इत्र नगरी में आसान नहीं असीम अरुण की सियासी राह, जानें वजह - UP Election Results 2022
खाकी पहनकर प्रदेश पुलिस का पूरे देश में नाम रोशन करने वाले कानपुर मंडल के पहले कमिश्नर असीम अरुण ने अपने पद से वीआरएस लेकर अपनी सियासी सफर की शुरुआत तो कर दी है. लेकिन जिस उम्मीद से उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले अपने गृह जनपद में सियासी सफर की शुरुआत की है, वो उतना आसान नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि वह गृह जनपद दिखाकर जिस कन्नौज सदर सीट से दावेदारी कर रहे हैं, उस सीट पर कई अन्य लोग भी अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं.
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Published : Jan 19, 2022, 10:48 AM IST
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Updated : Jan 19, 2022, 11:14 AM IST
कन्नौज: खाकी पहनकर प्रदेश पुलिस का पूरे देश में नाम रोशन करने वाले कानपुर मंडल के पहले कमिश्नर असीम अरुण ने अपने पद से वीआरएस लेकर अपनी सियासी सफर की शुरुआत तो कर दी है. लेकिन जिस उम्मीद से उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले अपने गृह जनपद में सियासी सफर की शुरुआत की है, वो उतना आसान नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि वह गृह जनपद दिखाकर जिस कन्नौज सदर सीट से दावेदारी कर रहे हैं, उस सीट पर कई अन्य लोग भी अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं. साथ ही अपनी जीत को पक्का करने को सालों से जमीनी स्तर पर काम भी किया जा रहा है. ऐसे में अगर भाजपा खाकी से खादी में आए असीम अरुण को सदर सीट से अपना प्रत्याशी घोषित करती है तो कई नेताओं के विधायक बनने के सपने पर पानी फिर जाएगा, जो विधायक बनने के सपने संजोए बैठे हैं.
ऐसे में असीम अरुण को भाजपा अपना प्रत्याशी घोषित करती है तो पार्टी के अंदर गुटबाजी का लेवल भी बढ़ जाएगा. जिसके कारण उनको जीत के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ेगा. जिसके साफ संकेत भी नजर अ रहे हैं. दरअसल, भाजपा से सदर के तीन बार विधायक बनवारी लाल दोहरे भले ही विगत चार चुनाव में लगातार हार का मुंह देख रहे हो, लेकिन मौजूदा सियासी पृष्ठ भूमि में उनको सदर सीट से भाजपा का प्रबल दावेदार माना जा रहा है. 70 साल की उम्र पार कर चुके बनवारी लाल दोहरे अपनी सियासत की आखिरी पारी खेलने की तैयारी को जनता के बीच भावनात्मक रिश्ता जोड़ रहे हैं.
इसी उदेश्य के साथ इस बार भी उन्होंने पूरे पांच साल अपनी सियासी जमीन को सींचा है. हालांकि अभी तक स्थानीय भाजपा टीम में बड़े दलित चेहरे के रूप में बनवारी लाल दोहरे ही माने जाते थे. ऐसे में पार्टी उनका टिकट काटकर असीम अरुण पर विश्वास दिखाती है तो उनके समर्थक पूरी तरह से इनके लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं. असीम अरुण को पार्टी कैडर का वोट भले ही मिल जाए, लेकिन उनकी राह उतनी आसान नहीं दिख रही है. अगर भाजपा ने सदर सीट से असीम अरुण पर दांव लगाया तो पार्टी के लिए मुश्किलें भी बढ़ जाएगी. वहीं, भाजपा के कुछ नामचीन नेताओं के मन की बात पर गौर करें तो उनका कहना है कि असीम अरुण कोई बाहरी नहीं हैं, बल्कि कन्नौज के ही निवासी हैं. संगठन असीम अरुण या किसी अन्य को प्रत्याशी घोषित करता है तो पार्टी के लोग जी जान से उनका सहयोग करेंगे.
ये हैं सदर सीट के प्रबल दावेदार
हालांकि भाजपा की ओर से अभी तक कन्नौज की तीनों सीटों के लिए किसी भी प्रत्याशी की घोषणा नहीं की गई है. लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि असीम अरुण सदर सीट के सबसे प्रबल दावेदार हैं. वहीं, तीन बार विधायक रहे बनवारी लाल दोहरे भी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं. इसके अलावा लिस्ट में रिटायर्ड बैंककर्मी आरएस कठेरिया, भाजपा नेता तरुण चंद्रा, रामेंद्र कटारा, जिला महामंत्री रामवीर कठेरिया, जलालाबाद ब्लॉक प्रमुख प्रतिनिधि अरविंद दोहरे के नाम भी प्रत्याशी के लिए शामिल है.
