 140.39 करोड़ रुपये की लागत से काऊ मिल्क प्लांट बनाया गया था. प्लांट बनने के बाद 2018 में सम्बंधित विभाग को सौंप दिया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मथुरा की सांसद हेमामालिनी के नाम लिखे पत्थर को लगाकर 2019 में लोकार्पण कर इसकी शुरुआत भी कर दी गई थी. इस प्लांट की दैनिक उत्पादन क्षमता एक लाख लीटर की थी.
विदेश से आईं आधुनिक मशीनें धूल खा रहीं
कन्नौज जिले की तिर्वा तहसील के बढ़नपुर वीरहार गांव में करीब 8 एकड़ की भूमि पर बने काऊ मिल्क प्लांट में दूध की टैट्रा पैकिंग के लिए जर्मन और जापान से मशीनें मंगवाई गई थी. एक लाख लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाले काऊ दूध मिल्क प्लांट में आसपास के करीब 15 जिलों के किसान अपना दूध बेच सकते थे. बताया जाता है काऊ दूध प्लांट की प्रतिदिन की एक लाख लीटर दूध की क्षमता उत्तर प्रदेश के किसी भी मिल्क प्लांट से ज्यादा है. प्लांट में करीब 6 महीने तक आधुनिक मशीनों के सहारे दूध को स्टोर किया जा सकता है. प्लांट करीब छह महीने तक चला. इसके बाद बजट के अभाव में इसे बंद कर दिया गया.
15 जिलों के 60 हजार किसान करते थे दूध की आपूर्ति
बताया गया कि कन्नौज, मैनपुरी, इटावा, सैफई, फर्रुखाबाद, हरदोई, कानपुर देहात, औरैया समेत आसपास के करीब 15 जिलों के 60 हजार गोपालक किसान यहां दूध की आपूर्ति करते थे. प्लांट बंद होने से ये किसान अब परेशान हैं. यहीं नहीं यहां 150 से अधिक कर्मचारी कार्यरत थे जो अब बेरोजगार हैं.
इस वजह से प्लांट पर पड़ा ताला
बताया गया कि प्लांट 2018 से 2021 तक एक तिहाई क्षमता से ही चला. सरकार ने शुरुआत में करीब दो करोड़ के बजट से इसकी शुरुआत कर दी थी. इसके बाद प्लांट को अपना संचालन खर्च दूध की आपूर्ति से ही निकालना था. प्लांट प्रबंधन के मुताबिक एक लाख लीटर क्षमता वाले प्लांट को रोज करीब 15 हजार लीटर दूध भी नहीं मिल सका. इससे जरूरी खर्च नहीं निकले सके. बिजली, वेतन और अन्य खर्चों का बकाया बढ़ता ही चला गया और अंत में प्लांट को मजबूरन बंद करना पड़ा. बताया गया कि यदि सरकार से प्लांट को मदद मिल जाती तो शायद यह अभी तक संचालित होता रहता. प्रबंधन का तर्क है कि उन्हें रोज 30 हजार लीटर दूध यदि मिल जाता तो सारे खर्चें निकल आते लेकिन रोज इसका आधा दूध ही मिला. इस वजह से प्लांट पर बकाया बढ़ता चला गया और इसे बंद करना पड़ा.