झांसी: कहते हैं हौसला बुलन्द हो तो दुनिया की सारी बाधाएं छोटी पड़ जाती हैं. ऐसी ही एक महिला हैं सीमा तिवारी, जो समाज के लिए मिसाल बनीं. जिले की सीमा तिवारी ने घुसे डकैतों से मुठभेड़ के दौरान अपने दोनों पैर और रीढ़ की हड्डी गंवा दी. इसके बावजूद सीमा ने हार नहीं मानी.
सीमा ने विपरीत परिस्थितियों से लड़ते हुए आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों व महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया. अपने काम के दम पर समाज में पहचान बनाया. सीमा के इसी बुलंद हौंसलों के दम पर सीमा को भारत सरकार की तरफ से भारती सम्मान, राष्ट्रीय प्रेरणा स्रोत पुरस्कार सहित कई सम्मान व पुरस्कार हासिल किए.
डकैती के दौरान हुई शारीरिक अक्षमसीमा तिवारी की जन्मभूमि ग्वालियर रही है. वहां रहने के दौरान 18 फरवरी 1996 को घर मे डकैती पड़ी. सीमा डकैतों को चकमा देकर छत से कूद कर पुलिस के पास मदद के लिए भागीं, लेकिन इस घटना में सीमा की रीढ़ की हड्डी टूट गई. इसके बाद सीमा के दोनों पैरों की ताकत चली गई. घटना के कुछ समय बाद सीमा झांसी आ गईं, लेकिन इस घटना ने सीमा को शारीरिक रूप से अक्षम बना दिया. घटना के बाद काफी समय तक वह बिस्तर पर रहीं.
आर्थिक रूप से कमजोर लड़कियों को दिया प्रशिक्षणसीमा के साथ हुई घटना ने उन्हें केवल शारीरिक रूप से अक्षम बना दिया. लेकिन कहते हैं न'लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती'. इसी पंक्ति को सीमा ने अपने जीवन में सार्थक किया. ग्वालियर से झांसी आने के बाद सीमा ने लड़कियों को सॉफ्ट टॉयज बनाने का काम सिखाती रहीं. इसके बाद कई संस्थाएं सीमा के पास आईं, उन्होंने सम्मानित किया.
सीएम से मांगी मददसीमा ने अपनी समस्या को लेकर मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी और मदद मांगी. स्थिति कुछ ठीक होने लगी तो सामाजिक कामों में अपनी सक्रियता बढ़ाई. सीमा के मुताबिक जिसे कष्ट होता है, वह दूसरे का कष्ट बेहतर तरीके से समझ पाता है. साल 2010 में कैंटोनमेंट बोर्ड में नौकरी लग गई और वहां संविदा पर नौकरी करने लगी.
संस्था पर खर्च किये कमाई के पैसेसीमा बताती हैं कि नौकरी लगने के बाद वह 'उड़ान' नाम की संस्था बनाकर लोगों की मदद करने लगीं. नौकरी से मिलने वाले पैसों को वह अपनी संस्था पर खर्च करने लगीं. इस संस्था के माध्यम से उन्होंने झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली महिलाओं को प्रशिक्षण देने और स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने का काम किया. इसके साथ ही बुजुर्गों और दिव्यांगों के लिए भी 'उड़ान' संस्था के माध्यम से उनके जीवन में भी उड़ान भरने का काम किया.सीमा कहती हैं कि, उनकी संस्था किसी से कोई पैसा नहीं लेती है और सरकार से भी कोई फंड नहीं लेती है. जो भी पुरस्कार मिलते हैं, उसके पैसे संस्था पर खर्च कर देती हैं. सीमा ने बताया कि अवॉर्ड के पैसों की एफडी बनाकर उसका जो ब्याज आता है, उसे इन कामों पर खर्च करती हैं.
मिल चुके हैं कई सम्मानसीमा तिवारी को साल 2015 में यश भारती के तहत महारानी अहिल्या बाई होल्कर वीरता पुरस्कार, तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दिया. मध्य प्रदेश महिला आयोग के 'नारी सम्मान' से सम्मानित हुईं. साल 2019 में 'राष्ट्रीय प्रेरणा स्रोत' पुरस्कार देश के उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू के हाथों से सीमा तिवारी को मिला है. इनके अलावा भी सीमा को कई सम्मान व पुरस्कार मिल चुके हैं.
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पूरे परिवार ने कर दिया देहदान, अब बलमीत मूक-बधिर बच्चों को दे रहीं शिक्षा का दानमहिलाओं को शिक्षा के लिए करती हैं प्रेरितसीमा तिवारी के मुताबिक हर महिला और लड़की को शिक्षित होना चाहिए. उनका कहना है कि जब डकैती पड़ी तो दोनों पैर खराब हो गए थे, लेकिन उनके पास शिक्षा ही थी जिसे उन्होंने हथियार बनाया. उसी हथियार के साथ काम शुरू किया.