सोशल मीडिया पर अभी से दिखा रहा गुटबाजी का असर
बता दें कि जब पूर्व कमिश्नर असीम अरुण का नाम सदर सीट से प्रत्याशी के रूप में चर्चा में आया तो टिकट के लिए आस लगाए बैठे नेता व कार्यकर्ताओं का मानो विधायक बनने का सपना ही टूट सा गया हो. जिसके बाद उनके समर्थक सोशल मीडिया पर पोस्ट कर अपने-अपने नेताओं के समर्थन में खुलकर बोलने लगे हैं.
आसान नहीं असीम अरुण की सियासी राह
जिले में कुल मतदाता
2022 के चुनाव में इस बार जिले भर में कुल 12 लाख 67 हजार 903 मतदाता हैं. जिसमें पुरुष मतदाता 682955, महिला मतदाता 584895 और थर्ड जेंडर 53 है. वहीं, इसमें सदर विधानसभा (198) में 4 लाख 27 हजार 488 मतदाता हैं, जिसमें पुरुष मतदाता की संख्या 227928 हैं. जबकि महिला मतदाता की संख्या 199547 है और 13 थर्ड जेंडर मतदाता हैं.
कन्नौज की सदर विधानसभा सीट (198) पर लगातार वर्ष 2002, 2007, 2012 व 2017 में सपा का कब्जा रहा है. हालांकि यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव 2022 में सदर सीट पर भाजपा और बसपा भी अपनी जमीन तलाश रही हैं. सदर सीट पर परचम लहराने के लिए भाजपा और बसपा जोर आजमाइश में लगी हैं. बता दें कि कन्नौज जिले की सपा के लिए सुरक्षित कही जाने वाली विधानसभा संख्या 198 पर बसपा का एक बार भी खाता नहीं खुला है. पिछले चार विधानसभा चुनावों में हर बार सपा के प्रत्याशी को ही इस सीट पर जीत मिली है. सदर सीट पर पहली बार 1977 में जनता पार्टी से बिहारी लाल ने अपने प्रतिद्वंदी कांग्रेस के प्रत्याशी रामबक्श को हराया था.
1977 की हार के बाद वर्ष 1980 में रामबक्श ने एक बार फिर कांग्रेस से चुनाव लड़ा और जीतकर विधायक बने. वर्ष 1989 में सदर सीट पर जनता दल से कल्याण सिंह दोहरे ने चुनाव लड़े, जिसमें उन्हें जनता का समर्थन मिला और वो विधायक चुने गए. इसके बाद वर्ष 1991, 1993 और 1996 तक भाजपा से बनवारी लाल दोहरे विधायक रहे. साल 2002 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी से कल्याण सिंह दोहरे ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद विधानसभा चुनाव 2007, 2012 व 2017 में समाजवादी पार्टी की टिकट पर अनिल दोहरे ने चुनाव लड़ा और लगातार जीत की हैट्रिक लगाई. वर्ष 2007 से 2017 तक सपा के अनिल दोहरे इस सीट पर विधायक हैं. उनके पिता बिहारी लाल दोहरे भी तीन बार विधायक रह चुके हैं.
सदर सीट से जुड़ी कुछ अहम बातें
सदर सीट पर पिछले चार चुनावों में सपा को ही कामयाबी मिली है. मोदी लहर में भी सपा के अनिल दोहरे अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे.
भाजपा के बनवारी लाल दोहरे भी 1991 से 1996 तक लगातार तीन बार विधायक रहे. उसके बाद से भाजपा को सदर सीट से जीत नसीब नहीं हुई.
बसपा को सदर सीट पर कभी कामयाबी नहीं मिली है. जबकि 2007 में बसपा के प्रत्याशी कलियान सिंह दोहरे व 2012 में प्रत्याशी महेंद्र नीम दोहरे रनर रहे थे.
सदर सीट पर कांग्रेस को 1985 में जीत मिली थी. मौजूद सदर विधायक अनिल दोहरे के पिता बिहारी लाल दोहरे ने जीत हासिल की थी. जिसके बाद से कांग्रेस को आज तक इस सीट पर जीत नहीं मिली है.
सदर सीट पर अब तक 17 बार चुनाव हो चुके हैं. जिसमें पहली बार 1952 में चुनाव हुआ था. इसमें कांग्रेस के कालीचरण चुनाव जीतकर विधायक बने थे.
सदर सीट पर कांग्रेस पांच बार, सपा चार बार और तीन बार भाजपा को जीत मिली है. जबकि जनता दल, जनसंघ, बीकेडी, जेएनपी व पीएसपी को एक-एक बार जीत मिली है.